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प्रदेश का एक ऐसा धार्मिक स्थल जहां जल झूलनी पर जुटती है लाखों भक्तों की भीड़, ठाकुरजी के दर्शन को ललायित नजर आए भक्त, गजब का था ये नजारा

पुजारियों ने प्रभु के बाल स्वरूप के साथ दूध तलाई की दो परिक्रमा पूरी की। परिक्रमा पूरी होने के बाद बाल स्वरूप को नए परिधानों के साथ श्रृंगारित कराया। इसके बाद चांदी की पालकी में प्रभु के बाल स्वरूप को विराजमान करवाकर पुजारी नाचते-गाते शाम 5.30 बजे चारभुजा जी के मंदिर पहुंचे।

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चारभुजा में ठाकुरजी की शोभायात्रा कई टन गुलाल उड़ाते छोगाला छैल के जयकारे लगाते हजारों श्रद्धालु प्रभु के बाल स्वरूप के सरोवर स्नान के न सिर्फ साक्षी बने, बल्कि उन्हें स्नान करवाने को आतुर दिखाई दिए।

चारभुजा में जलझूलनी एकादशी पर दोपहर 12.10 बजे जैसे ही भगवान चारभुजानाथ का सोने की पालकी में बैठाकर पुजारी मंदिर की सीढ़ियां उतरने लगे तो घंटों से इंतजार कर रहे श्रद्धालु जोरदार जयकारे लगाते हुए दर्शन को आतुर हो गए।

ठाकुरजी का बेवाण सीढियों से नीचे उतरने का नजारा अलौकिक नजर आया। श्रद्धालुओं ने खूब हाथी घोड़ा पालकी जय कन्हैयालाल की व छोगाला छैल के जयकारे लगाते हुए गुलाल व अबीर की बौछार कर दी। भगवान के बाल स्वरूप के विग्रह की शोभायात्रा भोग आरती के बाद शुरू हुई।

भगवान की श्रृंगारित प्रतिमा केवड़े के फूल में बिराजित थी। सोने की पालकी जैसे-जैसे आगे बढ़ती गई मकानों की छतों व झरोखों में खड़े श्रद्धालुओं ने बेवाण पर जमकर पुष्प वर्षा की। बेवाण के आगे भक्तजन जयकारे लगाते और भजनों की धुनों पर नाचते चल रहे थे। हर कोई गुलाल में रंगा नजर आ रहा था।

रास्ते में स्थित छतरी पर परंपरा के अनुसार प्रभु को विश्राम कराया गया और अमल का भोग धराया गया। पुजारियों ने हरजस का गान किया। इसके बाद प्रभु की सोने की पालकी वापस जयकारों के साथ रवाना होकर दूधतलाई पहुंची। जहां, हजारों श्रद्धालु प्रभु के मनोहारी दर्शन के लिए उत्साहित रहे। दूधतलाई स्थित छतरी में अल्प विश्राम के बाद रेवाड़ी वाले पुजारियों की ओर से ठाकुरजी को स्नान की रस्म अदा कराई गई।