
महंगाई भत्ते में बढ़ोतरी जल्द होने वाली है। (फोटो : Patrika)
बिहार का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) देश में सबसे कम है। भारत के राज्यों की प्रति व्यक्ति जीडीपी (GDP Per Capita) को दर्शाने वाले 2024 के आंकड़ों के मुताबिक बिहार की स्थिति देश में सबसे खराब है। बिहार की प्रति व्यक्ति आय मात्र 813 डॉलर है, जबकि भारत की औसत 2677 डॉलर है। यह दर्शाता है कि बिहार 3 गुना पीछे चल रहा है। आरबीआई की लिस्ट के मुताबिक जहां तेलंगाना (4745 डॉलर), कर्नाटक (4371 डॉलर) और तमिलनाडु (4323 डॉलर) जैसे राज्य आर्थिक रूप से आगे हैं, वहीं बिहार, उत्तर प्रदेश (1333 डॉलर) और झारखंड (1440 डॉलर) जैसे राज्य पिछड़े हुए हैं।
इस अंतर से साफ है कि देश में आर्थिक विकास में समानता नहीं है। बिहार को अपनी रैंकिंग में सुधार करना है तो औद्योगिक निवेश, शिक्षा सुधार और रोजगार के अवसर बढ़ाने पर फोकस करना होगा। रिपोर्ट बताती है कि बिहार के जिलों में भी भयंकर असमानता है। जहां राजधानी पटना का GDP 32.4 बिलियन डॉलर है, वहीं बाकी टॉप जिले कहीं नहीं ठहरते। मसलन मुजफ्फरपुर (5.7 बिलियन डॉलर), पूर्वी चंपारण (4.8 बिलियन डॉलर), बेगूसराय (4.2 बिलियन डॉलर), भागलपुर और गया (4.1 बिलियन डॉलर)। ऐसे में सवाल उठता है कि क्यों पटना के बाद पूरा बिहार मानो आर्थिक रूप से ठहर गया हो?
GDP के आंकड़े बताते हैं कि राज्य की अर्थव्यवस्था 'पटना केंद्रित' होती जा रही है यानी बाकी जिलों की हिस्सेदारी बेहद कम है। पटना राज्य के कुल GDP का लगभग 40% अकेले योगदान करता है। दूसरे नंबर पर मुजफ्फरपुर, पटना से 6 गुना पीछे है। गया और भागलपुर जैसे ऐतिहासिक शहर, जहां कभी व्यापार और शिक्षा की धारा बहती थी, अब विकास की दौड़ में पिछड़ चुके हैं।
(क) ‘आर्थिक ताकत के बिना कोई इज्जत नहीं’
एक्स यूजर Bihari William ने बिहार पर आरबीआई डेटा शेयर किया और कहा-जब तक बिहार निचले पायदान पर रहेगा, तब तक उसकी भाषा उपेक्षित रहेगी, व्यंजन पिछड़े कहे जाएंगे और इतिहास को झूठा बताया जाएगा। इकोनॉमी ही संस्कृति को सम्मान दिला सकती है। जब तक आर्थिक ताकत नहीं बढ़ेगी, तब तक बिहारी अस्मिता को बाहरी दुनिया गंभीरता से नहीं लेगी।
(ख) ‘पहले खुद को बदलो’
Nitin Chandra नाम के यूजर कहते हैं- जब तक बिहार के लोग अपनी भाषाओं और खानपान को खुद ही 'साइड डिश' मानते रहेंगे, तब तक विकास नहीं होगा। यहां आत्मचिंतन की जरूरत पर है। बिहार का पिछड़ापन सिर्फ सरकार की नाकामी नहीं, बल्कि अपनी ही विरासत से दूरी का नतीजा है।
(ग) ‘समाज को खुद बदलना होगा’
James और Shukla नाम के यूजर कहते हैं- गुंडागर्दी, भोकाल और बाहुबली संस्कृति से बाहर निकलकर, अगर लोग तार्किक सोच और शिक्षा को अपनाएं, तभी बदलाव होगा। यह एक कटु लेकिन सच्ची बात है। जब तक समाज में आत्मालोचना, शिक्षा का महत्व और फिलॉसफिकल सोच नहीं आएगी, बदलाव असंभव है।
राजनीतिक मामलों के जानकार चंद्रभूषण बताते हैं कि बिहार में विकास रुकने के पीछे सरकारी तंत्र और स्थानीय लोग दोनों जिम्मेदार हैं। लेकिन नेक नीयत के साथ काम हो तो हालात में सुधार संभव है।
सरकारी निवेश और प्राथमिकताएं : राज्य में बड़े उद्योगों का न आना एक बड़ी समस्या है। बिजली, पानी, सड़क जैसी मूलभूत सुविधाएं कई जिलों में अब भी बदहाल हैं। नीतिगत अस्थिरता और लगातार बदलती सरकारें भी निवेशकों को हतोत्साहित करती हैं।
श्रम का पलायन : हर साल लाखों बिहारी युवा दूसरे राज्यों में काम के लिए पलायन कर जाते हैं। स्थानीय प्रतिभा की कमी और रोजगार के अवसरों की कमी इसके मूल कारण हैं।
सामाजिक सोच और व्यवहार : बिहार का एक तबका आज भी ‘दबदबे’ और ‘भय’ की राजनीति करता है। शिक्षा की जगह प्रतियोगी परीक्षा का जुनून, लेकिन उसे व्यावसायिक कौशल में बदलने की प्रक्रिया कमजोर है।
जिलावार आर्थिक विकास नीति : राजनीति विश्लेषक ओपी अश्क बताते हैं कि हर जिले के लिए एक अलग आर्थिक मॉडल बनाना होगा। मसलन भागलपुर में टेक्सटाइल, गया में टूरिज्म और पूर्वी चंपारण में एग्रो इंडस्ट्री बसानी होगी।
सांस्कृतिक आत्मसम्मान का पुनर्निर्माण : मैथिली, मगही, भोजपुरी जैसी भाषाओं को मुख्यधारा में स्थान देना होगा। बिहारी व्यंजनों, कला और इतिहास को आधुनिक मार्केटिंग की जरूरत है।
शिक्षा और उद्यमिता को प्राथमिकता : केवल IAS बनने की दौड़ नहीं, स्थानीय व्यवसाय और नवाचार को बढ़ावा देना होगा।कॉलेजों और ITIs को स्किल सेंटर में बदलना जरूरी है।
Updated on:
20 Jul 2025 06:05 pm
Published on:
20 Jul 2025 04:05 pm
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