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62 की उम्र में 26 का दम: बिलासपुर की शारदा ने चैंपियनशिप में दो गोल्ड सहित तीन पदक जीते

Patrika Special: बिलासपुर की 62 वर्षीय शारदा पांडे तिवारी का, जिन्होंने हैदराबाद में आयोजित नेशनल सीनियर सिटीजन ओपन एथलेटिक्स चैंपियनशिप में दो गोल्ड सहित तीन पदक जीते..

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Patrika Special

बिलासपुर की शारदा ने चैंपियनशिप में दो गोल्ड सहित तीन पदक जीते ( Photo - Patrika )

Patrika Special: सपनों की कोई एक्सपायरी डेट नहीं होती। अगर इच्छाशक्ति मजबूत हो, तो न उम्र आड़े आती है, न परिस्थितियां। मैदान में गिरने से ज्यादा खतरनाक है, मैदान में उतरने से डरना। यह कहना है बिलासपुर की 62 वर्षीय शारदा पांडे तिवारी का, जिन्होंने हैदराबाद में आयोजित नेशनल सीनियर सिटीजन ओपन एथलेटिक्स चैंपियनशिप में दो गोल्ड सहित तीन पदक जीतकर शहर और राज्य का नाम रोशन किया है।

Patrika Special: पेश की मिसाल

जिस उम्र में अधिकतर लोग आराम और सीमाओं को जीवन की सच्चाई मान लेते हैं, उसी उम्र में शारदा ने मैदान में उतरकर ताकत, अनुशासन और आत्मविश्वास की ऐसी मिसाल पेश की है। पदक जीतकर शहर लौटी शारदा ने बताया कि इस चैंपियनशिप में उन्होंने 60 प्लस आयु वर्ग में डिस्कस थ्रो और हैमर थ्रो में स्वर्ण पदक, जबकि शॉटपुट में रजत पदक हासिल किया। छत्तीसगढ़ से करीब 50 खिलाड़ियों की मौजूदगी के बीच बिलासपुर से वे अकेली एथलीट थीं। इस सफलता की वजह वह वर्षों का अनुशासन, निरंतर अभ्यास और खुद पर अटूट भरोसा बताया।

एशिया स्तर पर छठी पोजीशन

शारदा की उपलब्धियां यहीं नहीं रुकतीं। एक माह पहले चेन्नई में आयोजित 23वीं एशिया मास्टर एथलेटिक्स चैंपियनशिप में 60 प्लस आयु वर्ग डिस्कस और हैमर थ्रो में छठीं और सातवीं पोजीशन हासिल कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी मौजूदगी दर्ज कराई । इस चैंपियनशिप में 20 देशों के खिलाडि़यों ने भाग लिया था।

शुद्ध शाकाहारी, परंपरागत भोजन ही असली ताकत

शारदा की जीवनशैली भी उतनी ही प्रेरक है। शारदा शुद्ध शाकाहारी हैं और सादा, परंपरागत भोजन को ही अपनी ताकत मानती हैं। मूंगफली उनका नियमित आहार है, जबकि पनीर से वे दूरी बनाए रखती हैं। सिल-बट्टे की चटनी उन्हें खास पसंद है. जो यह बताती है कि सफलता के लिए दिखावे नहीं, संतुलन और अनुशासन जरूरी है।

50 की उम्र में खेलना शुरू, 35 से अधिक नेशनल मैडल

शारदा पांडेय तिवारी ने 50 साल की उम्र में गोला फेंक खेलना शुरू किया और आज उनके नाम 35 से अधिक नेशनल गोल्ड मेडल व सैकड़ों पदक हैं। बचपन में पिता ने मच्छरदानी बांधने वाली लकड़ी से भाला फेंक का अभ्यास कराया था। शादी और परिवार की जिम्मेदारियों के कारण 25 साल खेल से दूर रहीं, लेकिन हौसले ने उन्हें फिर मैदान में लौटाया। अब 62 की उम्र में भी वे युवाओं जैसी फुर्ती के साथ वर्ल्ड चैंपियन बनने की तैयारी में जुटी है।