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लोकसभा चुनाव 2019ः पश्चिम बंगाल में चुनावी हिंसा सियासी बदलाव के संकेत तो नहीं!

Published: May 15, 2019 12:44:30 pm

पश्चिम बंगाल में जारी हिंसक घटनाओं से बढ़ा तनाव
चुनाव के अंतिम चरण में भाजपा खेल सकती है इमोशनल कार्ड
ममता बनर्जी के सामने टीएमसी को जीत दिलाने की चुनौती

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लोकसभा चुनाव 2019ः पश्चिम बंगाल में चुनावी हिंसा सियासी बदलाव के संकेत तो नहीं!

नई दिल्ली। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के रोड शो के दौरान कोलकाता में हिंसा और आगजनी की घटनाओं के बाद पश्चिम बंगाल मेें सियासी जंग चरम पर पहुुंच गया है। इस तरह की हिंसक घटनाएं वहां तब हो रही हैं जब चुनाव आयोग ने सुरक्षित तरीके से मतदान के लिए भारी संख्या में सुरक्षा बलों की तैनाती की है। इसके बावजूद बडे़ पैमाने पर हिंसक घटनाओं को देखते हुए यह कयास लगाए जाने लगे हैं कि कहीं हिंसक घटनाएं सियासी बदलाव के संकेत तो नहीं हैं। अगर ऐसा है तो तय मानिए कि पश्चिम बंगाल में राजनीति इस बार करवट लेने वाली है।
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हिंसा ही अंतिम विकल्‍प क्यों?
सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के फेलो राहुल वर्मा के मुताबिक बढ़ती हिंसा के पीछे महत्वपूर्ण सियासी संकेत छुुुुपा है। आठ साल पहले पश्चिम बंगाल में वामदलों को सत्ता से बाहर का रास्‍ता दिखाने के बाद पहली बार टीएमसी कड़े प्रतिरोध का सामना कर रही है। टीएमसी के सामने पश्चिम बंगाल में भाजपा ने चुनौती पेश की है न कि कांग्रेस या वामपंथी पार्टियों ने। जबकि आजादी के बाद से अब तक के 72 वर्षों में पश्चिम बंगाल में भाजपा का राजनीतिक असर कभी नहीं रहा। यही बात वहां पर टीएमसी को अब हजम नहीं हो रहा है। टीएमसी और भाजपा के बीच हिंसक झड़प उसी का नतीजा माना जा रहा हैा
एडमिनिस्ट्रेटर नियुक्त करे चुनाव आयोग

भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुदेश वर्मा के मुताबिक ममता सरकार ने पश्चिम बंगाल में लोकतांत्रिक परंपराओं को ध्‍वस्‍त करने का काम हुआ है। उन्‍होंने कहा कि अब पश्चिम बंगाल में टीएमसी का सीधा मुकाबला भाजपा से हैं। भाजपा के बढ़े राजनीतिक कद से सीएम ममता बनर्जी घबरा गई हैं। संवैधानिक व्यवस्था को दरकिनार कर उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं के जरिए हिंसा को बढ़ावा दिया है। ताकि भाजपा के लोगों में खौफ पैदा हो सके। आए दिन भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्याएं और हिंसक घटनाएं होने लगी हैं। दूसरी तरफ ममता बनर्जी सुनियोजित तरीके से भाजपा को बदनाम करने की रणनीति पर काम कर रही हैं।
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यही वजह है कि भाजपा नेताओं के रोड शो, जनसभा व चुनावी गतिविधियों को हिंसा बढ़ावा देने वाला कार्यक्रम करार देना चाहती हैं। जबकि भाजपा खुद खुद विक्टिम है। उन्होंने चुनाव आयोग से अंतिम चरण का मतदान किसी एडमिनिस्ट्रेटर को नियुक्त कर कराने की मांग की है। यहां तक कि राष्ट्रपति से इस मामले में हस्तक्षेप की अपील की है। उन्होंने ममता सरकार पर संघवाद के खिलाफ काम करने का आरोप लगाया है।
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निशाने पर भाजपा

लोकसभा चुनाव के पहले चरण में अलीपुरद्वार और कूच बिहार में टीएमसी और भाजपा समर्थकों के बीच
हिंसक झड़प हुई थी। टीएमसी समर्थकों ने लेफ्ट फ्रंट प्रत्याशी गोविंदा राय पर हमला बोला था। दूसरे चरण में रायगंज के इस्लामपुर में सीपीआई एम सांसद मो. सलीम पर टीएमसी समर्थकों ने हमला बोला। इस हमले में वो बाल-बाल बच गए थे। इस चरण में हिंसा की 1500 शिकायतें चुनाव आयोग को मिलीं। बूथों पर बमबारी की घटनाएं भी हुईं। मुर्शिदाबाद में 56 वर्षीय कांग्रेस समर्थक व्‍यक्ति की टीएमसी समर्थकों ने पीट-पीटकर हत्या कर दी। हिंसा की इन घटनाओं में 60 लोग गिरफ्तार हुए। चौथे चरण में आसनसोल में टीएमसी कार्यकर्ताओं और सुरक्षाबलों में जमकर झड़पें हुईं। केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो पर हमला हुआ और उनकी कार के शीशे तोड़ दिए गए। पांचवें चरण बैरकपुर में भाजपा और टीएमसी समर्थकों के बीच झड़पें हुईंं। भाजपा प्रत्याशी अर्जुन सिंह ने टीएमसी कार्यकर्ताओं पर हमला करने का आरोप लगाया।
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हत्या और हिंसा
लोकसभा चुनाव के छठे चरण में मतदान शुरू होने के कुछ घंटे पहले एक भाजपा कार्यकर्ता की हत्या और दो पर जानलेवा हमला हुआ। घाटल और तामलुक में भाजपा प्रत्याषी भारती घोष पर भी दुस्‍साहसी टीएमसी कार्यकर्ताओं ने हमला बोला। इसके अलावा अभी तक छह चरणों में संपन्‍न मतदान के दौरान वीरभूम, झारग्राम, बांकुरा, कोलकाता, मेदिनीपुर, पुरुलिया, जाधवपुर सहित कई स्‍थानों पर हिंसक झड़पें हो चुकी हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष, पूर्वोत्तर भारत के बड़े भाजपा नेता हिमंत बिस्व सरमा, भाजपा नेता मुकुल राय, लोकसभा प्रत्‍याशी अनुपम हाजरा पर भी जानलेवा हमले हुए। इन हमलों को लेकर प्राथमिकी भी दर्ज कराई गई है। मंगलवार को कोलकाता में अमित शाह जब रोड शो कर रहे थे उस समय भी टीएमसी और भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच हिंसक झड़पें हुईं। भाजपा ने टीएमसी पर हमला कराने का आरोप लगाया है।
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केंद्र से तालमेल का अभाव

पश्चिम बंगाल ऐसा राज्य है, जिसकी केंद्र सरकार से कभी पटरी नहीं बैठी। यहां जो भी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठता है, प्रदेश की जनता को छोड़कर बाकी सबकी चिंता करता है। केंद्र में जब भी खिचड़ी सरकार बनती है, तब इनकी बांछें खिल जाती हैं। क्योंकि उन्हें मजबूर सरकार होने पर दिल्‍ली में औकात से ज्‍यादा सम्मान मिलने लगता है। केवल कुछ ही सांसदों के बल पर ये सरकार पलट देने की धमकी देते रहे हैं।
कश्‍मीर घाटी भी हुई शर्मसार

लोकसभा चुनाव के छह चरणों के मतदान के दौरान वहां जिस तरह बड़े पैमाने पर हिंसक घटनाएं हुई हैं उसने तो कश्मीर घाटी को भी पीछे छोड़ दिया। वहां की हिंसा देखकर घाटी पहली बार शर्म से लाल हुई।
ममता को अप्वाइंटमेंट लेना पड़ता है

केंद्र में गठबंधन का दौर करीब तीन दशक तक जारी रहा। 2014 में पहली बार पूर्ण बहुमत वाली मोदी सरकार बनी और उसी के साथ स्थितियां भी बदल गईं। उसके बाद से ममता अपने मन की नहीं कर पा रहीं हैं। इसलिए उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से काफी चिढ़ है। अब उन्हें पीएम मिलने के लिए अप्‍वाइंटमेंट लेना पड़ता है। उनके लिए पीएमओ में पहले की तरह रेड कार्पेट नहीं बिछाए जाते। पीएमओ में बेरोकटोक एंट्री बंद कर दिया गया हैा ममता बनर्जी इस स्थिति को खुद के लिए अपमानजनक मानती हैं।
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अपमान का बदला

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि ममता बनर्जी अप्‍वाइंटमेंट लेने की बात को अपना अपमान मानती हैं। संभवत- अब उसी का बदला ले रही हैं और धमकी भी दे रहीं है कि हर हिसाब चुकता किया जाएगा। काफी समय से देखा जा रहा है कि केवल चुनाव ही नहीं, बल्कि केंद्र सरकार के जो भी निर्णय होते हैं उसका विरोध करना ही उनका पहला कर्तव्य हो गया है। सीबीआई के अधिकारी पूछताछ के लिए जब पश्चिम बंगाल जाते हैं, तो उन्‍हें विरोध का सामना करना पड़ता है।
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सियासी समीकरण अनुकूल नहीं

ममता बनर्जी के लिए यह चुनाव किसी तरह से लाभदायी नहीं कहा जा सकता है। थोड़ी देर के लिए अगर यह मान भी लें कि मोदी सरकार की वापसी नहीं होगी तो भी सियासी परिस्थितियां ममता के अनुकूल होने की उम्‍मीद नहीं है। ऐसा इसएिल कि महागठबंधन पर या तो मायावती प्रभाव हैं या राहुल गांधी का। थर्ड फ्रंट के हावी होने पर भी सीएम के चंद्रशेखर राव या किसी और का नाम आगे आ जाता है। केंद्र में दस्तक देने के लिए पश्चिम बंगाल की वामपंथी पार्टियां भी उनके साथ नहीं हैं।
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ममता वामपंथियों वाला कर रही हैंं काम

पश्चिम बंगाल में 1952 से लेकर 1977 तक कांग्रेस का राज रहा। 1977 में पहली बार आपातकाल के बाद वामपंथी पार्टियों को सत्ता में आने का मौका मिला। वामपंथी पार्टियां 1977 से 2011 तक यानि लगातार 34 साल हिंसा के बल पर सत्ता पर काबिज रहीं। इन तीन दशकों में करीब 28,000 राजनीतिक हत्याएं वामपंथी पार्टियों ने कराए। 2011 से पश्चिम बंगाल में टीएमसी सत्ता में है। अब सीएम ममता बनर्जी सत्ता में बने रहने के लिए वही काम कर रही हैं जो दशकों तक वामपंथियों ने पश्चिम बंगाल में किया।

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