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Bihar Assembly Elections 2025: नीतीश का टोपी से इंकार पर बढ़ा विवाद, जानें जेडीयू का मुसलमानों से कैसा रहा रिश्ता

Bihar Assembly Elections 2025 बिहार में विधानसभा चुनाव को लेकर मैदान तैयार हो गया है। वोटरों को लेकर गोलबंदी भी होने लगी है। इसी बीच नीतीश कुमार का टोपी कांड से जुड़ा वीडियो वायरल होने लगा है।

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nitish kumar

बिहार में टोपी पर राजनीति

Bihar Assembly Elections 2025: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का एक वीडियो बड़ी तेजी से सोशल मीडिया पर शेयर हो रहा है। यह वीडियो मदरसा बोर्ड के 100वीं वर्षगांठ पर आयोजित कार्यक्रम का है। वीडियो में सीएम अपने मंत्री मोहम्मद जमा खान को टोपी पहनाते दिख रहे हैं। इस वीडियो पर ही विवाद शुरू हुआ है और वीडियो शेयर होने लगा है।

टोपी पर विवाद

इस पर दो तरह की राय बनी है। एक उनके समर्थक हैं और दूसरे इसपर आलोचना कर रहे हैं। इसपर सीएम के आलोचकों का कहना है कि नीतीश कुमार खुद टोपी पहनने से इनकार करते हुए जामा खान को वह टोपी पहना दी है। यह ठीक नहीं है। जबकि उनके समर्थकों का कहना है कि नीतीश कुमार टोपी पहनने से इनकार नहीं किया था। वे अक्सर ऐसा करते रहते हैं। कोई उनको माला भी पहनाने का प्रयास करता है तो वे उसे ही वह माला पहना दिया करते हैं। टोपी पहनाने या न पहनाने का विवाद अब बिहार में मुद्दा बनता जा रहा है।

तेजस्वी यादव ने भी शेयर किया वीडियो

आरजेडी प्रवक्ता ने इसपर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहते हैं कि नीतीश कुमार पूरी तरह अचेत हैं। वो पहले कहते थे टोपी भी पहनना है और टीका भी लगाना है। लेकिन वे अब दोनों काम बंद कर दिए। सीतामढ़ी गए तो उन्होंने मंदिर में टीका लगाने से इनकार कर दिया और अब उन्होंने टोपी पहनने से मना कर दिया है। वो किसी भी धर्म का सम्मान नहीं करते हैं। सार्वजनिक मंच पर नीतीश कुमार का यह व्यवहार दूसरों को असहज करता है।

तेजस्वी यादव ने शेयर किया वीडियो

नेता प्रतिपक्ष ने भी इससे जुड़ा वीडियो शेयर करते हुए लिखा है कि मदरसा एजुकेशन बोर्ड के शताब्दी वर्ष समारोह में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जबरन मदरसा शिक्षकों को बुलाया और फिर सम्मान स्वरूप टोपी पहनने से इनकार कर दिया। तेजस्वी यादव आगे लिखते हैं कि पिछले कई महीने से शिक्षकों की बहाली नहीं होने से नाराज़ लोगों ने जमकर नारेबाजी और हंगामा भी किया है। वे लोग कह रहे थे कि मुख्यमंत्री मुसलमानों को बेवक़ूफ़ बनान बंद करें। तेजस्वी के बाद कई और लोगों ने भी इसपर नीतीश कुमार पर तंज कसा है। इसके अगले दिन सीएम नीतीश कुमार गया जी में थे। उन्होंने इस पूरी घटना पर गया जी में पीएम मोदी की सभा में मंच से कहा कि 2005 में सत्ता में आने के बाद हमारी सरकार ने अल्पसंख्यकों के लिए जितना काम किया है उतना कोई नहीं किया है।

बिहार में मुसलमानों की कितनी आबादी है ?

बिहार की 10.4 करोड़ की आबादी में करीब 18 फीसदी मुसलमान है। बिहार में मुसलमान तीन खेमों में बंटे हुए हैं। मुसलमानों का एक बड़ा खेमा राष्ट्रीय जनता दल के साथ है। जबकि दूसरा खेमा जनता दल यूनाइटेड और कुछ कांग्रेस के साथ है। लेकिन, पिछले विधानसभा चुनाव 2020 से बिहार में मुसलमान वोटों की एक और दावेदारी सामने खड़ी हो गई थी।उसका सीमांचल में प्रदर्शन भी ठीक रहा। हालांकि पांच में से चार विधायक बाद में आरजेडी में शामिल हो गए थे। हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम को पांचों विधायक सीमांचल से ही मिले थे। बिहार के सीमांचल के इलाके को मुस्लिम बहुल माना जाता है। इसमें चार जिले- कटिहार, अररिया, पूर्णिया और किशनगंज आते हैं। इसके अलावा राजधानी पटना और भागलपुर में भी मुस्लिम आबादी ठीक ठाक है।

जेडीयू का कैसा है मुसलमानों से रिश्ता

नीतीश की पार्टी जेडीयू ने पिछले चुनाव 2020 में 11 मुसलमानों को अपना उम्मीदवार बनाया था। लेकिन, उनमें से एक भी प्रत्याशी चुनाव नहीं जीता। बाद में बसपा के टिकट पर जीते जमा खान को जेडीयू में शामिल कराकर नीतीश कुमार ने उन्हें मंत्री बनाया था। आज जिस टोपी पर विवाद हो रहा है वो जमा खान ही हैं। साल 2020 का चुनाव पहला मौका था, जब जेडीयू से कोई मुस्लिम उम्मीदवार नहीं जीता था। इससे पहले 2005 के चुनाव में जेडीयू के टिकट पर चार मुस्लिम विधायक चुने गए थे। इसी तरह से 2010 के चुनाव में जेडीयू के टिकट पर सात मुसलमान जीते, 2015 के चुनाव में जेडीयू से टिकट पर पांच मुसलमान जीते थे। साल 2020 के चुनाव में 19 मुसलमान विधायक चुने गए थे। इनमें राजद के आठ, एआईएमआईएम के पांच, कांग्रेस के चार, भाकपा (माले) और बसपा के एक-एक मुस्लिम विधायक शामिल थे।

नीतीश कैबिनेट में नहीं मिला था जगह

वर्ष 2020 में जदयू के टिकट से कोई भी मुस्लिम के चुनाव नहीं जीतने पर कैबिनेट में भी उनको स्थान नहीं मिला था। इसपर जब सवाल उठे तो जदयू की ओर से कहा गया कि पार्टी में कोई मुसलमान विधायक के नहीं था इसलिए उनको जगह नहीं मिली है। इसपर वीआईपी के मुकेश कुमार को कैबिनेट में शामिल करने का मुद्दा उठा था। अल्पसंख्यकों ने कहा था कि जब मुकेश सहनी चुनाव हार गए तो उनको कैसे मंत्री बना दिया। जब मुकेश बन सकते हैं तो फिर कोई अल्पसंख्यक क्यों नहीं?

कैसे रहे हैं रिश्ते

नीतीश कुमार बार-बार कहते हैं कि मेरे राज में बिहार में कभी कोई सांप्रदायिक दंगा नहीं हुआ। भागलपुर के दंगों के बाद अपनी सरकार के कामकाज को भी वो अपनी उपलब्धी बताते हैं। लेकिन, केंद्र की नरेंद्र मोदी की सरकार की ओर से लाए गए तीन तलाक बिल, वक्फ बिल पर नीतीश कुमार की जदयू के समर्थन पर बिहार के मुसलमान नीतीश कुमार से नाराज हैं। शुक्रवार को पहली बार मुसलमानों ने नीतीश कुमार का विरोध नहीं किया है इससे पहले मुसलमान नेताओं ने नीतीश कुमार की इफ्तार पार्टी का विरोध तक कर दिया था।