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गोवा के बाद पूर्वोत्तर भारत में कांग्रेस में बड़ी सेंध, आखिर क्यों कांग्रेस की जड़ें काट रहीं ममता

locationनई दिल्लीPublished: Nov 25, 2021 01:44:24 pm

Submitted by:

Mahima Pandey

ये कांग्रेस के संगठन और रणनीति में कमी ही है जिसका लाभ टीएमसी उठा रही है। किसी भी नेता की अपनी महत्वाकांक्षाएं होती हैं, और ममता बनर्जी ने इसे अपनी रणनीति का हिस्सा बना लिया है।

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केंद्र की मोदी सरकार जबसे सत्ता में आई है कांग्रेस कमजोर होती गई है। कांग्रेस में नेतृत्व की कमी के कारण ही आज राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष पूरी तरह से बिखरा हुआ है। कांग्रेस की इस स्थिति का लाभ उठाते हुए ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस लगातार कांग्रेस की जड़ें काट रही है। त्रिपुरा, गोवा जैसे राज्यों के बाद मेघालय में कांग्रेस को तोड़कर टीएमसी खुद मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई है। तृणमूल कांग्रेस की सर्वेसर्वा ममता बनर्जी का फोकस राष्ट्रीय स्तर की राजनीति पर है और कांग्रेस का कमजोर नेतृत्व उनके लिए फयदेमंद साबित हो रहा है।
दरअसल, कांग्रेस को एक और बड़ा झटका तब लगा जब मेघालय में कांग्रेस के 18 में 12 विधायक तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गये। इनमें मेघालय के पूर्व मुख्यमंत्री मुकुल संगमा भी शामिल हैं। वहीं, इस मामले में देश की पुरानी पार्टी दल-बदल कानून का सहारा भी नहीं ले सकती क्योंकि दो तिहाई विधायकों के पार्टी बदलने पर ये कानून लागू नहीं होता।
मेघालय में कैसे ममता ने कांग्रेस में लगाई सेंध?

मेघालय में कांग्रेस में लंबे समय से कई बड़े नेता नाराज चल रहे थे। इस नाराजगी की शुरूआत तब हुई जब कांग्रेस हाईकमान ने विनसेंट एच पाला को अगस्त माह में प्रदेश अध्यक्ष बनाया था। इस नियुक्ति को लेकर मुकुल संगमा ने कहा था कि पार्टी ने इस मामले में उनकी सहमति नहीं ली है। उस समय भी ये खबरें थीं कि पार्टी के इस कदम से नाराज चल रहे संगमा पार्टी छोड़ सकते हैं। तृणमुल कांग्रेस ने इस अवसर का लाभ उठाया और कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं को अपनी ओर करने का काम शुरू कर दिया। सितंबर माह में टीएमसी के महासचिव अभिषेक बनर्जी से संगमा ने मुलाकात भी थी, परंतु इसपर किसी भी तरफ से कोई पुष्टि नहीं की गई थी। तब खबर थी कि संगमा कई नेताओं के साथ पार्टी छोड़ सकते हैं, परंतु तब उन्होंने इसे निराधार बताया था। यदि कांग्रेस ने मेघालय में पार्टी में चल रही दरार को पाट दिया होता तो शायद टीएमसी सेंधमारी करने में सफल न हो पाती। अब कांग्रेस को तोड़कर टीएमसी राज्य में मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई है।
बता दें कि वर्ष 2018 में मेघालय में कुल 60 सीटों में से 21 सीटों के साथ कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, परंतु कॉनराड संगमा के नेतृत्व वाली नेशनल पीपल्स पार्टी (एनपीपी) के खाते में 19 सीटें आई थीं जबकि भाजपा को दो सीटें मिली थीं। इसके बाद एनपीपी और भाजपा ने गठबंधन कर सरकार बना ली थी।
ममता कर रहीं अपनी पार्टी का विस्तार

टीएमसी कांग्रेस के अलावा कई पार्टियों के बड़े चेहरों को तोड़ रही हैं परंतु सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को हो रहा है। बिहार, हरियाणा, त्रिपुरा, असम और गोवा में भी टीएमसी कांग्रेस में बड़ी सेंधमारी कर चुकी है। गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री लुईजिन्हो फालेयरो कांग्रेस छोड़ टीएमसी में शामिल हो चुके हैं। इसके अलावा चाहे कीर्ति आज़ाद हो या पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के बेटे अभिजीत मुखर्जी या कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे कमलापति त्रिपाठी के पोते राजेश त्रिपाठी हो या हो सुष्मिता देव और अशोक तंवर सभी बड़े चेहरे कांग्रेस का दामन छोड़ टीएमसी में एक-एक कर शामिल हो रहे। यही नहीं त्रिपुरा में तो युवा कांग्रेस के पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष शांतनु साहा भी टीएमसी में शामिल हो गए। ममता बनर्जी जिस तरह से देश के अन्य राज्यों में अपनी पार्टी का विस्तार कर रही हैं उससे उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा साफ झलक रही है। ममता बनर्जी राष्ट्रीय राजनीति में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए कांग्रेस को तोड़ मुख्य विपक्षी पार्टी होने का टैग अपने नाम कर रही हैं। गौरतलब है कि आज ममता बनर्जी जो कर रही हैं कुछ ऐसा ही देश के प्रधानमंत्री मोदी ने भी गुजरात के सीएम रहते हुए किया था।
कांग्रेस की कमजोरी को बनाई अपनी ताकत

कांग्रेस बार-बार ममता बनर्जी पर पार्टी को तोड़ने का आरोप लगा रही है, जबकि ममता इसका कारण कांग्रेस के कमजोर नेतृत्व को बता रही हैं। वास्तव में ये कांग्रेस के संगठन और रणनीति में कमी ही है जिसका लाभ टीएमसी उठा रही हैं। किसी भी नेता की अपनी महत्वाकांक्षाएं होती हैं, और ममता बनर्जी ने इसे अपनी रणनीति का हिस्सा बना लिया है। आज वो किसी भी नेता को राज्यसभा को सांसद बना देती हैं तो किसी को अन्य महत्वपूर्ण पद थमा देती हैं। उदाहरण के लिए कांग्रेस छोड़ टीएमसी में शामिल हुए गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री लुईजिन्हो फालेयरो को ममता ने राज्यसभा सांसद बना दिया। आने वाले दिनों में टीएमसी अन्य बड़े चेहरों को बड़ी जिम्मेदारी भी दे सकती हैं।
ममता बनर्जी ने TMC के मुखपत्र जागो बांग्ला में भी लिखा था कि “तथ्य यह है कि हाल के दिनों में कांग्रेस, भाजपा के खिलाफ लड़ाई लड़ने में विफल रही है, पिछले दो लोकसभा चुनावों में यह साबित हो गया है। यदि आप केंद्र में लड़ाई नहीं दे सकते हैं तो जनता का विश्वास टूट जाता है। देश के लोगों को टीएमसी मॉडल में भरोसा है। हमें सबसे व्यावहारिक मॉडल पेश करना है जो भारत के लोगों की आकांक्षाओं को पूरा कर सकता है। टीएमसी लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने में एक कदम भी पीछे नहीं हटेगी।” वास्तविकता भी यही है कि कांग्रेस आंतरिक कलह के कारण कई राज्यों में पिछड़ती जा रही है, चाहे वो पंजाब हो या राजस्थान या हो कोई अन्य राज्य। इसके अलावा कई वरिष्ठ नेताओं के बागी तेवर भी कांग्रेस में देखने को मिल रहा है। यही कारण है कि विपक्ष एकजुट नहीं हैं और ममता इसी का लाभ उठा रहीं हैं। हालांकि,कांग्रेस ने ममता से नाराजगी भी जताई हैं।
कांग्रेस ने लगाये आरोप

ममता बनर्जी पर खरीद फरोख्त का आरोप लगाते हुए कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा, “ममता खरीद फरोख्त कर रहीं हैं। मैं चुनौती देता हूं इन विधायकों की हिम्मत है तो कांग्रेस का चुनाव चिन्ह छोड़ कर टीएमसी के चिन्ह पर लड़कर दिखाएं। ये मुकुल संगमा, लुइजिनो फलेरियो और प्रशांत किशोर मिलकर कर रहे हैं। मैं जानता हूं इन नार्थ ईस्ट के नेताओं को… दिन में कुछ और रात में कुछ और..।” उन्होंने आगे कहा कि ‘कांग्रेस को तोड़ने की साजिश सिर्फ मेघालय में नहीं उत्तर पूर्व के सभी राज्यों में हो रही है। पहले से ही जानकारी थी मेघालय में यह होने वाला है। टीएमसी में शामिल विधायक कांग्रेस के चिन्ह पर जीते हैं।’
हालांकि, ममता बनर्जी को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। उनका उद्देश्य 2024 का चुनावों में पीएम मोदी को हराना है। संभावनाएं हैं कि आने वाले समय में कम से कम 10 राज्यों ममता बनर्जी की पार्टी का दमखम दिख सकता है। आज कांग्रेस की तर्ज पर टीएमसी 2024 के लिए विभिन्न राज्यों में अपनी जड़ें जमा रही है। हालांकि, देशभर में आज भी कई ऐसी सीटें हैं जहां कांग्रेस और भाजपा का सीधा मुकाबला देखने को मिलता है जिससे ममता के लिए लड़ाई आसान नहीं होगी।
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