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जिला प्रमुख – सीइओ में घमासान

locationपालीPublished: Sep 10, 2019 01:49:17 am

Submitted by:

Satydev Upadhyay

पाली. पंचायती राज में जिला प्रमुख प्रेमाराम सीरवी और मुख्य कार्यकारी अधिकारी हरिराम मीणा के बीच चल रहा घमासान महज जिला स्थापना समिति की बैठक का नतीजा ही नहीं है, बल्कि महीनों पहले ही दोनों के संबंधों में दरारें आ गई थी।

जिला प्रमुख - सीइओ में घमासान

जिला प्रमुख – सीइओ में घमासान

बिना अनुमति स्वीकृतियां निकाली, मना किया तभी से रोड़ा अटका रहे: जिला प्रमुख
वे चाहते हैं उनके अनुसार काम करें परिषद, नियमों से परे नहीं जा सकता : सीइओ
पाली. पंचायती राज में जिला प्रमुख प्रेमाराम सीरवी और मुख्य कार्यकारी अधिकारी हरिराम मीणा के बीच चल रहा घमासान महज जिला स्थापना समिति की बैठक का नतीजा ही नहीं है, बल्कि महीनों पहले ही दोनों के संबंधों में दरारें आ गई थी। इसका असर जिला परिषद के काम-काज पर भी सीधा नजर आ रहा है। पत्रिका ने जिला प्रमुख और सीइओ से मन-मुटाव के कारणों पर विस्तृत बातचीत की, जिसमें दोनों ने खुलकर एक-दूसरे पर आरोपों के तीर चलाए। जिला प्रमुख ने सीइओ पर काम में अडंग़ा लगाने और परिषद की छवि धुमिल करने जैसे कई आरोप मढ़े है। वहीं सीइओ मीणा ने मुखर होकर जिला प्रमुख पर नियम विरुद्ध काम कराने के लिए दबाव बनाने का आरोप लगाया। पेश है दोनों के आरोप-प्रत्यारोपों की विस्तृत जानकारी…
जिला प्रमुख से सीधी बात
सवाल: स्थापना समिति की बैठक में आपकी सहमति थी?
जवाब-28 अगस्त को दोपहर 1 बजे स्थापना समिति की बैठक रखी गई थी। इसकी सूचना मुझे बैठक से एक घंटे पहले ही मिली। एक बजे उपखण्ड अधिकारी और जिला शिक्षा अधिकारी मेरे चैंबर में पहुंच गए, लेकिन सीइओ नहीं आए। कोरम के अभाव में मैंने बैठक स्थगित कर दी थी।
सवाल: आरोप है कि आपने मौखिक आदेश दिए?
जवाब : मैंने कोई मौखिक आदेश नहीं दिए। मैं ऑफिस से निकल चुका था। सीइओ ने सांठगांठ कर साढ़े पांच बजे बैठक बुला ली। तब तक मैं गांव पहुंच गया था। उन्होंने मेरी बिना अनुमति यह तय कर लिया। अन्य सदस्यों से हस्ताक्षर करवाए और अनुशंसा के लिए फाइल मेरे यहां भिजवा दी। मैं जब मौजूद ही नहीं था तो हस्ताक्षर क्यों करूंगा। सीइओ जिला परिषद की छवि धुमिल करने पर तुले हुए हैं। इसकी शिकायत मुख्यमंत्री और पंचायतराज मंत्री से करूंगा।
सवाल: सीइओ से विवाद तो पुराना चल रहा…, कोई खास वजह?
जवाब: सीइओ को मैं ही यहां लाया था। असली वजह तो यह है कि उन्होंने मेरी अनुशंसा के बिना ही 80 लाख रुपए की स्वीकृतियां जारी कर दी थी। मैंने मना किया तभी से मेरे हर काम में रोड़ा अटका रहे हैं। जिला परिषद में काफी फण्ड पड़ा है, लेकिन सीइओ की मनमानी के कारण काम नहीं हो रहे। सरकार बदलते ही सीइओ की टोन भी चेंज हो गई।
सवाल: आरोप है कि आप नियम विरुद्ध कार्यों के लिए दबाव बना रहे हैं?
जवाब: मैंने कोई दबाव नहीं बनाया। सीइओ जिला परिषद की साख धुमिल करने पर तुले हुए हैं। मैं तो खुद नियमों में चलना पसंद करता हूं। कोई एक भी काम बता दे कि मैंने दबाव बनाया हो। जनप्रतिनिधि होने के नाते लोग मेरे पास आते हैं। नियमानुसार कार्यों की अनुशंसा करता हूं।
मुख्य कार्यकारी अधिकारी से सीधी बात
सवाल: जिला प्रमुख का आरोप है कि आप उनके हर काम में रोड़ा अटका रहे?
जवाब: ऐसी कोई बात नहीं है। जो काम नियमानुसार है वे हो रहे हैं। नियमों से परे जाकर काम करना मेरे लिए संभव नहीं है। यह उन्हें अवगत भी करा चुका हूं। इसके बावजूद वे दबाव बनाते रहते हैं। कुओं पर पाइल लाइन ले जाने और चुनिंदा पंचायतों को 30-40 लाख का बजट ले जाने की स्वीकृति जारी कराना चाह रहे। यह नियमों में नहीं है।
सवाल: आपने जिला प्रमुख की बिना अनुमति स्वीकृतियां निकाली?
जवाब: ऐसी कोई स्वीकृति नहीं है जो 10 लाख से अधिक हो। सरकार ने 10 लाख रुपए तक का अधिकार सीइओ को दे रखा है। जिला प्रमुख एचएफसी का अधिकांश बजट रायपुर में खर्च कराना चाहते हैं। नियमों में ऐसा संभव नहीं। जनप्रतिनिधियों के प्रस्तावों पर डेढ़ करोड़ की स्वीकृतियां जा कर चुके हैं।
सवाल: आरोप है कि आपने परिषद की छवि धुमिल की?
जवाब: मैंने नियमों की पालना की है। व्यवहार और कार्यप्रणाली से सभी को संतुष्ट करने का प्रयास किया। परिषद की छवि को भी चमकाया है। मैंने आवास योजना में पाली को 30वें स्थान से 12वें और स्वच्छ भारत में 22वें से 14वें स्थान पर पहुंचाया। मनरेगा में अंतिम पायदान से अब 8वें नंबर पर है। ग्रामीण विकास की अन्य योजनाओं में भी बेहतर प्रगति की है।
सवाल: आरोप है कि उन्हीं की डिजायर पर यहां आए, सरकार बदलते ही आपकी टोन बदल गई?
जवाब: टोन बदलने जैसी कोई बात नहीं। सरकार के आदेश पर यहां आया हूं। जिला प्रमुख अपने मन-मुताबिक काम करने के लिए कहते हैं, लेकिन ऐसा संभव नहीं। हर काम के लिए नियम बना हुआ है। पूरे सिस्टम को अकेला सीइओ नहीं चलाता। परीक्षण के लिए पूरी चैन बनी हुई है। चैक एंड बैलेंस होता है। लेखा और तकनीकी समेत कई कार्मिकों-अधिकारियों के परीक्षण के बाद अंतिम मोहर लगती है।

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