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जिस बंगले में रहे थे बाबा अंबेडकर, वह जिंदल घराने ने कैसे ले लिया और फिर खाली कैसे किया?

Dr Ambedkar: मैं अब सरकारी आवास में एक दिन भी नहीं रहना चाहता क्योंकि अब मैं सरकार का हिस्सा नहीं हूं… बाबा साहेब ने 31 अक्टूबर 1951 को हिंदू कोड बिल पर तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू से गहरी असहमति के कारण कैबिनेट मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था।

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Dr. Ambedkar

कहां और कैसे बीते थे डॉ. अंबेडकर के अंतिम दिन? (इमेज सोर्स: पत्रिका डॉट कॉम)

Dr Ambedkar Last Days: जब भी डॉ. रविंद्र कुमार उत्तर दिल्ली के 26 अलीपुर रोड (अब शाम नाथ मार्ग) के पास से गुजरते हैं, तो उनका मन अपने बचपन के दिनों में चला जाता है। उनके पिता, श्री होती लाल पिपल डॉ. भीमराव अंबेडकर के 26 अलीपुर रोड स्थित घर के केयरटेकर थे। वे अपने पुत्र को बाबा साहेब और उस घर से जुड़ी कई कहानियां सुनाया करते थे। होती लाल पिपल ही वह शख्स थे जिन्होंने 6 दिसंबर 1956 को दुनिया को बताया था कि बाबा साहब का देहांत हो गया है।

बाबा साहेब ने 31 अक्टूबर 1951 को हिंदू कोड बिल पर तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू से गहरी असहमति के कारण कैबिनेट मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद, वे 22 पृथ्वीराज रोड स्थित अपने सरकारी आवास को छोड़कर अगले ही दिन 26 अलीपुर रोड में शिफ्ट हो गए।

क्यों छोड़ी नेहरू कैबिनेट

हालांकि, नियमों के अनुसार वह वहां कुछ महीने और रह सकते थे, लेकिन उन्होंने कुछ और ही सोचा और अपने पर्सनल असिस्टेंट नानक चंद रत्तू और होती लाल से कहा कि वह किसी भी हालत में अगले दिन 22 पृथ्वीराज रोड छोड़ देना चाहते हैं। यह घर उन्हें 1946 में पंडित नेहरू की अंतरिम सरकार में कानून मंत्री बनने के बाद आवंटित हुआ था। यहां पर ही उन्होंने 15 अप्रैल 1948 को डॉ. सविता अंबेडकर से सादगी से विवाह किया था। अब यह घर तुर्की के राजदूत का निवास है, और कई लोग चाहते हैं कि यहां डॉ. अंबेडकर की प्रतिमा या धड़ प्रतिमा लगाई जाए। बाबा साहेब राजधानी में कुछ समय तिलक मार्ग में भी रहे (जो पहले हार्डिंग लेन के नाम से जाना जाता था)।

नए घर की तलाश

होती लाल पिपल ने मुझे करीब 20 साल पहले अपने राजधानी के वसंत कुंज स्थित घर पर बताया था, "बाबा साहेब ने मंत्री पद को छोड़ने के बाद मुझसे कहा था कि मैं अब सरकारी आवास में एक दिन भी नहीं रहना चाहता क्योंकि अब मैं सरकार का हिस्सा नहीं हूँ।" इसके बाद, बाबा साहेब के नया घर तलाशने में होती लाल, रत्तू और अन्य लोग जुट गए। इसी बीच, सिरोही के पूर्व राजा ने बाबा साहेब से अपने 26 अलीपुर रोड स्थित घर में शिफ्ट करने का प्रस्ताव रखा। बाबा साहेब और उनकी पत्नी सविता जी ने इस प्रस्ताव पर विचार करने के बाद 26 अलीपुर रोड में रहने का फैसला किया, लेकिन एक शर्त के साथ – वह किराया देंगे। आखिर राजा को बाबा साहेब की इस शर्त को मानना पड़ा।

कब तक रहे वहां

इसके बाद बाबा साहेब 6 दिसंबर 1956 तक यहां पर ही रहे। यहाँ पर उनके रसोइये सुदामा जी रहते थे, जबकि रत्तू और होती लाल दिन भर उनके साथ रहते थे और उनका विशाल पुस्तकालय, पत्र और आगंतुकों का ध्यान रखते थे।डॉ. रविंद्र कुमार, जो स्वयं कवि और व्यंग्यकार हैं, कहते हैं, " बाबा साहेब यहां अपने किराए के घर में घंटों तक सामाजिक कार्यकर्ताओंऔर अपने प्रशंसकों से मिलते थे। ये स्वतंत्रता प्राप्ति और देश के विभाजन के शुरुआती दिन थे, इसलिए अधिकांश चर्चाएं इन्हीं विषयों पर होती थीं।"
यह भी कहा जाता है कि बाबा साहेब देश के विभाजन के बाद हुई हिंसा से बहुत दुखी थे। इसी घर में उन्होंने अपनी प्रसिद्ध किताब 'बुद्ध और उनका धम्म' लिखी। यह पुस्तक बौद्ध धर्म और बुद्ध के जीवन पर आधारित है और बाबा साहेब की किताब। यह पुस्तक अंग्रेजी में लिखी गई थी और अब कई भाषाओं में अनुवादित हो चुकी है।

पढ़ने-लिखने में गुजरता था वक्त

बाबा साहेब का उस दौर में ज्यादातर वक्त अध्ययन और लेखन कार्यों में ही गुजरता था।आप जैसे ही 26 अलीपुर रोड के अंदर पहुंचते हैं तो आपको कहीं ना कहीं लगता है कि बाबा साहेब यहां पर ही कहीं होंगे। वे कभी भी कहीं से आपके सामने खड़े हो जाएंगे। बेशक, जिस जगह पर बाबा साहेब जैसी शिखर हस्ती ने अपने जीवन के कुछ बरस बिताए वह जगह अपने आप में खास तो है। अलीपुर रोड के इस बंगले में बहुत से कमरे थे। बंगले के आगे एक सुंदर सा बगीचा भी था। उनके घर के दरवाजे सबके लिए हमेशा खुले रहते थे। कोई भी उनसे कभी मिलने के लिए आ सकता था। वे सबको पर्याप्त वक्त देते थे।

बाबा साहेब के जीवन का अध्ययन कर रहे सुधीर हिलसायन बताते हैं कि उनसे 26 अलीपुर रोड में चिंतक, छात्र, पत्रकार, अध्यापक, दलित एक्टिविस्ट वगैरह उनकी पुस्तकों पर बात करने के लिए भी आते थे जिनमे ‘थॉट्स ऑन पाकिस्तान’ भी शामिल है, जिसमें उन्होंने मुस्लिम लीग की मुसलमानों के लिए एक अलग देश पाकिस्तान की मांग की आलोचना की।

बाबा साहेब की मृत्यु के बाद सविता जी करीब 3 सालों तक इसी बंगले में रही। उसके बाद सिरोही के राजा ने बंगले को किसी मदन लाल जैन नाम के व्यापारी को बेच दिया। जैन ने आगे चलकर बंगले को स्टील व्यवसायी जिंदल परिवार को बेच दिया। फिर जिंदल परिवार इसमें रहने लगा। उसने बंगले में कुछ बदलाव भी किए।

असर अंबेडकरवादियों की मांग का

सन 2000 के आसपास देशभर के अंबेडकवादी मांग करने लगे कि 26 अलीपुर रोड के बंगले को बाबा साहेब के स्थायी स्मारक के रूप में विकसित किया जाए। मांग ने जोर पकड़ा। तब केन्द्र की अटल सरकार भी हरकत में आई। उसने जिंदल परिवार से बंगले को लिया। बदले में उसे बंगले के बराबर जमीन उसी क्षेत्र में दी। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 2 दिसंबर,2003 को इस बंगले को देश को समर्पित किया बाबा साहेब के स्मारक के रूप में। मशहूर लेखिका और सेंसर बोर्ड की पूर्व मेंबर डॉ अरुणा मुकिम का घर बाबा साहेब स्मारक के करीब ही है। वे कहती हैं कि उन्हें सच में इस बात का गर्व होता है कि वो जहां रहती हैं उसके पास ही बाबा साहेब रहे। उस जगह को देखकर मन प्रसन्न हो जाता है।