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UP Assembly Elections 2022 : दलित मतदाताओं ने बढ़ाई सियासी दलों की बेचैनी,इस जिलों में बदल सकते हैं चुनावी समीकरण

UP Assembly Elections 2022 इस बार विधानसभा चुनाव के पहले चरण में दलित मतदाताओं की चुप्पी ने सभी दलों की बेचैनी को बढ़ा दिया है। पहले चरण के लिए आगामी 10 फरवरी को 11 जिलों की 58 सीटों में मतदान होना है। इन 58 सीटों में कई सीटें ऐसी हैं जहां पर दलित वोट चुनावी समीकरण की कुवत रखता है।

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मेरठ

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Kamta Tripathi

Feb 08, 2022

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UP Assembly Elections 2022 गर्म चुनावी फिजा में इस बार दलित मतदाताओं की शांति ने सियासी दलों की बेकरारी बढ़ा दी है। दलितों की आबादी 20 प्रतिशत है। ये वो आबादी है जो मूड में आने पर किसी को भी सत्ता का स्वाद चखा सकती है। बसपा इन्हीं दलितों के सहारे सत्ता पर काबिज होती रही और मायावती को इसी समाज ने 4 बार सूबे का मुख्यमंत्री बना दिया। लेकिन इस बार 2022 के विधानसभा चुनाव में ये दलित मतदाता की चुप्पी राजनैतिक दलों की समझ से परे दिखाई दे रही है। लेकिन दलितों के वोटों को हासिल करने के लिए प्रत्याशी और राजनैतिक दल मेहनत कर रहे हैं। प्रदेश के दलित वोट बैंक को साधने के लिए जहां भाजपा और आरएसएस मेहनत कर रहे हैं। वहीं दूसरे दल सपा और कांग्रेस भी दलितों को मनाने में जुटे हैं। भाजपा जहां अपनी सत्ता बचाने के लिए चुनाव को चुनौती के रूप में ले रही है। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस,गठबंधन और बसपा सत्तादल भाजपा को सत्ता से बेदखल करने के लिए पूरी ताकत झोंक रही है।

भाजपा के दिग्गज स्टार प्रचारकों ने जहां पहले चरण के चुनावी जनसंपर्क अभियान में एक—एक जिले को पूरी तरह से मथ डाला है। इसके अलावा पीएम नरेंद्र मोदी,गृहमंत्री अमित शाह और सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी जनसंपर्क कर चुनाव को भाजपा के पक्ष में करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। बसपा की मायावती अब चुनाव प्रचार अभियान पर निकली हैं तो वहीं कांग्रेस की प्रियंका गांधी अकेले ही पूरे चुनाव प्रचार की कमान संभाले हुए हैं। इन सबसे बावजूद भी सभी की नजरें दलित मतदाताओं पर टिकी है। इस बार दलित वर्ग के थिंक टैंक में गहन मंथन चल रहा है। पश्चिमी उप्र में दलितों की सबसे अधिक संख्या जाटव, खटीक, वाल्मीकि, पासी जैसी बिरादरियों की है। लेकिन इनमें सबसे अधिक वोटर संख्या यानी 50 प्रतिशत पर जाटव का कब्जा है।

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भाजपा के दलित नेता चरण सिंह लिसाडी का कहना है कि आज दलित अपने वोटों की कीमत जान गया है। इसलिए वो अब एक जगह वोट नहीं करता। जहां उसको अपना और समाज का लाभ दिखाई देता है वहीं दलित समाज वोट करता है। दलित चिंतक सतीश कुमार का कहना है कि दलितों को लेकर हमेशा से राजनीति होती रही है। राजनैतिक दल अपने लाभ के लिए इस समाज को मोहरा बनाते रहे हैं। अब मुददे के साथ ही सुरक्षा और सम्मान भी प्राथमिकता पर है। ऐसे में जरूरी नहीं कि दलित एक ही जगह वोट करें।

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दलित प्रभाव वाले जिले
पश्चिमी उप्र में दलितों के प्रभाव वाले जिलों में मेरठ, आगरा, मथुरा, हापुड, बुलंदशहर, मुरादाबाद, बिजनौर, रामपुर, सहारनपुर, नोएडा इत्यादी हैं। इन जिलों में दलितों का मत चुनाव को पलटने में बड़ी भूमिका निभाता रहा है। आगरा में दलितों की अच्छी खासी संख्या है। इसके बाद सहारनपुर में दलितों मतदाताओं की संख्या काफी है। इसलिए ही मायावती ने अपने चुनावी अभियान की शुरूआत आगरा से की है।