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रूसी तेल ने 39 महीने में भारत के बचाए 12.6 अरब डॉलर रुपए, आम नागरिकों को कितना पहुंचा फायदा?

Russian oil Purchase: भारत का रूसी तेल खरीदना अब आर्थिक से ज्यादा रणनीतिक मुद्दा बन चुका है। नई दिल्ली ने वाशिंगटन को साफ संदेश दिया है कि वह अपनी रणनीतिक स्वायत्ता बनाए रखेगा। वहीं, रूसी तेल खरीदने से भारत को 12.6 अरब डॉलर की बचत भी हुई है।

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Savings on the purchase of Russian oil

रूसी तेल खरीद पर बचत (फोटो-IANS)

Russian oil Purchase: भारत (India) ने 39 महीनों में रूसी तेल खरीद कर 12.6 अरब डॉलर बचाए। इसके साथ ही, भारत ने अमेरिका (America) को बता दिया कि वह अपनी रणनीतिक स्वायत्ता के साथ समझौता नहीं करेगा। अमेरिकी प्रशासन यह तय नहीं कर सकता है कि भारत किसके साथ व्यापार करे और किसके नहीं। दरअसल, यह मुद्दा तब अहम हो जाता है, जब मामला रूस से जुड़ा हो, क्योंकि रूस, भारत का एक पुराना और महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार है।

रूसी तेल खरीदने से रोकने की कोशिश

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (US President Donald Trump) ने भारत पर कुल 50 फीसदी टैरिफ लगाया है। 25 फीसदी टैरिफ रूसी तेल खरीदने पर लगाई गई है। दरअसल, ट्रंप और उनके सलाहकारों का मानना है कि यदि भारत को रूसी तेल खरीदने से दूर कर दिया जाए तो इसका सीधा प्रभाव रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia-Ukraine War) पर पड़ेगा। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Putin) को भयंकर आर्थिक दवाब का सामना करना होगा। इसके कारण वह युद्ध रोकने को मजबूर हो जाएंगे। ट्रंप के कई सलाहकारों ने इस पर टिप्पणी की है। ट्रंप के सलाहकार पीटर नवारों ने तो रूस-यूक्रेन युद्ध को मोदी वॉर की संज्ञा दे दी। वॉशिंगटन में ट्रंप के करीबियों का मानना है कि पीएम मोदी, यूक्रेन युद्ध को आर्थिक मदद पहुंचा रहे हैं।

बाइडेन प्रशासन ने किया था रूसी तेल खरीदने के लिए प्रोत्साहित

फरवरी 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद जब यूरोपीय देशों ने रूस से तेल की खरीद कम की। उस दौरान अमेरिका के बाइडेन प्रशासन ने फरवरी 2022 में रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण के बाद भारत को रूसी तेल आयात बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया था। ताकि वैश्विक जगत में तेल के दाम स्थिर रहे। यह अमेरिकी हित में भी था। वहीं, रूस ने इच्छुक खरीदारों को अपने तेल पर छूट देना शुरू कर दिया। भारतीय रिफाइनरों ने इस अवसर का तुरंत लाभ उठाया। देखते ही देखते रूस भारत का तेल निर्यातक देशों में पहले पायदान पर जा पहुंचा।

12.6 अरब डॉलर का बचत

2022-23 में, भारत का कुल तेल आयात बिल 162.21 अरब डॉलर था। इस अवधि में रूस से तेल आयात का मूल्य लगभग 31 अरब डॉलर था। वहीं, गैर रूसी तेल की तुलना में रूसी तेल पर छूट लगभग 13.6 प्रतिशत रही। वहीं, साल 2023-24 में गैर रूसी तेल की तुलना में रूसी तेल पर छूट औसतन 10.4 प्रतिशत रही, जबकि साल 2024-25 में यह छूट 2.8 प्रतिशत रही। इस हिसाब से भारतीय कंपनियों ने सालाना क्रमश: 4.87 अरब डॉलर, 5.41 अरब डॉलर और 1.45 अरब डॉलर की बचत की। वहीं, वित्तवर्ष 2025-2026 में अब तक भारतीय कंपनियों को रूसी तेल आयात करने पर 0.84 अरब डॉलर की बचत हुई।

जनता को नहीं मिला इसका सीधा लाभ

यूक्रेन युद्ध के बाद रूस ने तेल पर छूट दी। इससे वैश्विक तेल कीमतें स्थिर रहीं, जिसका फायदा अप्रत्यक्ष रूप से भारतीय अर्थव्यवस्था को मिला। हालांकि, आम नागरिकों को सीधा लाभ नहीं पहुंचा, क्योंकि पेट्रोल-डीजल की कीमतें 100 और 90 रुपये प्रति लीटर के आसपास रहीं। तेल कंपनियों और सरकार ने टैक्स से भारी मुनाफा कमाया, लेकिन यह आम जनता तक नहीं पहुंचा। विशेषज्ञों का कहना है कि सस्ते तेल से मुद्रास्फीति नियंत्रण में रही, पर उपभोक्ताओं को राहत नहीं मिली।

रूस से कच्चा तेल खरीदकर रिफाइन करके बेचने पर भारत की सरकारी और निजी कंपनियों ने जमकर रुपए कमाए। सरकारी ऑयल कंपनियों ने साल 2022-23 में ₹3,400 करोड़, 2023-24 में ₹86,000 करोड़ और 2024-25 में ₹33,602 करोड़ का मुनाफा हुआ। रिलायंस और नायरा जैसी निजी कंपनियों को भी 12-15 डॉलर प्रति बैरल का मार्जिन मिला।

आर्थिक से ज्यादा रणनीतिक मुद्दा बना रूसी तेल

विशलेषकों ने कहा कि अगर भारत रूसी तेल खरीदना बंद कर देता है तो वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमत बढ़ जाएगी। कच्चे तेल की कीमत 65 डॉलर प्रति बैरल के मौजूदा स्तर से बढ़कर 90-100 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती है। उन्होंने आगे कहा कि रूसी तेल की खरीदी अब आर्थिक से अधिक रणनीतिक मुद्दा बन चुकी है। उन्होंने कहा कि भारत अपनी जरूरतों का 85 फीसदी कच्चा तेल आयात करता है। भारत की अर्थव्यवस्था वैश्विक तेल कीमतों में उतार-चढ़ाव के प्रति संवेदनशील है। इसका देश के व्यापार घाटे, विदेशी मुद्रा भंडार, रुपये की विनिमय दर और मुद्रास्फीति दर आदि पर भी असर पड़ता है।