

60279.80: हेक्टेयर है टाइगर रिजर्व का कोर एरिया
12745.18: हेक्टेयर है बफर जोन एरिया
05: कुल रेंज हैं पीलीभीत टाइगर रिजर्व में
05: किलोमीटर परिधि में हैं ईको सेंस्टिव जोन
(भौगोलिक स्वरूप: वन क्षेत्र घोडे की नाल के आकार में हैं। वन क्षेत्र की चौड़ाई 15 किलोमीटर से लेकर कहीं कहीं 3 से पांच किलोमीटर तक है। वन क्षेत्र के समीप 275 गांव आते हैं।

अब तक मरने वाले बाघों की सूची
अक्टूबर 2014 महोफ रेंज में बाघ का शव बरामद किया गया।
अप्रैल 2015 में पूरनपुर क्षेत्र में बाघ का शव नहर से बरामद किया गया।
जुलाई 2017 में हरदोई ब्रांच में डूबने से हुई थी बाघिन की मौत ।
मई 2017 माला रेंज में मिले थे दो बाघ शावकों के शव
6 फरवरी 2018 डगा गांव के पास मिला तेंदुआ का शव
मार्च 2018 शारदा सागर डैम में उतराता हुआ मिला बाघ का शव
अप्रैल 2018 में रजबहा पटरी पर मिला बाघ का शव
अप्रैल 2018 महोफ में मिला बाघ का शव
20 मई 2018 रजवाह खारजा नहर की पटरी पर मिला बाघ का सड़ा गला शव ।
31 जुलाई 2018 बॉर्डर क्षेत्र के बाजार घाट सुतिया नाला में मिला था बाघ का सड़ा गला शव।
25 जुलाई 2019 पूरनपुर कोतवाली क्षेत्र के मटेहना में ग्रामीण और बाघ के बीच संघर्ष में बाघ की मौत
अक्टूबर 2014 महोफ रेंज में बाघ का शव बरामद किया गया।
अप्रैल 2015 में पूरनपुर क्षेत्र में बाघ का शव नहर से बरामद किया गया।
जुलाई 2017 में हरदोई ब्रांच में डूबने से हुई थी बाघिन की मौत ।
मई 2017 माला रेंज में मिले थे दो बाघ शावकों के शव
6 फरवरी 2018 डगा गांव के पास मिला तेंदुआ का शव
मार्च 2018 शारदा सागर डैम में उतराता हुआ मिला बाघ का शव
अप्रैल 2018 में रजबहा पटरी पर मिला बाघ का शव
अप्रैल 2018 महोफ में मिला बाघ का शव
20 मई 2018 रजवाह खारजा नहर की पटरी पर मिला बाघ का सड़ा गला शव ।
31 जुलाई 2018 बॉर्डर क्षेत्र के बाजार घाट सुतिया नाला में मिला था बाघ का सड़ा गला शव।
25 जुलाई 2019 पूरनपुर कोतवाली क्षेत्र के मटेहना में ग्रामीण और बाघ के बीच संघर्ष में बाघ की मौत
पांच तेंदुए की हुई मौत
फरवरी माह 2018 में बराही रेंज के अंतर्गत डगा बाइफरकेशन मार्ग पर मिला तेंदुए का शव
मई में मिला बराही रेंज के अंतर्गत खारजा नहर की पटरी पर मिला तेंदुए का क्षतविक्षत शव
8 नवंबर को बराही रेंज के जंगल में मिला तेंदुए का शव
19अक्तूबर 2018को असम हाइवे पर अज्ञात वाहन की टक्कर में हुई तेंदुए की मौत
20 मार्च 2019 को माधोटांडा के डगा गांव के निकट हरदोई ब्रांच नहर में मिला मादा तेंदुए का शव
फरवरी माह 2018 में बराही रेंज के अंतर्गत डगा बाइफरकेशन मार्ग पर मिला तेंदुए का शव
मई में मिला बराही रेंज के अंतर्गत खारजा नहर की पटरी पर मिला तेंदुए का क्षतविक्षत शव
8 नवंबर को बराही रेंज के जंगल में मिला तेंदुए का शव
19अक्तूबर 2018को असम हाइवे पर अज्ञात वाहन की टक्कर में हुई तेंदुए की मौत
20 मार्च 2019 को माधोटांडा के डगा गांव के निकट हरदोई ब्रांच नहर में मिला मादा तेंदुए का शव
इतनी मौतों के बाद भी विभाग सिर्फ निगरानी में जुटा है। जो 15 से 20 बाघ जंगलों से बाहर और मानव आबादी के करीब हैं जिससे मानव आबादी व बाघ दोनों को खतरा है। उनकी सुरक्षा में अब भी लापरवाही की जा रही है। वन विभाग की उदासीनता के चलते अब पीलीभीत जिले की आबादी को इन बाघों के साथ समझौता करना ही पड़ेगा, क्योंकि ये बाघ जंगल लौट नही पाएंगे और न कभी पीलीभीत के 20 गांव बाघ की दहशत से मुक्त हो पाएंगे। तो सिर्फ रास्ता बचता है बाघों से समझौता। अब वन विभाग को जंगल किनारे के वासियों को ट्रेनिंग
देनी चाहिए, जिससे विभागों से अपनी सुरक्षा बिना बाघ को नुकसान पहुंचाए कर सके। जिले के 20 से अधिक गांव में ऐसे हैं जहां लगतार बाघ की लोकेशन मिलती रहती है,कभी खेत में तो कभी घरों से बाघ पशुओं पर झपट कर उन्हें मार देता है, सूचना पर वन्य विभाग पहुँचता है तो सिर्फ निगरानी के लिए क्योंकि पुरानी नीतियों के सहारे बाघों को पकड़ पाना अब मुमकिन नहीं है। टाइगर रिजर्व के लिए एक मोटा बजट सरकार से प्राप्त हुआ पर बाघों की सुरक्षा और जंगल से ज्यादा यह बजट सरकारी कार्यालय को चकाचौंध बनाने के लिए खर्च किया गया।
स्टाफ की कमी एक बड़ी वजह
जब भी बाघों की सुरक्षा की बात की जाती है तो अक्सर विभाग के आला अधिकारी स्टाफ की कमी का बहाना बनाते नजर आते हैं पर हकीकत में आलम यह है कि वन दरोगा अब जंगल की नौकरी करने से ज्यादा कार्यालय में बाबू बनना चाहते हैं, जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण पीलीभीत टाइगर रिजर्व के कार्यालय में बाबू बनकर काम कर रहे वन दरोगा हैं।
जब भी बाघों की सुरक्षा की बात की जाती है तो अक्सर विभाग के आला अधिकारी स्टाफ की कमी का बहाना बनाते नजर आते हैं पर हकीकत में आलम यह है कि वन दरोगा अब जंगल की नौकरी करने से ज्यादा कार्यालय में बाबू बनना चाहते हैं, जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण पीलीभीत टाइगर रिजर्व के कार्यालय में बाबू बनकर काम कर रहे वन दरोगा हैं।
क्या कहते हैं वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर बिलाल मियाँ
पीलीभीत के रहने वाले बिलाल मियां पेशे से वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर हैं। उनसे बातचीत की गई तो हैरतअंगेज बातें सामने आई। बिलाल का कहना है कि पिछली गणना के अनुसार पीलीभीत के जंगलों में बाघों की संख्या 54 से अधिक है जिसमें से कुछ बाघ जंगल से बाहर रास्ता भटक चले गए हैं। गत वर्ष एक बाघिन जंगल से रास्ता भटक कर खेतों की ओर चली गयी थी। बाघिन ने खेतो में ही अपने शावको को जन्म दिया। धीरे-धीरे उस बाघिन का कुनबा बढ़ता चला गया और कुनबे में बाघो की संख्या 5 से 7 हो गयी तो लगातार पीलीभीत के अमरिया में दहशत बनाए हुए हैं। अगर वन विभाग के आला अधिकारियों ने पहले ही मामले की सुध ली होती तो शायद आज अमरिया बाघों की दहशत से मुक्त होता। बिलाल का कहना है कि बाघों की सुरक्षा में लापरवाही की जा रही है। जो बाघ जंगल से बाहर घूम रहे हैं, उन्हें खतरा है। बीते दिनों मानव वन्यजीव संघर्ष मैं एक बाघिन की जान चली गई थी। फिर भी वन विभाग ने सुध नहीं ली है ।वन विभाग को जरूरत है कि जंगल के आसपास के गांव में जा कर लोगों को जागरूक करे कि वन क्षेत्र में ना जाए और बाघ को बिना नुकसान पहुंचाए खुद की सुरक्षा करें।पर ये दावे वन विभाग कागजो में करता है, हकीकत में नहीं।
इनपुटः सौरभ दीक्षित
पीलीभीत के रहने वाले बिलाल मियां पेशे से वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर हैं। उनसे बातचीत की गई तो हैरतअंगेज बातें सामने आई। बिलाल का कहना है कि पिछली गणना के अनुसार पीलीभीत के जंगलों में बाघों की संख्या 54 से अधिक है जिसमें से कुछ बाघ जंगल से बाहर रास्ता भटक चले गए हैं। गत वर्ष एक बाघिन जंगल से रास्ता भटक कर खेतों की ओर चली गयी थी। बाघिन ने खेतो में ही अपने शावको को जन्म दिया। धीरे-धीरे उस बाघिन का कुनबा बढ़ता चला गया और कुनबे में बाघो की संख्या 5 से 7 हो गयी तो लगातार पीलीभीत के अमरिया में दहशत बनाए हुए हैं। अगर वन विभाग के आला अधिकारियों ने पहले ही मामले की सुध ली होती तो शायद आज अमरिया बाघों की दहशत से मुक्त होता। बिलाल का कहना है कि बाघों की सुरक्षा में लापरवाही की जा रही है। जो बाघ जंगल से बाहर घूम रहे हैं, उन्हें खतरा है। बीते दिनों मानव वन्यजीव संघर्ष मैं एक बाघिन की जान चली गई थी। फिर भी वन विभाग ने सुध नहीं ली है ।वन विभाग को जरूरत है कि जंगल के आसपास के गांव में जा कर लोगों को जागरूक करे कि वन क्षेत्र में ना जाए और बाघ को बिना नुकसान पहुंचाए खुद की सुरक्षा करें।पर ये दावे वन विभाग कागजो में करता है, हकीकत में नहीं।
इनपुटः सौरभ दीक्षित