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आपातकाल के 43 साल: जेपी आंदोलन और इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला था इमरजेंसी का कारण

जेपी आंदोलन और इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को इमरजेंसी का सबसे बड़ा कारण माना जाता है। इसके बाद ही इंदिरा गांधी की मुश्किलें बढ़ गईं थीं।

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गांधी

नई दिल्ली। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के शासन में लगी इमरजेंसी को आज 43 साल पूरे हो गए हैं। वैसे तो भारतीय राजनीति में कई मौके ऐसे आते हैं, जब इमरजेंसी के मुद्दे पर खूब सियासत होती है। आज भी बीजेपी ने 'काला दिवस' मनाने का ऐलान किया है। साल 1975 में 25-26 जून की आधी रात को देश में आपातकाल लगाया दया था। जब-जब इमरजेंसी की बात की जाती है लोगों के अंदर कांग्रेस पार्टी के प्रति गुस्सा साफ नजर आता है। साथ ही इमरजेंसी एक ऐसा दाग है, जो कांग्रेस पार्टी के दामन से 43 साल बाद भी नहीं धुला है। इसके परिणाम कांग्रेस पार्टी आज भी भुगत रही है, लेकिन ये जानना सबसे ज्यादा जरूरी है कि आखिर देश के अंदर किन हालात में आपातकाल लगाया गया था और इसे लगाने से सरकार और देश को क्या मिला ?

इमरजेंसी के दो बड़े कारण

- जेपी आंदोलन

आपातकाल पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के दामन पर ऐसा कलंक था, जिसके लिए देश की जनता ने उन्हें कभी माफ नहीं किया और इसका नतीजा आपातकाल हटने के बाद ही देखने को मिल गया था, जब चुनावों में कांग्रेस पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा। ये जानना बेहद जरूरी है कि आखिर किन कारणों की वजह से देश में इमरजेंसी लगाई गई थी। तो आपको बता दें कि इमरजेंसी लगने के दो सबसे बड़े कारण थे जेपी आंदोलन और इंदिरा गांधी की लोकसभा सीट रायबरेली को अयोग्य घोषित करने वाला इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला, जिसकी वजह से इंदिरा सरकार ने देश के अंदर आपातकाल लगा दिया।

- इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला

इंदिरा गांधी की सरकार में जनता महंगाई, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी की मार झेल रही थी। ये तीनों मुद्दे इंदिरा गांधी की सरकार में ऐसे थे जिनकी वजह से आपातकाल के पहले कारण जेपी आंदोलन को हवा मिली थी। इंदिरा के शासन में महंगाई, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी अपने चरम पर पहुंच चुकी थी, जिसकी वजह से देश की जनता के अंदर भारी गुस्सा था। यहीं से जेपी आंदोलन की शुरुआत हुई थी। 72 साल के बुजुर्ग समाजवादी-सर्वोदयी नेता लोकनायक जयप्रकाश नारायण के पीछे देश भर के छात्र-युवा अनुशासित तरीके से इकट्ठा होने लगे थे। गुजरात और बिहार से सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन देश के अन्य हिस्सों में भी जंगल की आग की तरह फैलने लगी। इस आंदोलन ने न सिर्फ राज्यों की कांग्रेसी सरकारों बल्कि केंद्र में सर्वशक्तिमान इंदिरा गांधी की सरकार को भी भीतर से झकझोर दिया था।

क्या था कोर्ट का फैसला

इसी बीच में 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट का एक ऐतिहासिक फैसला आया। जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा की बेंच ने फैसला सुनाते हुए इंदिरा गांधी की लोकसभा सीट रायबरेली को अयोग्य घोषित कर दिया था। इस सीट पर इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव लड़े समाजवादी नेता राजनारायण ने नतीजों को लेकर हाईकोर्ट में एक याचिका डाली थी, जिसको लेकर कोर्ट ने ये फैसला सुनाया था। हाईकोर्ट ने उनकी लोकसभा सदस्यता रद्द करने के साथ ही उन्हें छह सालों तक चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य भी घोषित कर दिया था। इंदिरा गांधी को बड़ा झटका तब लगा, जब 24 जून को सुप्रीम कोर्ट ने भी इस फ़ैसले पर मुहर लगा दी थी, हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें प्रधानमंत्री बने रहने की छूट दे दी थी। वह लोकसभा में जा सकती थीं लेकिन वोट नहीं कर सकती थीं।

कोर्ट के फैसले के बाद शुरू हो गया था जेपी आंदोलन

इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के अगले दिन यानि कि 25 जून को जेपी ने अनिश्चितकालीन देशव्यापी आंदोलन का आह्वान किया था। दिल्ली के रामलीला मैदान में जेपी ने राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर की मशहूर कविता की पंक्ति-'सिंहासन खाली करो कि जनता आती है,' का उद्घोष किया था और आंदोलन की शुरुआत हुई थी।

इसके बाद इंदिरा गांधी ने अपने छोटे बेटे संजय गांधी, कानून मंत्री हरिराम गोखले और पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे जैसे कुछ ख़ास सलाहकारों से मंत्रणा के बाद 'आंतरिक उपद्रव' की आशंका के मद्देनजर संविधान की धारा 352 का इस्तेमाल करते हुए आधी रात को तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से देश में 'आंतरिक आपातकाल' लागू करने का फरमान जारी करवा दिया था।