
कांग्रेस अध्यक्ष, पीएम और सीएम बनने की दौड़ में हमेशा भारी पड़ते हैं पार्टी के अनुभवी नेता।
नई दिल्ली। कांग्रेस ( Congress ) में बुजुर्ग बनाम युवा ( Young vs Old ) नेताओं के बीच संघर्ष का इतिहास पुराना है। खास बात यह है कि कांग्रेस में हमेशा से बुजुर्गों की राजनीति सफल रही है। दूसरी तरफ युवा नेता हर बार मात खाते रहे हैं। राजस्थान में मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर जारी संघर्ष कांग्रेस के इतिहास का एक पड़ाव या रिटेक भर है।
देश में कांग्रेस एक ऐसी पार्टी है जिसमें बुजुर्ग और युवा नेताओं में बीच सत्ता का संघर्ष ( Political Struggle ) हमेशा से रहा है। एक दौर में पूर्व पीएम राजीव गांधी ( Rajiv Gandhi ) भी इसका शिकार हुए थे। बोफोर्स घोटाले का उजागर होना और राजीव गांधी का सत्ता से बाहर होने में भी कांग्रेस के बुजुर्ग नेताओं का काफी योगदान रहा था। दरअसल, कांग्रेस में बुजुर्ग नेता टॉप बने रहना चाहते हैं। इसी की सोच का परिणाम है कि युवा नेताओं को उच्च स्तर पर जिम्मेदारी हासिल करने के लिए बहुत कम अवसर मिल पाता है।
पहले भी उपेक्षा के शिकार हो चुके हैं युवा नेता
सचिन पायलट (Sachin Pilot ) से पहले ममता बनर्जी, वाईएस जगन मोहन रेड्डी, हिमंत बिस्वा शर्मा, ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, दीपेंद्र सिंह हुड्डा, आरपीएन सिंह, संदीप दिक्षित और खुद राहुल गांधी ( Rahul Gandhi ) भी इसी बात का शिकार होते रहे हैं। इंदिरा गांधी और संजय गांधी ( Sanjay Gandhi ) के बीच सत्ता का संघर्ष भी यंग बनाम ओल्ड पर्याय था।
हालांकि नए जमाने की कांग्रेस ने दिग्गज नेताओं के साथ यूथ पावर की ब्रांडिंग की। राहुल गांधी ने यूथ ब्रिगेड ( Youth Brigade ) को आगे लाने की भरपूर कोशिश की लेकिन वो भी सफल नहीं हुए। लेकिन धीरे-धीरे स्थिति काफी बदल गई। मध्य प्रदेश के दिग्गज और ऊर्जावान नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ( Jyotiraditya Scindhia ) ने न सिर्फ बीजेपी की सदस्यता ग्रहण की, बल्कि अपने समर्थक विधायकों के बल पर वर्षों बाद एमपी की सत्ता में आई। कांग्रेस की सरकार को भी गिरा दिया।
सिंधिया भी एमपी की राजनीति में खुद को दरकिनार महसूस कर रहे थे। महाराष्ट्र में कांग्रेस के युवा चेहरा मिलिंद देवड़ा ( Milind Deora ) ने भी हाल में मुंबई कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। इतना ही नहीं कई अन्य युवा नेता भी आजकल चर्चा में नहीं हैं। दिल्ली में शीला दीक्षित के पुत्र संदीप दीक्षित ( Sandeep Dixit ) भी इसी का शिकार हुए।
दुर्व्यवहार करने वाले नेताओं के कारण प्रियंका ने छोड़ी थी कांग्रेस
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले अप्रैल, 2019 में प्रियंका चतुर्वेदी ( Priyanka Chaturvedi ) ने कांग्रेस पार्टी ( Congress Party ) छोड़ दी। वह दुर्व्यवहार करने वाले नेताओं को वापस पार्टी में लाने के लिए कांग्रेस नेतृत्व से नाराज थीं। प्रियंका बाद में शिवसेना में शामिल हो गईं।
सोमवार को जब राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ( CM Ashok Gehlot ) ने अपने आवास पर विधायक दल की बैठक बुलाई तो इसमें सचिन पायलट ने हिस्सा नहीं लिया। पायलट के बागी तेवर से हरकत में आई कांग्रेस पार्टी ने स्थिति को संभालने के लिए दो वरिष्ठ नेता रणदीप सुरजेवाला ( Randeep Surjewala ) और अजय माकन ( Ajay Maken )को राजस्थान भेज दिया।
ऐसे कई मौके सामने आए जब पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने युवा नेताओं के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया। एक अन्य नेता ने कहा कि 2014 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी के करीबी माने जाने वाले एक महासचिव ने युवा नेताओं के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया।
यूपीए-2 के बाद अभी तक पार्टी लाइन पर नहीं आई
राजनीति के जानकारों का कहना है कि यह सिर्फ युवाओं और दिग्गजों की लड़ाई की लड़ाई की बात नहीं है। यह नेताओं की अक्षमता है। ज्योतिरादित्य सिंधिया पहले और सचिन पायलट आखिरी नहीं है कि उनकी वरिष्ठ नेताओं के साथ मनमुटाव है। मुझे यह भी लगता है कि यूपीए-2 ( UPA-2 ) के बाद पार्टी अभी तक अच्छी तरह से व्यवस्थित नहीं हो पाई है।
गांधी परिवार की वकालत करने में आगे रहे हैं वरिष्ठ नेता
कांग्रेस पार्टी ( Congress Party ) के वरिष्ठ नेताओं को राहुल गांधी के अलावा कोई दूसरा युवा नेता स्वीकार नहीं था। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ, राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत, पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा, गुलाम नबी आजाद, अहमद पटेल मुकुल वासनिक, मल्लिकार्जुन खड़गे, सुशील कुमार शिंदे सहित तमाम सीनियर नेता गांधी परिवार ( Gandhi Family ) में से ही किसी को अध्यक्ष बनाने की वकालत कर रहे हैं जिससे उनका पार्टी पर नियंत्रण बना रहे।
कांग्रेस में युवाओं को मिला सबसे ज्यादा मौका
जून, 2020 में ही एक साक्षात्कार में सीएम अशोक गहलोत ने कहा था कि नई पीढ़ी जो आ रही है यहां उनकी गलती नहीं है। उन्हें अचानक मौका मिल गया। स्थितियां ऐसी बन गईं कि उन्हें पार्टी हाईकमान ने केंद्रीय मंत्री या संगठन में बड़े ओहदे पर बैठने के अवसर भी दे दिए। उसके कारण जो उनकी रगड़ाई होनी थी वह नहीं हो पाई।
ज्योतिरादित्य सिंधिया पार्टी से चले गए। उनके पिता लंबे समय तक पार्टी के वफादार थे। सिंधिया को केंद्र में अच्छे मौके मिले। कांग्रेस पार्टी ने खूब मान सम्मान दिया। ये केवल हमारी पार्टी में ही मिलता है।
Updated on:
14 Jul 2020 11:22 am
Published on:
14 Jul 2020 09:10 am
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