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LAC पर बफर जोन का कैसे फायदा उठा रहा चीन? भारत के सामने खड़ी हुई नई चुनौती

साल 2020 में गलवान झड़प के बाद भारत में राष्ट्रवादी भावनाएं चरम पर पहुंच गईं। 15 जून 2020 को जब 20 भारतीय सैनिक शहीद हुए, तो पूरे देश में आक्रोश और गुस्सा फैल गया

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भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग। फोटो- (The Washington Post)

भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच जब साल 2020 में एलएसी (वास्तविक नियंत्रण रेखा) पर संघर्ष हुआ तो उस समय भारत में बड़े पैमाने पर राष्ट्रवादी आक्रोश फैल गया।

यहां तक भारत में लोगों ने चीनी टेलीविजन तक तोड़ डाले थे। साथ ही, चीनी नेता शी जिनपिंग के पुतले भी फूंके गए। उधर, भारत सरकार ने दर्जनों चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगा दिया और कसम खाई कि जब तक सीमा मुद्दे हल नहीं हो जाते, वह चीन के साथ संबंध नहीं सुधारेगी।

पांच साल बाद ठीक हुए रिश्ते

हालांकि, पांच साल बाद भारत-चीन व्यापार फिर से शुरू हो गया है। दोनों देशों के बीच डायरेक्ट फ्लाइट भी चलने लगी हैं। हाल ही में चीन के तियानजिन में एक शिखर सम्मेलन के दौरान शी ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की। दोनों नेताओं ने संबंधों को मजबूत करने का संकल्प लिया।

भारत और चीन के बीच तनाव को कम करने के लिए दोनों देशों के बीच बफर जोन पर सहमति बानी है। बफर जोन एक ऐसा क्षेत्र होता है जहां दोनों देशों की सेनाएं गश्त नहीं करतीं, ताकि टकराव की संभावना कम हो।

भारत के लिए हो सकता है नुकसानदायक

इसपर कुछ आलोचकों का मानना है कि यह भारत के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है। उन्होंने कहा- बफर जोन के चलते भारतीय सेना अब चीन की सीमा से जुड़े उन क्षेत्रों में गश्ती नहीं कर रही, जहां वे रोज पहुंचती थी।

आलोचकों का आरोप है कि भारत की शांत सहमति का फायदा उठाकर चीन एलएसी पर अपनी मजबूत पकड़ बना रहा है। चीन से जुड़े भारत की सीमा के कुछ हिस्सों की निगरानी करने वाले एक सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल ने नाम न छापने की शर्त पर कहा- हमें अपना क्षेत्र वापस पाने की कोशिश करनी चाहिए, लेकिन आने वाले समय में यह एक सपना ही रहेगा।

चीनी रणनीति दो कदम आगे

इसके अलावा, भारत के शिव नादर विश्वविद्यालय में चीनी विदेश नीति पढ़ाने वाले एसोसिएट प्रोफेसर जाबिन जैकब ने कहा- चीनी रणनीति दो कदम आगे और एक कदम पीछे है। फिर भी उनके पास दांव चलने के लिए एक कदम है।

1962 में सीमा को लेकर हुआ था युद्ध

भारत और चीन के बीच 1962 में सीमा को लेकर युद्ध हुआ था। इतने साल बीत जाने के बाद भी यह मुद्दा विवादित है। चीन और भारत की ओर से वहां तैनात सैनिकों के बीच समय-समय पर झड़पें होती रही हैं।

सबसे हालिया टकराव जून 2020 में लद्दाख के सीमावर्ती क्षेत्र में हुआ था। आधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार, इस लड़ाई में कम से कम 20 भारतीय और चार चीनी सैनिक मारे गए।

कई समझौते किए गए

इसके बाद हजारों सैनिकों को अग्रिम चौकियों पर भेजा गया और बाद में पीछे हटने के बाद भी, दोनों पक्षों ने अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ाई हुई रखी। संघर्ष के बाद से, दोनों पक्षों ने सबसे विवादास्पद क्षेत्रों में तनाव को रोकने के लिए कई समझौते किए हैं।

अब हमारे सैनिक वहां पैर नहीं रख सकते- अधिकारी

भारत की पूर्वी सीमा पर स्थित अंतिम गांवों में से एक चुशुल के एक अधिकारी कोंचोक स्टैनजिन ने द वाशिंगटन पोस्ट को बताया- अकेले मेरे निर्वाचन क्षेत्र में लगभग 450 वर्ग किलोमीटर भूमि को बफर जोन में बदल दिया गया है। यह जमीन भारत की थी, लेकिन अब हमारे सैनिक वहां पैर नहीं रख सकते।

जैसे ही भारतीय सेना ने नए प्रोटोकॉल को स्वीकार किया है, उन्होंने चरवाहों को उन क्षेत्रों में जानवर चराने से रोक दिया है जहां वे कभी स्वतंत्र रूप से घूमते थे। इसने लद्दाख में गुस्सा भड़का दिया है।

लेह में गोलीबारी

सितंबर में लेह में पुलिस ने राज्य के दर्जे की मांग कर रहे लोगों पर गोलीबारी की, जिसमें चार लोग मारे गए। जिसके जवाब में लोगों ने भाजपा कार्यालय को आग के हवाले कर दिया ।

इसके बाद, प्रमुख पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक को हिंसा भड़काने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। इस बीच, उनके कुछ समर्थकों का मानना है कि उन्हें आंशिक रूप से चरागाहों के नुकसान और सीमा पर चीनी अतिक्रमण के बारे में मुखर होने के कारण निशाना बनाया गया था।

चीनी निश्चित रूप से आगे आए हैं- अजय शुक्ला

रक्षा विश्लेषक और पूर्व सैन्य अधिकारी अजय शुक्ला ने जमीनी स्तर पर संपर्कों से बातचीत के आधार पर कहा- चीनी निश्चित रूप से आगे आए हैं और उन्होंने एक ऐसी स्थिति स्थापित कर ली है जो उनके लिए पहले से कहीं ज्यादा फायदेमंद है। एकमात्र सवाल यह है कि हमने कितना खोया है?

(वाशिंगटन पोस्ट का यह आलेख पत्रिका.कॉम पर दोनों समूहों के बीच विशेष अनुबंध के तहत पोस्ट किया गया है)