बीजेपी लोकसभा चुनाव से मिली जीत के बाद से ही प्रदेश में सत्ता पर काबिज होने के सपने देख रही है, तो वहीं टीएमसी को भरोसा है कि वो दोबार जनता के बीच भरोसा कायम करते हुए सत्ता हासिल कर लेगी।
हालांकि इन दोनों को जीत के लिए एक दूसरे के वोट बैंक में सेंध लगाने की जरूरत है। कोरोना काल में 497 दिन बाद विदेश यात्रा करेंगे पीएम मोदी, जानिए किस के दौरे पर जाएंगे
बीजेपी की बात करें तो मुस्लिम वोटों के लिए बीजेपी ओवैसी से ज्यादा उम्मीद अब्बास सिद्दीकी है। आइए जानते हैं कैसे अब्बास बीजेपी के लिए ज्यादा फायदेमंद साबित हो सकते हैं। बीजेपी बंगाल फतह करने के लिए अपने शीर्ष नेतृत्व को तो प्रचार की कमान दे ही चुकी है साथ ही उसे उम्मीद है कि मुस्लिम वोट बैंक के लिए उन्हें एआईएमआईएम के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी की बजाय फुरफुरा शरीफ के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी से उम्मीदें हैं।
आप सोच रहे होंगे सिद्दीकी को कांग्रेस और लेफ्ट के गठबंधन के साथ चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं ऐसे में भला बीजेपी के लिए वे कैसे फायदेमंद साबित हो सकते हैं। ऐसे मिलेगा फायदा
यही सबसे बड़ा कारण है कि बीजेपी को इस बात की आस लगाए बैठी है कि अगर सिद्दीकी की पार्टी बेहतर प्रदर्शन करती है तो उसके वोट ममता के वोट बैंक में सेंध लगाकर हासिल होंगे, लिहाजा इसका सीधा फायदा बीजेपी को मिलेगा।
यही सबसे बड़ा कारण है कि बीजेपी को इस बात की आस लगाए बैठी है कि अगर सिद्दीकी की पार्टी बेहतर प्रदर्शन करती है तो उसके वोट ममता के वोट बैंक में सेंध लगाकर हासिल होंगे, लिहाजा इसका सीधा फायदा बीजेपी को मिलेगा।
फुरफुरा शरीफ का राज्य के मुसलमानों पर अच्छे प्रभाव के कारण पार्टी को अल्पसंख्यक मतों में विभाजन की उम्मीद है। सिद्दीकी की पार्टी इंडियन सेक्युलर फ्रंट ( ISF ) ने इस बार कांग्रेस और वाम दलों के साथ गठबंधन किया है।
इन क्षेत्रों में मुसलमान वोट बैंक
दरअसल राज्य में मुसलमान मतदाता करीब सौ सीटों पर निर्णायक भूमिका में हैं। इस वर्ग का मालदा, उत्तर दिनाजपुर, दक्षिण और उत्तर परगना के साथ-साथ मुर्शिदाबाद में व्यापक प्रभाव है। राज्य में करीब 28 फीसदी मतदाता इसी वर्ग से हैं।
दरअसल राज्य में मुसलमान मतदाता करीब सौ सीटों पर निर्णायक भूमिका में हैं। इस वर्ग का मालदा, उत्तर दिनाजपुर, दक्षिण और उत्तर परगना के साथ-साथ मुर्शिदाबाद में व्यापक प्रभाव है। राज्य में करीब 28 फीसदी मतदाता इसी वर्ग से हैं।
बीजेपी ये जानती है कि अगर यह वोट बैंक मजबूती के साथ टीएमसी के साथ खड़ा रहा तो सत्ता हासिल करने का उसका सपना अधूरा रह सकता है, लेकिन आइएसएफ इस वोट बैंक में सेंध लगाने में कामयाब रहा तो निश्चित रूप से इसका सीधा फायदा बीजेपी को हो जाएगा।
आपको बता दें कि मुस्लिम वोट के कारण ही लोकसभा-विधानसभा के बीते दो चुनावों में टीएमसी का वोट शेयर 43-45 फीसदी के बीच रहा। इसलिए ओवैसी से ज्यादा अब्बास से आस
बिहार चुनाव के बाद से ओवैसी को लेकर राज्य के मुसलमान सतर्क हैं। राज्य में थोड़े अंतर से राजग सरकार का रास्ता न रोक पाने की टीस राज्य के अल्पसंख्यक वर्ग में है। मुसलमानों का एक बड़ा हिस्सा राज्य में सत्ता परिवर्तन न होने के लिए ओवैसी को जिम्मेदार मानता है।
बिहार चुनाव के बाद से ओवैसी को लेकर राज्य के मुसलमान सतर्क हैं। राज्य में थोड़े अंतर से राजग सरकार का रास्ता न रोक पाने की टीस राज्य के अल्पसंख्यक वर्ग में है। मुसलमानों का एक बड़ा हिस्सा राज्य में सत्ता परिवर्तन न होने के लिए ओवैसी को जिम्मेदार मानता है।
हालांकि सिद्दीकी और उनकी पार्टी की स्थिति दूसरी है। सिद्दीकी स्थानीय और बंगाली मुसलमान हैं। उनकी पार्टी कांग्रेस-वाम दल के साथ चुनाव मैदान में है। लिहाजा मुसलमान इनको वोट देने में कम संकोच करेंगे।
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बीते लोकसभा चुनाव में बीजेपी को करीब 40 फीसदी तो टीएमसी को 43 फीसदी मत मिले थे। बीजेपी को वोट शेयर बढ़ने की उम्मीद नहीं है।
बीते लोकसभा चुनाव में बीजेपी को करीब 40 फीसदी तो टीएमसी को 43 फीसदी मत मिले थे। बीजेपी को वोट शेयर बढ़ने की उम्मीद नहीं है।
ऐसे में उसकी रणनीति अपना वोट बैंक बरकरार रखने के साथ टीएमसी के वोट बैंक में सेंध लगाने की है। ऐसा तभी होगा, जब राज्य में अल्पसंख्यक वोट बैंक में बिखराव होगा। इसके साथ ही बीजेपी मुस्लिम उम्मीदवारों को भी टिकट दे सकती है।