जोधपुर।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने
आरक्षण की
राजनीति और उसके दुरूपयोग के मद्देनजर इसकी आवश्यकता पर फिर से विचार करने की बात
कही है।
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने सुझाव दिया है कि एक समिति बनाई जाए, जो यह तय
करे कि कितने लोगों को और कितने दिनों तक आरक्षण की आवश्यकता होनी चाहिए। उन्होंने
कहा कि ऎसी समिति में नेताओं से ज्यादा सेवाभावियों का महत्व होना चाहिए। रविवार को
कमला नेहरू नगर स्थित आदर्श विद्या मंदिर में प्रबोधन एवं कार्यकर्ता बैठक में
उन्होंने यह बातें कहीं। भागवत ने दूसरे सत्र में मुख्य शिक्षक एवं कार्यवाहक
शिक्षक सहित उच्च पदाधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा, आज आरक्षण को लेकर
प्रत्येक समाज खड़ा हो रहा है।
उन्होंने कहा कि आरक्षण पर पुनर्विचार होना चाहिए। एक समिति बना दो, जो
राजनीति के प्रतिनिधियों को भी साथ लें, लेकिन इसमें चले उसकी जो सेवाभावी हों।
उनको तय करने दें कि कितने लोगों के लिए आरक्षण आवश्यक है और कितने दिनों तक उसकी
आवश्यकता पड़ेगी। भागवत ने संघ के मुखपत्र "पांचजन्य" और "आर्गेनाइजर" को दिए
इंटरव्यू में भी इस संबंध में अपने विचार रखे।
सब सुखी हों, यही समग्र भाव होना
चाहिए दबाव की राजनीति से संबंधित सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, प्रजातंत्र
की कुछ अपेक्षाएं हैं, लेकिन दबाव बनाकर दूसरों को दुखी कर इन्हें पूरा नहीं किया
जा सकता। सब सुखी हों, ऎसा समग्र भाव होना चाहिए। उन्होंने कहा, देश के हित में
हमारा हित है, ये समझकर चलना समझदारी है। शासन को इतना संवेदनशील होना चाहिए कि
आंदोलन हुए बिना समस्याओं को ध्यान में लेकर उनके हल निकालने का प्रयास
करे।
आपसी सहयोग से मिटेगा संघर्ष सत्ता और समाज के बीच संघर्ष पर सरसंघचालक
ने कहा कि सत्ता और समाज के आपसी सहयोग से देश बना है, इसके संघर्ष से नहीं।
एकात्मक मानवदर्शन बिल्कुल व्यावहारिक बात है, इसे धरती पर उतारने के लिए हमको और
कुछ करना पड़ेगा। जब तक हम प्रयोग द्वारा वह नहीं दिखा पाते, तब तक इसकी
व्यवहारिकता सिद्ध नहीं कर सकते।
राजनीतिक हथियार बन गया आरक्षणमोहन
भागवत का कहना है कि संविधान में सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण नीति की
बात है। इसलिए व्यवहार में भी वैसा ही होना चाहिए, जैसा संविधानकार चाहते थे। अगर
इसका उसी आधार पर प्रयोग होता, तो आज समस्या नहीं खड़ी होती। आज आरक्षण राजनीति का
हथियार बन गया है।
भागवत व कोठारी में हुई थी चर्चाजयपुर। बीते दिनों
संघ प्रमुख मोहन भागवत और पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी के बीच
आरक्षण सहित राष्ट्रहित के कई बिंदुओं पर चर्चा हुई थी। कोठारी ने कहा था कि आरक्षण
को जिस उद्देश्य से शुरू किया गया था, उसके विपरीत अब यह नुकसान ज्यादा पहुंचा रहा
है। समाज दो वर्गो में बंट गया है। पिछड़ों के विकास की मूल अवधारणा पीछे छूट गई
है। समानता के हक के लिए युवा पीढ़ी को तैयार होना चाहिए। आरक्षण गरीबों के लिए ही
होना चाहिए। भागवत ने माना था कि आरक्षण की अवधारणा आज नुकसान पहुंचा रही है। इसका
कारण सामाजिक न होकर राजनीतिक अवधारणा है। इसका हल सामाजिक स्तर पर ही हो सकता है।
सामाजिक स्तर पर ही पिछड़े लोगों का उत्थान संभव है। नया वातावरण बनाना होगा।