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कांग्रेसियों को भी हजम नहीं, राहुल गांधी का आरएसएस से इस हद तक चिढ़ना

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का अब किसी पार्टी से संबंध नहीं रखने के बावजूद कांग्रेसी नेताओं की तरफ से उनका विरोध आज भी जारी है।

Jun 10, 2018 / 02:30 pm

Dhirendra

rahul

कांग्रेसियों को भी हजम नहीं, राहुल गांधी का आरएसएस से इस हद तक चिढ़ना

नई दिल्‍ली। कांग्रेस और आरएसएस के बीच छत्तीस का आंकड़ा आजादी के समय से ही चला आ रहा है। पिछले कुछ वर्षों में यह चलन सभी हदों को पार कर गया है। राहुल गांधी खुद आरएसएस से इस हद तक चिढ़ने लगे हैं कि पार्टी के वरिष्‍ठ नेताओं का एक धड़ा अब इस बात के खिलाफ मुखर हो गया है। आपको बता दें कि पूर्व राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने नागपुर में आरएसएस की मीटिंग में भाग क्‍या लिया कांग्रेस में इस बात की बहस छिड़ गई कि उन्‍होंने वहां जाने की जहमत कैसे की। लेकिन सीमा से परे जाकर आरएसएस से चिढ़ रखना अब कांग्रेस के ही कुछ नेताओं को हमज नहीं हो रहा है। इस बार स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि पार्टी इस बात को लेकर लोग दो धड़े में बंट गई है।
विरोध जारी रहा तो नुकसान ज्‍यादा होगा
गांधी परिवार के कट्टर समर्थकों का मानना है कि कांग्रेस अपनी मूल विचारधारा को नहीं बदल सकती है। उसे हर संभव तरीके से भगवा ताकत का विरोध करना चाहिए। इस धड़े का मानना है कि आरएसएस ने 2014 में लोकसभा चुनाव में मोदी की लोगों तक पहुंच काफी मजबूत की है। उसी के दम पर भाजपा को बहुमत मिला। इसलिए आरएसएस का विरोध करना चाहिए। बल्कि राजनीतिक क्षत्रपों को भी कांग्रेस के इस मुहिम में साथ देना चाहिए। जबकि दूसरे वर्ग का मानना है कि लगातार आरएसएस का विरोध करने की वजह से पार्टी को नुकसान हो रहा है। अगर यही सिलसिला जारी रहा तो आगामी लोकसभा चुनावों में पार्टी को और ज्‍यादा नुकसान उठाना पड़ सकता। ऐसा इसलिए कि पिछले 90 सालों में आरएसएस ने समाज में काफी गहरी जड़ें जमा ली हैं। ऐसी स्थिति में आगामी लोकसभा चुनाव अब बहुत दूर नहीं है।
किस बात की चिढ़?
आपको बात दें कि करीब तीन दशकों से आरएसएस की गतिविधियों से कांग्रेस को राजनीतिक स्‍तर पर नुकसान हो रहा है। इसका सीधा लाभ भाजपा को मिल रहा है। 1980 में अयोध्या मामले के बाद से भाजपा की पहुंच हिंदीभाषी क्षेत्रों के साथ साथ केंद्र में भी बढ़ने लगी। तभी से कांग्रेस ने आरएसएस और भाजपा पर हमले तेज कर दिए थे। अयोध्या मामले के बाद से ही कांग्रेस कमजोर होने लगी। मंडल आंदोलन ने भी कांग्रेस को काफी नुकसान पहुंचाया और इसकी वजह से भी कांग्रेस का सामाजिक आधार घटा। इस आंदोलन की वजह से यूपी, बिहार व हरियाणा में कई क्षेत्रीय पार्टियां भी काफी मजूबूती से उभरीं। लेकिन उस समय कांग्रेस इस खतरे को नहीं भांप पाई। अब भाजपा तो उसका विकल्‍प बन चुकी है।
जमीन खिसकने के बाद टूटा कांग्रेस का भ्रम
पहले पार्टी को लगता था कि सत्ता का रास्ता गांधी-नेहरू परिवार से होकर जाता है। जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी व राजीव गांधी शुरुआती दिनों में आरएसएस से होने वाले इस खतरे को नहीं भांप पाए। अब जाकर यह भ्रम टूटा है लेकिन आरएसएस ने अपनी जड़े मजबूत कर ली है। इतना ही उसने भाजपा को भी मजबूत करने का काम किया है। यही कारण है कि कांग्रेस के लिए 2019 लोकसभा में सत्‍ता में वापसी करना नामुमकिन जैसा लगने लगा है।

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