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दिल्ली का ‘बिग बॉस’ कौन? आज सुप्रीम कोर्ट बताएगा सीएम या एलजी की ताकत

अगस्त 2016 को दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा था कि दिल्ली में उप-राज्यपाल की मंजूरी से ही प्रशासनिक फैसले लिए जा सकते हैं।

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दिल्ली का 'बिग बॉस' कौन? आज सुप्रीम कोर्ट बताएगा सीएम या एलजी की ताकत

नई दिल्ली। दिल्ली में केजरीवाल सरकार और उप-राज्यपाल की अरसे से चल रही जंग बुधवार को खत्म हो जाएगी। बुधवार को सुप्रीम कोर्ट यह ऐलान कर देगा की दिल्ली का सुप्रीम कमांडर या बिग बॉस कौन बनेगा? इस संबंध में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली पीठ पहले ही फैसला सुरक्षित कर चुकी है। इससे पहले 4 अगस्त 2016 को दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा था कि दिल्ली में उप-राज्यपाल की मंजूरी से ही प्रशासनिक फैसले लिए जा सकते हैं। केजरीवाल के सत्ता में आने के बाद नजीब जंग और अनिल बैजल (मौजूदा) उपराज्यपाल रहे हैं लेकिन दोनों से ही सरकार की तनातनी बनी रही।

...इसलिए पड़ी सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप की जरूरत

गौरतलब है कि दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं है। दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश है जहां चुनी हुई सरकार शासन चलाती है। जिसके चलते यहां केंद्र सरकार के प्रतिनिधि (उप-राज्यपाल) और राज्य सरकार के बीच अधिकारों और दायित्वों को लेकर तनातनी की स्थिति बनी रहती है। मौजूदा सरकार के कार्यकाल में ऐसी स्थितियां बहुत ज्यादा देखने को मिली है, जिसके चलते राज्य का विकास प्रभावित होता है। दिल्ली के अलावा पुडुचेरी में भी प्रशासनिक स्थिति ऐसी ही है लेकिन सियासत के केंद्र में ना होने के चलते वहां राजधानी जैसा हाल नहीं है।

6 दिसंबर 2017 को हो चुका है फैसला

अधिकारों की इस लड़ाई पर बुधवार को जो अंतिम फैसला सुनाया जाना है उसे पांच जजों की संवैधानिक पीठ पहले ही तय कर चुकी है। इस पीठ में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एके सिकरी, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण शामिल थे। इस संबंध में 6 दिसंबर 2017 को ही फैसला सुरक्षित रख लिया गया था।

क्या है संवैधानिक प्रावधान?

दिल्ली सरकार ने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 239-AA के तहत दिल्ली में विधानसभा का प्रावधान किया है और यहां निर्वाचित प्रतिनिधियों के जरिए एक सरकार का गठन होता है। इसलिए जनता के प्रतिनिधि होने के नाते सरकार को फैसले लेने की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। इसके जवाब में केंद्र सरकार ने कहा था कि दिल्ली सरकार जिस अनुच्छेद 239-AA का हवाला दे रही है उसमें भी उप-राज्यपाल का दर्जा राज्य सरकार से ऊपर माना गया है। केंद्र सरकार के मुताबिक इस अनुच्छेद में कहा गया है कि यदि मंत्रिमंडल और उपराज्यपाल में किसी विषय पर मतभेद हो तो उसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा और जब तक राष्ट्रपति का फैसला नहीं आ जाता तब तक उप- राज्यपाल का ही फैसला माना जाएगा।