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SCO Summit 2025: मोदी, जिनपिंग और पुतिन की सात बरसों बाद पहली बड़ी मुलाकात के क्या हैं मायने

SCO Summit 2025: तियानजिन में होने वाले एससीओ शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति पुतिन पहली बार सात वर्षों बाद एक साथ मिलेंगे।

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भारत

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MI Zahir

Aug 26, 2025

SCO Summit 2025

तियानजिन में एससीओ शिखर सम्मेलन के लिए की गई सजावट। (फोटो: X Handle Liu Xin刘欣.)

SCO Summit 2025: दुश्मनी लाख सही खत्म न कीजे रिश्ता, दिल मिले या न मिले हाथ मिलाते रहिए। भारत का पड़ोसी देशों के साथ रुख निदा फाजली के इस शेर की तरह साफ नजर आता है। भारत खटास के बावजूद अपने पड़ोसी देशों से रिश्ते खत्म न करने में यकीन रखता है। रूस भारत का मित्र माना जाता है और चीन अमेरिका का शत्रु। चीन के साथ अमेरिका की भी ठनी रहती है, लेकिन अमेरिका की ओर से भारत पर अधिक टैरिफ लगाने के बाद इन देशों के बीच रिश्तों के समीकरण बदलते हुए नजर आ रहे हैं। ऐसे बदले हुए हालात में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग तियानजिन में शंघाई सहयोग संगठन (SCO Summit 2025) के शिखर सम्मेलन (Modi China Visit) में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi ) और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ( Putin SCO Summit) का स्वागत करेंगे। यह बैठक मोदी की चीन की पहली यात्रा होगी, जो पिछले सात सालों में पहली बार हो रही है। इस सम्मेलन (Xi Jinping SCO Meeting) में 20 से अधिक देशों के नेता हिस्सा लेंगे, जो वैश्विक दक्षिण देशों की एकजुटता का बड़ा उदाहरण माना जा रहा है।

मोदी और शी जिनपिंग की मुलाकात में उम्मीदें

यह फोरम अमेरिका के नेतृत्व वाले वैश्विक ढांचे के बदलते स्वरूप को दर्शाने का मौका है। इस सम्मेलन में रूस को भी पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के बावजूद कूटनीतिक समर्थन मिलेगा। इस समूह का उद्देश्य केवल सुरक्षा ही नहीं, बल्कि आर्थिक और सैन्य सहयोग को भी बढ़ावा देना है। यह क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर एक नया संतुलन बनाने में मदद करेगा।भारत और चीन के बीच पिछले कुछ वर्षों में सीमा विवाद के कारण तनाव बढ़ गया था, लेकिन इस सम्मेलन के जरिए दोनों देशों के बीच संबंध सुधारने की उम्मीद है। मोदी और शी के बीच सकारात्मक बातचीत की उम्मीद की जा रही है, जिसमें सीमा सुरक्षा, व्यापार, वीजा प्रतिबंधों में राहत और पर्यावरणीय सहयोग जैसे विषय शामिल होंगे।

एससीओ का विस्तार और उसकी भूमिका

शंघाई सहयोग संगठन की शुरुआत छह देशों के समूह के रूप में हुई थी, जो अब 10 स्थायी सदस्यों और कई पर्यवेक्षक देशों के साथ एक बड़ा मंच बन गया है। यह संगठन आतंकवाद और सुरक्षा के अलावा आर्थिक विकास और सैन्य सहयोग में भी सक्रिय हो रहा है। हालांकि, कुछ विश्लेषक मानते हैं कि एससीओ की व्यावहारिक प्रभावशीलता अभी सीमित है।

भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव जारी

एससीओ में भारत और पाकिस्तान दोनों सदस्य हैं, लेकिन दोनों देशों के बीच तनाव अभी भी जारी है। हाल ही में हुई सुरक्षा बैठक में भारत ने पाकिस्तान पर आतंकवाद के आरोपों को लेकर आपत्ति जताई थी, जिससे संयुक्त बयान जारी नहीं हो पाया। हालांकि, इस बार की बातचीत में दोनों देशों के बीच नए समाधान खोजे जाने की संभावना है।

एससीओ और वैश्विक दक्षिण की ताकत

विशेषज्ञों का कहना है कि एससीओ की अपील केवल सुरक्षा तक सीमित नहीं है। यह संगठन वैश्विक दक्षिण के देशों के बीच एकता और सहयोग को मजबूत करने का एक मंच बन गया है। खासकर चीन, रूस और भारत जैसे देशों के लिए यह संगठन अमेरिका के प्रभाव को चुनौती देने का जरिया भी बन रहा है।

सम्मेलन के बाद की संभावनाएं

शिखर सम्मेलन के बाद मोदी चीन से लौटेंगे, जबकि पुतिन बीजिंग में दूसरे विश्व युद्ध की सैन्य परेड में हिस्सा लेने के लिए थोड़े समय तक चीन में रहेंगे। दोनों नेताओं के बीच हुई वार्ता के बाद सीमा विवाद में सुधार के साथ-साथ आर्थिक और पर्यावरणीय क्षेत्रों में भी सहयोग बढ़ने की उम्मीद है।

एससीओ सम्मेलन का विश्व राजनीति में महत्व

बहरहाल तियानजिन में एससीओ का यह शिखर सम्मेलन वैश्विक दक्षिण देशों की एकता और नई वैश्विक व्यवस्था के निर्माण में एक महत्वपूर्ण कदम है। यहां होने वाली चर्चाएं न सिर्फ क्षेत्रीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थिरता और सहयोग की दिशा में एक बड़ा संदेश होंगी। इस बार की बैठक न केवल सुरक्षा और कूटनीति की दृष्टि से, बल्कि नए आर्थिक और सामाजिक सहयोग के लिए भी महत्वपूर्ण मानी जा रही है। यह सम्मेलन वैश्विक दक्षिण देशों की एकजुटता और क्षेत्रीय सहयोग को मजबूती देने का अहम मौका है।