
इंडस्ट्रियल डिमांड ने चांदी की कीमतों में तेजी को सपोर्ट किया है. (PC: Canva)
चांदी की तेजी हवा पर सवार है, रिटर्न के मामले इसने सोना और इक्विटी मार्केट दोनों की ही चमक को धुंधला कर दिया है. आखिर ऐसा क्या हो रहा है कि कि चांदी की कीमतों में तेजी रोके नहीं रुक रही, क्या इसके पीछे को तुक्का है, सटोरियों का स्पेकुलेशन है या फिर कोई ठोस वजह है.
तमाम रिपोर्ट्स और डेटा खंगालने के बाद ये कह सकते हैं कि चांदी की हालिया तेजी को सट्टेबाजी से जोड़कर न देखा जाए, क्योंकि इसके पीछे मजबूत और टिकाऊ इंडस्ट्रियल डिमांड खड़ी है। यह डिमांड पांच ऐसे सेक्टर्स से आ रही है, जिनकी ग्रोथ अगले कई साल तय मानी जा रही है। और ये पांचों सेक्टर्स ऐसे हैं, जो किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए हमेशा जरूरी बने रहेंगे, इसलिए जबतक ये सेक्टर्स हैं, चांदी की डिमांड भी सदा के लिए बनी रहेगी.
जैसे-जैसे दुनिया रीन्युएबल एनर्जी की तरफ बढ़ रही है, चांदी की डिमांड इस सेक्टर में तेजी से बढ़ी है. ग्रीन एनर्जी क्रांति की वजह से सोलर PV सेक्टर चांदी की मांग का सबसे बड़ा औद्योगिक ग्रोथ इंजन बन चुका है। सोलर एनर्जी सेक्टर की मांग पिछले चार साल में दोगुना से भी ज्यादा बढ़ गई है. 2020 में यह 94.4 मिलियन आउंस थी, जो 2024 में 243.7 मिलियन आउंस तक पहुंच गई। 2024 में कुल मांग का करीब 21% सिर्फ सोलर सेक्टर ने ही लिया है। एक सोलर पैनल में करीब 15-20 ग्राम चांदी का इस्तेमाल होता है.
जहां तक भारत का सवाल है तो, भारत में सोलर पैनल उत्पादन और तकनीक की अपग्रेडेशन के चलते सोलर इंडस्ट्री में चांदी की खपत तेज़ी से बढ़ रही है। मोतीलाल ओसवाल की एक रिपोर्ट है जिसका टाइटल है "Silver 2030 – The Unprecedented Rise". जिसमें MOFSL ने अनुमान लगाया है कि 2027 तक सोलर पैनल बनाने वाली कंपनियों को अपने इंस्टॉलेशन के लक्ष्य पूरा करने के लिए मौजूदा सालाना चांदी की सप्लाई का 20% से ज्यादा हिस्सा चाहिए होगा। अनुमान है कि साल 2025 में केवल सोलर फोटोवोल्टेइक (PV) सेक्टर में 200 मिलियन आउंस से ज्यादा चांदी की खपत हुई।
रिपोर्ट के मुताबिक, चांदी की मांग में इतनी तेज़ बढ़ोतरी हो रही है कि कंपनियां एक पैनल में चांदी का इस्तेमाल कम करने की जितनी भी कोशिश कर रही हैं, वो नाकाम साबित हो रही हैं, इसे रिपोर्ट ने इसे “थ्रिफ्टिंग पैराडॉक्स” नाम दिया है। मतलब, चांदी के दाम आसमान छू रहे हैं इसलिए कंपनियां कम चांदी लगाने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन दुनिया भर में सोलर पावर की क्षमता इतनी तेज़ी से बढ़ रही है कि कुल मिलाकर चांदी की मांग लगातार ऊपर ही जा रही है।
भारत ने जनवरी 2025 में 100 GW से ज्यादा सोलर क्षमता पार कर ली है और 2030 तक 500 GW गैर-जीवाश्म ऊर्जा (जैसे कि सोलर और विंड) क्षमता का लक्ष्य है। भारत का लक्ष्य 2030 तक कुल बिजली उत्पादन क्षमता का 50% गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से हासिल करने का है। यूरोप की एक रिसर्च से सामने आया है कि 2030 तक PV सेक्टर वैश्विक चांदी डिमांड में लगभग 40% तक हिस्सेदारी ले सकता है।
भारत का EV सेक्टर बहुत तेजी से बढ़ रहा है. ताजा आंकड़े बताते हैं कि 2025 में भारत में EV की बिक्री पिछले साल की तुलना में 50% से ज़्यादा बढ़ गई है, और यह बढ़ोतरी अगले दशक तक जारी रहने का अनुमान है। बैटरी इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार के बाद इसमें और तेजी आने का अनुमान है.
इलेक्ट्रिक व्हीकल में चांदी का इस्तेमाल कई तरीके से होता है. एक इलेक्ट्रिक कार में चांदी का इस्तेमाल इलेक्ट्रिकल कनेक्शन, स्विच, बैटरी मैनेजमेंट सिस्टम, बैटरी, इन्वर्टर और वायरिंग सिस्टम में होता है। बैटरी से चलने वाली गाड़ियों में 25-50 ग्राम चांदी की जरूरत होती है. ये आम पेट्रोल-डीजल की कारों में इस्तेमाल होने वाली चांदी की मात्रा से करीब दोगुना है. इसके अलावा, हर फास्ट-चार्जिंग यूनिट में पावर इलेक्ट्रॉनिक्स और कनेक्शंस के लिए 1-2 किलोग्राम चांदी की आवश्यक्ता होती है, 2030 तक लाखों पब्लिक चार्जिंग स्टेशन लगाने की योजनाएं चांदी की डिमांड में जोरदार तेजी लेकर आएंगी।
NITI आयोग की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत का लक्ष्य 2030 तक कुल निजी गाड़ियों में 30% हिस्सा इलेक्ट्रिक व्हीकल (EV) को करने का है। यानी अगर 100 कारें बिकेंगी तो 30 कारें इलेक्ट्रिक व्हीकल होंगी. अब चूंकिं EV में पेट्रोल-डीजल गाड़ियों की तुलना में 2-3 गुना ज्यादा चांदी का इस्तेमाल होता है, खासकर कनेक्टर्स और कंट्रोल सिस्टम में। जबकि, इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (IEA) का अनुमान है कि 2035 तक दुनिया भर में बिकने वाली सभी गाड़ियों में से 50% इलेक्ट्रिक होंगी। जाहिर है कि चांदी की डिमांड आने वाले समय तेजी से बढ़ेगी.
डेटा सेंटर्स डिजिटल अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी हैं। ये क्लाउड कंप्यूटिंग सर्विसेज चलाने, डेटा स्टोर करने और मैनेज करने और अब तेजी से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) सिस्टम्स को पावर देने के लिए जरूरी फिजिकल इंफ्रास्ट्रक्चर मुहैया कराते हैं। चांदी की मांग का एक बड़ा हिस्सा यहां से आता है। AI डेटा सेंटर्स में चांदी कनेक्टिविटी, पावर डिस्ट्रीब्यूशन, सेमीकंडक्टर्स और कूलिंग सिस्टम के लिए एक जरूरी रॉ मैटेरियल है।
पूरी दुनिया में बड़ी-बड़ी कंपनियां डेटा सेंटर्स पर काफी जोर दे रही हैं. AI की बढ़ती मांग, क्लाउड कंप्यूटिंग और डेटा लोकलाइजेशन की वजह से कई बड़ी कंपनियां बड़े निवेश कर रही हैं। जैसे - रिलायंस जामनगर में 1 GW से शुरू करके 3 GW तक का मेगा AI डेटा सेंटर कॉम्प्लेक्स बना रही है। रिलायंस ने AI इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए Nvidia के साथ पार्टनरशिप भी की है. माइक्रोसॉफ्ट भारत में AI-रेडी डेटा सेंटर्स पर फोकस कर रहा है, हैदराबाद में बड़ा कैंपस खोलने की तैयारी है। इसके अलावा गूगल और AdaniConneX की पार्टनरशिप में विशाखापट्टनम में भारत का सबसे बड़ा गीगावाट-स्केल AI डेटा सेंटर कैंपस बन रहा है।
सिल्वर इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2024 में दुनिया भर में चांदी की कुल डिमांड 1.16 बिलियन आउंस थी, जबकि खदानों से सिर्फ 819.7 मिलियन आउंस चांदी निकली, यानी जरूरत के हिसाब से काफी बड़ी कमी रही। भारत दुनिया के टॉप 20 चांदी उत्पादक देशों में 11वें जगह पर है, जहां सालाना केवल 22.5 मिलियन आउसं चांदी का उत्पादन होता है, लेकिन इस्तेमाल इससे बहुत ज्यादा होता है। जैसे- भारत में चांदी की इंडस्ट्रियल डिमांड 42.9 मिलियन आउंस है. इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए 19.1 मिलियन आउंस की डिमांड होती है. यही वजह है भारत अपनी जरूरत का 80% चांदी इंपोर्ट करता है. भारत की इतनी बड़ी मांग की वजह से वो दुनिया भर में चांदी की कीमतों पर असर डालता है।
चांदी की एंटीमाइक्रोबियल (बैक्टीरिया-वायरस मारने वाली) खूबी की वजह से हेल्थकेयर में इसका इस्तेमाल बहुत बढ़ रहा है। जैसे कि जलने, घाव या अल्सर पर लगाने वाली ड्रेसिंग में सिल्वर सल्फाडियाज़ाइन या नैनो सिल्वर पार्टिकल्स इस्तेमाल होते हैं, ये इंफेक्शन रोकते हैं। इसके अलावा, कैथेटर्स, ब्रीदिंग ट्यूब्स, सर्जिकल इंस्ट्रूमेंट्स, ऑर्थोपेडिक इम्प्लांट्स और कार्डियक डिवाइसेज पर सिल्वर कोटिंग लगाई जाती है ताकि हॉस्पिटल में इंफेक्शन न फैले।
चूंकि भारत जैसे देश में अस्पातल से जुड़े इंफेक्शन तेजी से बढ़ते हैं, इसलिए सिल्वर-बेस्ड प्रोडक्ट्स की डिमांड बढ़ रही है। भारतीय कंपनियां जैसे SilvoGuard नैनो-सिल्वर टेक्नोलॉजी से एंटीमाइक्रोबियल डिवाइसेज बना रही हैं। भारत का मेडिकल डिवाइस मार्केट अभी 15-17 बिलियन डॉलर का है, एक अनुमान है कि ये इंडस्ट्री 2030 तक करीब 30 बिलियन डॉलर तक बढ़ने वाली है। एक अनुमान है कि ग्लोबल हेल्थकेयर सिल्वर डिमांड 2030 तक 40-50 मिलियन आउंस तक पहुंच सकती है। भारत में इंडस्ट्रियल डिमांड कुल सिल्वर खपत का बड़ा हिस्सा बनेगी, क्योंकि मेडिकल सेक्टर 7-19% CAGR से बढ़ रहा है।
भारत में 5G रोलआउट बहुत तेजी से हुआ है, अब 6G की तैयारी है। 5G इंफ्रास्ट्रक्चर में तेजी का फायदा चांदी को मिल रहा है क्योंकि चांदी एक बेहतरीन इलेक्ट्रिकल कंडक्टिविटी वाला मेटल है, इसकी वजह से 5G टेक्नोलॉजी में इसका इस्तेमाल जरूरी है। एंटीना, बेस स्टेशन, सर्किट बोर्ड, कैपेसिटर्स, स्विच, RFID में चांदी का इस्तेमाल होता है. अभी भारत में 5 लाख से ज्यादा 5G बेस स्टेशंस लग चुके हैं, और 85% आबादी तक 5G कवरेज पहुंच गया है। यह सब चांदी की खपत बढ़ा रहा है।
भारत में 2030 तक 5G सब्सक्रिप्शंस 97 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है। Ericsson की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में डेटा यूज प्रति यूजर सबसे ज्यादा है और 2030 तक और दोगुना हो सकता है। मोटे तौर पर समझ लें कि 5G भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था को बूस्ट देगा, लेकिन चांदी की सप्लाई सीमित रहेगी और डिमांड ऊंची।
Published on:
27 Dec 2025 06:00 am
बड़ी खबरें
View AllPatrika Special News
ट्रेंडिंग
