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जीपीएफ के खातों का नहीं रखा ख्याल तो मिल सकती है कम रा​शि !

जीपीएफ के खातों की शिकायत के बाद कई कार्मिकों को मिली राशि

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पाली

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Rajeev Dave

Mar 09, 2025

GPF

एआई इमेज

केस एक : दो जनों की मृत्यु के बाद मिली राशि

मिलापचन्दकानूगो परिवहन विभाग पाली से सेवानिवृत हुए। उनको जीपीएफ से कम भुगतान मिला। बकाया राशि के लिए वर्ष 2017 से संघर्ष शुरू हुआ। इस बीच अप्रेल 2021 में मिलापचन्द का निधन हो गया। उनकी बहन मुन्नी देवी ने जीपीएफ विभाग पाली के चक्कर लगाए। इसके बाद14 नवम्बर 2022 को प्रकरण महिला आयोग जयपुर में दर्ज करवाया। इसके बाद मुन्नी देवी का भी निधन हो गया, तब मिलापचन्द की पत्नी ने विद्यादेवी ने संघर्ष किया। महिला आयोग के दखल के बाद उनको 3 किस्तों में 65500 रुपए का भुगतान मिला।

केस दो: जवाब मिला पत्रावली खो गई

उषा देवी के पति सूर्यनारायण जयपुर शिक्षा विभाग में थे। जीपीएफ की राशि कम मिलने पर 30 अप्रेल 2017 को शिकायत की। विभाग ने जवाब दिया कि पत्रावली गुम हो गई। इस बीच 5 नवम्बर 2021 को सूर्यनारायण का निधन हो गया। पत्नी उषा देवी ने राज्य महिला आयोग जयपुर से गुहार लगाई। इस पर बकाया राशि 82701 रुपए का भुगतान दिया गया।

केस तीन: प्रति के निधन के बाद शिकायत

कमला आचार्य के पति अनिल कुमार खान एवं भू-विज्ञान विभाग जोधपुर के निधन के बाद जीपीएफ का पूर्ण भुगतान के लिए मूल जीपीएफ पासबुक व अन्य दस्तावेज विभाग में प्रस्तुत किए। भुगतान नहीं मिलने पर महिला आयोग जयपुर में शिकायत दर्ज की। आयोग के नोटिस देने पर 16542 रुपए का भुगतान दिया गया।

सरकारी सेवा में रहने के समय जीपीएफ की कटौती करवाते है। जब सेवानिवृत्ति या निधन के बाद उसके भुगतान की बारी आती है तो राशि कम मिलती है। कर्मचारी से राशि जमा होने के सबूत मांगे जाते है। जिसके ऊपर लिखे तीन उदाहरण है। जिनमें महिलाओं ने संघर्ष कर आखिर अपने हक की राशि प्राप्त की।यह राशि भी उन महिलाओं को राज्य महिला आयोग में गुहार लगाने के बाद मिली। राशि मिलने में भी पांच से साल का समय लग गया।

पूरा प्रोसेस ऑनलाइन

वर्ष 2012 के बाद पूरा प्रोसेस ऑनलाइन है। उसमें सभी कार्मिकों को पूरा पैसा दिख रहा है। यदि किसी का पैसा अटका है तो उससे पासबुक व जीए 55 मांग की जाती है। वर्ष 2012 से पहले कर्मचारी की मैन्यूअलफिडिंग होती थी। उस समय कार्मिक के सर्विस की सब जगह से खाता मंगवाया जाता था। कई बार कर्मचारी अधिक राशि भी कटवा लेते थे। उन सभी का मिलान करने के बाद भुगतान होता था। अब लेजर इस कारण मंगवाते हैं, जिससे कर्मचारी को अधिक राशि नहीं जाए।

विश्वास पारीक, अतिरिक्त निदेशक, राज्य बीमा एवं प्रावधायी निधि विभाग, जयपुर