
खतरे में मिशन 2019: महागठबंधन में दरार! लगातार तीन नेताओं ने दिखाए बागी तेवर
नई दिल्ली। पीएम मोदी के खिलाफ लोकसभा चुनाव लड़ने को लेकर महागठबंधन का नेतृत्व कौन करेंगा इस बात को लेकर फिर से कवायद तेज हो गई है। इस बात को लेकर गठबंधन में दरार पहले की तरह बरकरार है। ऐसा इसलिए कि इसके नेतृत्व को लेकर अब भी मतभेद है। राजनीतिक क्षत्रपों में कुछ राहुल गांधी को नेतृत्व देने के पक्ष में दिखाई देते हैं तो कुछ इसके विरोध में हैं। राहुल को नेतृत्व कई क्षत्रपों को अभी भी स्वीकार नहीं है। फिलहाल इस बात को लेकर दावेदारों के बीच जारी मतभेद थमता भी नजर नहीं आ रहा है। खासकर राहुल गांधी के उस बयान के बाद कि गठबंधन में शामिल किसी भी पार्टी का नेता पीएम बन सकता है।
किसी में 100 सीट लाने का दम नहीं
नेशनल कांफ्रेंस (नेकां) के प्रमुख और जम्मू और कश्मीर के पूर्व सीएम फारुख अब्दुला के बयान से यह मामला एक बार फिर चर्चा में आ गया है। फारुक अब्दुल्ला ने कहा कि केन्द्र में भाजपा को सत्ता से हटाने के लिए 2019 के लोकसभा चुनावों के प्रचार अभियान में कांग्रेस को विपक्षी एकता की धुरी और इसके प्रमुख राहुल गांधी को बनना होगा। इससे अपने राज्यों में मजबूत क्षेत्रीय नेताओं की जिम्मेदारी इससे कम नहीं होती है। इसके पीछे उनका तर्क है कि केंद्र में सरकार बनाने के लिए आपको 272 सीटों की जरूरत होगी जो क्षेत्रीय दलों को मिलने नहीं जा रही। यदि गैर-भाजपा सरकार बनाने के लिए इस आंकड़े तक नहीं पहुंचते हैं तो आप 100 सीटों के करीब होने के कारण कांग्रेस की तरफ देखेंगे। इसके बावजूद उनका ये बयान अपने आप में विरोधभासी है। अगर किसी बड़े राज्य का नेता महागठबंधन को जिताने की जिम्मेदारी लेगा तो फिर वो उसका नेतृत्व भी करना चाहेगा।
ममत को बताई अपनी इच्छा
नेशनल कांफ्रेंस प्रमुख अब्दुल्ला ने इस बारे में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से भी मिले हैा और संभावित विपक्षी मोर्चा पर भी बातचीत की है। अब्दुल्ला ने कहा कि सबसे बड़े विपक्षी दल का अध्यक्ष होने के नाते वह उम्मीद कर रहे हैं कि राहुल गांधी ही चुनाव अभियान की अगुवाई करेंगे। इस पर ममता बनर्जी ने उन्हें कोई स्पष्ट आश्वासन नहीं दिया है। राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाने वालों पर निशाना साधते हुए अब्दुल्ला ने कहा है कि वह कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष हैं। अगर किसी को उनके नेतृत्व के गुण पर संदेह होना चाहिए तो यह उनकी पार्टी को होना चाहिए। उनकी पार्टी को इससे कोई समस्या नहीं है, तब किसी और को आपत्ति क्यों होनी चाहिए। जबकि दबे स्वर में अन्य राजनीतिक क्षत्रपों का कहना है कि इसका मतलब ये भी नहीं है कि अब्दुल्ला को आपत्ति नहीं है तो ममता, मायावती और शरद पवार व चंद्रबाबू को भी इस पर आपत्ति न हो।
नेतृत्व स्वीकार कर लेंगे ममता और माया
सबसे बड़ा सवाल यह है कि 2017 में महागठबंधन की सोच को बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने हवा देने का काम किया था। लेकिन राजनीतिक घटनाक्रम बदलने की वजह से वो महागठबंधन को छोड़ फिर से एनडीए में शामिल हो गए। उसके बाद महागठबंधन के साथ ममता, चंद्रबाबू नायडू और केसीआर ने थर्ड फ्रंट का मुद्दा छेड़ दिया। उसके बाद से सीएम ममता बनर्जी इस मुहिम को लीड करने को लेकर सक्रिय हैं। उनकी सक्रियता से विपक्षी एका पर सवाल उठ खड़े हुए। इस बीच राहुल गांधी को लेकर सबसे बड़ी चुनौती बसपा प्रमुख मायावती बनी हुई हैं। उन्होंने महागठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला तो किया है, लेकिन उनकी शर्त ये भी कि अगर उन्हें यूपी में संतोषजनक सीटें नहीं मिलीं तो वह अपने निर्णय पर पुनर्विचार भी कर सकती हैं। इसके बावजूद मायावती के बारे में यह भी कहा जा रहा है कि सही समय पर वो खुद पीएम पद के लिए अपना दावा पेश कर सकती हैं। यानी महागठबंधन के नेतृत्व को लेकर ही मामला आज भी उलझा हुआ है। ऐसे में फारुक अब्दुल्ला का सुझाव कितना कारगर साबित होगा इसके बारे में कहना मुश्किल है।
Published on:
29 Jul 2018 03:07 pm
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