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चांदी की तेजी में चीन का खेल! कैसे सप्लाई चेन को कंट्रोल कर रहा है ड्रैगन

चांदी सिर्फ इंडस्ट्रियल मेटल ही नहीं है बल्कि एक कीमती मेटल भी है, जो कि हाई टेक मैन्युफैक्चरिंग और ग्लोबल फाइनेंशियल रिजर्व दोनों के लिए जरूरी।

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चांदी ने इस साल अबतक 155% से ज्यादा का रिटर्न दिया है (PC: Canva)

दुनिया भर में चांदी की तेजी ने सबको हैरान कर दिया है। दुनिया का ध्यान सोने के अलावा अब चांदी पर आ टिका है। काफी हद तक ये बात सही है कि बदलते दौर के हिसाब से जब से आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, सेमीकंडक्टर डिमांड, इलेक्ट्रिक व्हीकल और डेटा सेंटर्स में चांदी की जरूरत ने जोर पकड़ा है, कीमतें आसमान पर पहुंच गईं हैं। लेकिन एक बात और जिस ओर अब लोगों का ध्यान जा रहा है और सवाल बनकर घूम रहा है। वो ये कि क्या चांदी की इस तेजी के पीछे चीन की कोई साज़िश है।

इस साल चांदी ने अबतक तकरीब 155% का रिटर्न दिया है। चांदी की कीमतें अपनी रिकॉर्ड ऊंचाई के आस-पास ही हैं। अब चीन कैसे चांदी को नियंत्रित कर रहा है, इस खेल को समझना मुश्किल नहीं है। चांदी की ग्लोबल रिफाइनिंग के 60–70% हिस्से पर चांदी का कब्जा है, यानी 60–70% तैयार चांदी दुनिया के बाजारों में चीन से ही आती है। यानी चीन जब चाहे दुनिया के लिए ग्लोबल सप्लाई को डिस्टर्ब कर सकता है।

चीन ने सख्त किया चांदी का एक्सपोर्ट

सप्लाई पर नियंत्रण को सख्त करके चीन चांदी को ऐसे हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहा है, जैसे पहले तेल और रेयर अर्थ के लिए किया था। चांदी की भूमिका और भी रणनीतिक है। यह सिर्फ इंडस्ट्रियल मेटल ही नहीं है बल्कि एक कीमती मेटल भी है, जो कि हाई टेक मैन्युफैक्चरिंग और ग्लोबल फाइनेंशियल रिजर्व दोनों के लिए जरूरी है, लेकिन चीन ये कर कैसे रहा है, इसको समझिए।

चीन चांदी को हथियार बनाकर ग्लोबल इकोनॉमिक वॉर को जीतना चाहता है। इसलिए चीन ने 1 जनवरी, 2026 से अपनी एक्सपोर्ट नीतियों में बदलाव किए हैं। इन नीतियों के तहत चांदी के एक्सपोर्ट पर कड़े नियंत्रण लागू किए जाएंगे।

  • चांदी के एक्सपोर्ट के लिए अब सरकारी लाइसेंस की जरूरत होगी। यानी कंपनी बिना चीन की सरकार की मंजूरी के चांदी को दूसरे देशों में एक्सपोर्ट नहीं कर पाएंगी।
  • ये लाइसेंस केवल चुनिंदा बड़ी कंपनियों को ही मिलेगा जो सरकार की कड़ी शर्तों का पालन करेंगी, इसमें छोटी-मोटी कंपनियों अपने आप ही बाहर हो जाएंगी।
  • शर्तों के मुताबिक वो कंपनियां जिनका सालाना प्रोडक्शन 80 टन या इससे ज्यादा होगा और क्रेडिट लिमिट अच्छी होगी, केवल उन्हें ही लाइसेंस दिया जाएगा।

डिमांड-सप्लाई का गैप बढ़ा

चीन ये जानता है कि दुनिया में चांदी की डिमांड हमेशा से ज्यादा रही है और सप्लाई कम, जो कि बीते 5 साल में ये गैप और बढ़ा है। डेटा के मुताबिक 2025 में ग्लोबल चांदी की डिमांड करीब 1.12 से 1.20 बिलियन आउंस तक पहुंचने का अनुमान है, जबकि कुल सप्लाई 1.01 बिलियन आउंस के करीब है। यानी 95 से 150 मिलियन आउंस का गैप है। जो कि काफी बड़ा है। चांदी का उत्पादन दो तरह से होता है, पहला माइनिंग से आता है और दूसरा री-साइक्लिंग से आता है। नई माइंस शुरू होने में 8 से 12 साल का वक्त लगता है और रीसाइक्लिंग बीते कई सालों से 180 मिलियन आउंस सालाना पर टिकी है। यानी चांदी के इस सप्लाई-डिमांड गैप को भरने का तुरंत कोई हल नही है। ऐसे में अगर चीन चांदी की सप्लाई को नियंत्रित कर दे, तो जाहिर है दुनिया में सप्लाई और ज्यादा टाइट हो जाएगी और चांदी के दाम आसमान पर पहुंच जाएंगे। चीन यही कर रहा है।

तेजी से घट रही है फिजिकल इन्वेंटरी

एक तरफ चीन चांदी की सप्लाई को कस रहा है, तो दूसरी तरफ दुनिया भर में चांदी की फिजिकल इन्वेंटरी तेजी से कम हो रही। अमेरिका में कॉमेक्स की रजिस्टर्ड इन्वेंटरी 2020 से 70% से ज्यादा कम हो चुकी है, और दिसंबर 2025 में बड़े डिलीवरी ड्रॉडाउन देखे गए। डिलीवरी ड्रॉडाउन मतलब लोग फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स पर असली चांदी की डिलीवरी ले रहे हैं। शंघाई में इन्वेंटरी दशक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है। कुछ इंडस्ट्रियल इलाकों में उपलब्ध चांदी के रिजर्व सिर्फ 30 से 45 दिन के बचे हैं।