
1820 में फैजाबाद की तंग गलियों में जन्मी एक लड़की, जिसके जन्म के साथ ही मां की मृत्यु और बचपन में पिता का साथ छूट गया, ने न केवल अवध की बेगम बनकर इतिहास रचा, बल्कि 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति की मशाल जलाकर अमर हो गई। मुहम्मदी खानम से बेगम हजरत महल बनीं। इस वीरांगना ने अपने बेटे को नवाब घोषित कर, हिंदू-मुस्लिम एकता के साथ लखनऊ को अंग्रेजों से मुक्त कराया। उनकी कहानी संघर्ष, साहस और स्वाभिमान की ऐसी गाथा है, जो आज भी प्रेरणा देती है। आइए जानते हैं पूरी कहानी…।
फैजाबाद के एक गरीब सैयद परिवार में मुहम्मदी खानम का जन्म हुआ। परिवार खुद को पैगंबर मोहम्मद का वंशज मानता था, लेकिन गरीबी ने उनके जीवन को कठिन बना दिया। जन्म के समय ही उनकी मां की मृत्यु हो गई। उनके पिता, जो छोटा-मोटा काम करते थे, पत्नी की मृत्यु के बाद मुहम्मदी को लेकर लखनऊ आ गए। लेकिन जब मुहम्मदी 12 साल की थीं, तब उनके पिता भी चल बसे, जिससे वह पूरी तरह अनाथ हो गईं। उस समय किसी को अंदाजा नहीं था कि यह अनाथ लड़की एक दिन अवध की बेगम बनेगी।
मां-बाप की मृत्यु के बाद मुहम्मदी की जिम्मेदारी उनके चाचा-चाची ने संभाली। चाचा लखनऊ में एंब्रॉयडरी का काम करते थे, लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति हमेशा तंग रही। सुदीप्ता मित्रा की किताब 'A Nawab and A Begum' के अनुसार, एक दिन उनके घर के सामने एक पालकी रुकी। उसमें से दो बुर्का पहने महिलाएं उतरीं और चाची के हाथ में रुपये की गड्डी थमाकर मुहम्मदी को जबरन पालकी में बैठा लिया। यह पालकी लखनऊ के चौक इलाके में रुकी, जो उस समय तवायफों का गढ़ था।
मुहम्मदी को लाने वाली महिलाएं, अम्मन और इमामम, कभी खुद तवायफ थीं। उम्र ढलने के बाद उन्होंने शाही हरम के लिए युवतियों को तैयार करने का काम शुरू किया था। उनकी कोठी में मुहम्मदी की सख्त ट्रेनिंग शुरू हुई। सुबह जल्दी उठकर देर रात तक संगीत, नृत्य, फारसी और अन्य कलाओं की तालीम दी जाती थी। इस प्रशिक्षण ने मुहम्मदी के व्यक्तित्व को निखारा और उन्हें एक हुनरमंद कलाकार बनाया।
23 साल की उम्र में मुहम्मदी खानम की जिंदगी ने नया मोड़ लिया। उनकी एंट्री अवध के नवाब वाजिद अली शाह के शाही हरम, जिसे ‘परीखाना’ कहा जाता था, में हुई। कुछ इतिहासकारों का दावा है कि वह पहले खवासीन (नौकरानी) के रूप में हरम में आईं, लेकिन अपने गायन, नृत्य और आकर्षक व्यक्तित्व से उन्होंने जल्द ही नवाब का दिल जीत लिया। नवाब ने उनका नाम ‘महक परी’ रखा और उनसे मुता विवाह (कांट्रैक्ट मैरिज) किया। बाद में उन्हें ‘इफ्तिखार-उन-निशा’ की उपाधि दी गई, और वह बेगम हजरत महल के नाम से मशहूर हुईं।
1856 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने अवध पर कब्जा कर लिया और नवाब वाजिद अली शाह को गद्दी से हटाकर कलकत्ता निर्वासित कर दिया। नवाब ने लखनऊ छोड़ने से पहले अपनी नौ बीवियों को तलाक दे दिया, जिनमें बेगम हजरत महल भी शामिल थीं। नवाब के जाने के बाद बेगम लखनऊ में ही रहीं और अपने बेटे बिरजिस कद्र की परवरिश करने लगीं।
1857 में जब प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारी पूरे देश में भड़की, तो लखनऊ में इसकी अगुवाई बेगम हजरत महल ने की। उन्होंने अपने नाबालिग बेटे बिरजिस कद्र को अवध का नवाब घोषित किया और अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध का बिगुल बजा दिया। उनके नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने लखनऊ को चारों ओर से घेर लिया। चिनहट और दिलकुशा की लड़ाइयों में अंग्रेजों को करारी हार का सामना करना पड़ा। बेगम ने गोंडा, फैजाबाद, सलोन, सुल्तानपुर, सीतापुर और बहराइच जैसे क्षेत्रों को अंग्रेजों से मुक्त कराकर लखनऊ पर फिर से कब्जा कर लिया।
बेगम हजरत महल की सैन्य रणनीति और नेतृत्व से प्रभावित होकर नाना साहब, राजा जयलाल और राजा मानसिंह जैसे कई राजाओं ने उनका साथ दिया। उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता का परिचय देते हुए अंग्रेजों के खिलाफ एकजुट होकर लड़ाई लड़ी। बेगम ने अंग्रेजों पर हिंदू-मुस्लिमों के बीच फूट डालने का आरोप भी लगाया, जिससे उनकी छवि एक दूरदर्शी और साहसी नेता के रूप में उभरी।
1858 में अंग्रेजों ने भारी सेना और हथियारों के बल पर लखनऊ पर फिर से कब्जा कर लिया। बेगम हजरत महल को अपना महल छोड़कर पीछे हटना पड़ा। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। अवध के ग्रामीण इलाकों और जंगलों में जाकर उन्होंने लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ संगठित किया। नाना साहब और फैजाबाद के मौलवी अहमद शाह के साथ मिलकर उन्होंने शाहजहांपुर में गुरिल्ला युद्ध की रणनीति अपनाई और अंग्रेजों को कड़ी टक्कर दी।
मौलाना अहमद शाह की हत्या और हालात बिगड़ने के बाद बेगम हजरत महल के पास अवध छोड़ने के सिवा कोई रास्ता नहीं बचा। वह अपने बेटे बिरजिस कद्र के साथ नेपाल चली गईं। नेपाल के राजा राणा जंगबहादुर उनके साहस और स्वाभिमान से प्रभावित थे और उन्होंने बेगम को शरण दी। नेपाल में बेगम ने एक साधारण जीवन जिया और 1879 में यहीं उनकी मृत्यु हो गई।
Updated on:
12 Aug 2025 08:44 am
Published on:
11 Aug 2025 09:24 pm
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