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यूपी और Goa के चुनावों में कांग्रेस के साथ जाना शिवसेना को पड़ सकता है भारी, जानें कैसे

locationनई दिल्लीPublished: Dec 09, 2021 05:15:27 pm

Submitted by:

Mahima Pandey

महाराष्ट्र (Maharashtra) की पार्टी शिवसेना (Shiv Sena) के सांसद संजय राउत (Sanjay Raut) ने कहा, “हम उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) और गोवा (Goa) में एक साथ काम करने पर विचार कर रहे हैं।” ये कैसे शिवसेना के लिए घाटे का सौदा साबित हो सकता है और भाजपा का लिए अवसर इसे समझते हैं।

संजय राउत बोले- एक्सीडेंटल शिवसेना प्रमुख नहीं थे बालासाहेब ठाकरे

संजय राउत

एक समय था जब शिवसेना और कांग्रेस (Congress) कट्टर विरोधी हुआ करते थे। आज ये दोनों पार्टियां गलबहियां करते हुए नजर आती है। महाराष्ट्र (Maharashtra) के बाद अब शिवसेना ने उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) और गोवा (Goa) में भी मिलकर चुनाव लड़ने का निर्णय किया है। हालांकि, इससे कांग्रेस को तो कोई घाटा शायद ही हो, परंतु शिवसेना को आने वाले समय में बड़ा झटका अवश्य लग सकता है।

कैसे कांग्रेस के साथ जाना शिवसेना को पड़ेगा भारी?

शिवसेना हिंदुओं की पार्टी मानी जाती रही है जिसकी धर्मनिरपेक्ष पार्टी कांग्रेस से कभी बनी नहीं। या यूं कहें कांग्रेस के विरोध में ही बाला साहब ठाकरे ने शिवसेना की नींव रखी थी। बाला साहब ठाकरे के विचारों के विपरीत शिवसेना ने वर्ष 2019 में मुख्यमंत्री पद के लिए कांग्रेस से हाथ मिलाया था। उस समय इसके समर्थकों में काफी नाराजगी देखने को मिली थी। इसका प्रभाव बीएमसी चुनावों में देखने को मिल सकता है। इसके अलावा,
अयोध्या (Ayodhya) यात्रा के दौरान उद्धव का विरोध हो, या वीर सावरकर के मुद्दे पर कांग्रेस के खिलाफ उसकी चुप्पी, या मुस्लिम आरक्षण देने पर जोर देना हो, इन मुद्दों के कारण शिवसेना की हिन्दुत्व वाली छवि पर नकारात्मक प्रभाव देखने को मिला है।
अब यूपी और गोवा के चुनावों में कांग्रेस के साथ जाने से शिवसेना को आगामी बृहन्मुंबई म्युनिसिपल कॉरपोरेशन (BMC Election) के 227 सीटों पर अगले वर्ष होने वाले चुनावों में बड़ा नुकसान झेलना पड़ सकता है।
अन्य राज्य में कांग्रेस के साथ जाने से भाजपा को BMC चुनावों में शिवसेना को हिन्दुत्व के मुद्दे पर घेरने का फिर से अवसर मिल जाएगा।

वर्ष 2017 में भाजपा ने बड़ी बढ़त हासिल कर 82 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जबकि शिवसेना को 84 सीटें मिली थी।
इस बार भाजपा शिवसेना को घेरते हुए मराठी वोट को एकजुट करने का प्रयास कर सकती है। शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे के प्रति भाजपा अपनी रैलियों में खासा आदर दिखा रही है जिससे शिवसेना के लिए राह कठिन हो सकती है।

कांग्रेस का साथ शिवसेना के आने से यूपी में भाजपा के लिए अवसर

पिछले कुछ समय से शिवसेना पार्टी अपने कोर हिन्दू वोट बैंक के साथ-साथ मुस्लिमों को भी लुभाने के प्रयास करती दिखाई दी है।
हालांकि, शिवसेना का कहना है कि वो भाजपा को उसी की रणनीति से हराएगी। राष्ट्रवाद और हिन्दुत्व दोनों ही शिवसेना की विचारधारा का हिस्सा है जो भाजपा से भिन्न नहीं है। शिवसेना को भरोसा है कि वो भाजपा को बड़ा नुकसान पहुंचाएगी।
परंतु एक वास्तविकता ये भी है कि एनसीपी (NCP) और कांग्रेस (Congress) के साथ जाने से शिवसेना की हिन्दुत्व वाली छवि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।

हो सकता है भाजपा (BJP) इसे अवसर में बदलकर यूपी के चुनावों में हिन्दू वोट का ध्रुवीकरण करे। यदि ऐसा हुआ तो भाजपा एक बार फिर से यूपी के चुनावों के समीकरण अपने पक्ष में करने में सफल हो सकती है।

महाराष्ट्र (Maharashtra) के बाहर शिवसेना का रिकार्ड खराब

उत्तर प्रदेश और गोवा में शिवसेना कुछ खास कमाल शायद ही दिखा सके। शिव सेना का इतिहास देखें तो महाराष्ट्र के बाहर उसका रिकार्ड काफी खराब रहा है। ऐसा नहीं है कि शिवसेना आज ही महाराष्ट्र के बाहर अपने हाथ-पाँव मार रही है।

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क्या कहा शिवसेना ने ?

बता दें कि शिवसेना (Shiv Sena) के सांसद संजय राउत (Sanjay Raut) ने बुधवार को नई दिल्ली (Delhi) में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा से मुलाकात की। इसके बाद उन्होंने घोषणा करते हुए कहा, “हम उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) और गोवा (Goa) में एक साथ काम करने पर विचार कर रहे हैं।”

गोवा (Goa) और यूपी में भाजपा को कड़ी टक्कर देने के लिए शिवसेना कांग्रेस के साथ हाथ मिला रही है। यहाँ शिवसेना का उद्देश्य भाजपा को हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद के मुद्दे पर घेरना है। अब शिवसेना का ये कदम उसे यूपी में कितना फायदा पहुंचता है ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा ।
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