चुनाव लड़ने से रोकने और सदस्या रद्द करने की मांग
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ दायर याचिका में मांग की गई है कि किसी सांसद या विधायक के खिलाफ निचली अदालत में आपराधिक मामलों में आरोप तय होने, 5 साल या इससे ज्यादा की सजा होने के साथ उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया जाना चाहिए। यानि उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगनी चाहिए। इतना ही नहीं यदि किसी नेता के खिलाफ आपराधिक आरोप हैं तो उसकी उम्मीदवारी पर ही रोक लगा दी जानी चाहिए।
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केंद्र ने कहा- कोर्ट ने दे सरकार के काम में दखल
इससे पहले सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से एटर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने दलील दी। उन्होंने कहा कि राजनीतिक प्रणाली को दुरुस्त करने का सुप्रीम कोर्ट का इरादा तो नेक है, लेकिन यह भी सच है कि विधायिका के काम में न्यायपालिका हस्तक्षेप नहीं कर सकती। उन्होंने कहा कि इरादा तो प्रशंसनीय है, लेकिन सवाल उठता है कि क्या न्यायालय ऐसा कर सकता है ? उत्तर है- कदापि नहीं।
पीठ बोली- वोटर को प्रत्याशी को जानने का हक
केंद्र सरकार की इस दलील पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा कि उसका इरादा विधायिका के कार्यक्षेत्र में हस्तक्षेप करने का बिल्कुल नहीं है, लेकिन इसके साथ ही मतदाताओं को उम्मीदवारों की आपराधिक पृष्ठभूमि जानने का अधिकार है। कोर्ट ने एटर्नी जनरल से यह जानना चाहा कि क्या न्यायालय चुनाव आयोग से यह शर्त रखने के लिए कह सकता है कि राजनीतिक दल अपने उम्मीदवारों की आपराधिक पृष्ठभूमि की जानकारी सार्वजनिक करेंगे, ताकि आम आदमी यह जान सके कि उसका उम्मीदवार आपराधिक पृष्ठभूमि वाला है या नहीं।
पांच जजों की पीठ ने सुरक्षित रखा फैसला
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने निर्वाचन आयोग और केंद्र सरकार की पूरी दलीलें सुनने के बाद फैसला मंगवार को सुरक्षित रख लिया। संविधान पीठ में जस्टिस रोहिंटन एफ नरीमन, जस्टिस ए एम खानविलकर, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा भी शामिल हैं। संविधान पीठ पब्लिक इंटेरेस्ट फाउंडेशन सहित कई संगठनों और याचिकाकर्ताओं की याचिकाओं पर संयुक्त सुनवाई कर रही है।