
SC के फैसले के बाद ट्रांसफर-पोस्टिंग मुद्दे पर कहां फंस गए केजरीवाल?
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद भी दिल्ली के एलजी और सीएम के बीच शक्ति संघर्ष जारी है। इस फैसले के बाद सीएम के पहले फैसले पर ही वरिष्ठ अधिकारियों ने कानूनी प्रावधानों का हवाला देते हुए ट्रांसफर-पोस्टिंग के आदेश पर अमल करने से इनकार कर दिया। इसके पीछे वरिष्ठ अधिकारियों ने सरकार को टीबीआर का हवाला दिया। इस मुद्दे पर एलजी-सीएम के बीच मीटिंग के बाद भी नतीजा नहीं निकला। ऐसे में सवाल यह उठता है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी वो कौन सा बिंदु है जिसकी वजह से ये समस्याएं सुलझने के बजाए और ज्यादा उलझ गया है।
क्या है टीबीआर?
सुप्रीम कोर्ट के फैसलों में भारत के राष्ट्रपति द्वारा जारी किए गए ट्रांजैक्शन ऑफ बिजनेस रूल्स (टीबीआर) या सरकार के कामकाज संबंधी नियमावली 1993 का हवाला दिया गया है। इस नियमावली के अनुसार शीर्ष अदालत ने टीबीआर 1993 के नियम 46 पर ध्यान दिलाया जिसके तहत लेफ्टिनेंट गवर्नर (एलजी) को अधिकारियों की सेवा शर्तों को नियंत्रित करने की शक्तियां और अधिकार दिए गए हैं। 1993 के नियम में खासतौर पर मुख्य सचिव, गृह सचिव और भूमि सचिव की स्थिति का उल्लेख किया गया है। 1998 और 2015 के टीबीआर में भी अधिकारियों की पोस्टिंग के लिए एलजी की मंजूरी को लेना आवश्यक बताया गया है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में इसका जिक्र तक नहीं किया है। न ही किसी भी निर्णय पर सवाल उठाया गया है।
दिल्ली सरकार के केंद्र पर बढ़ी निर्भरता
यही वजह है कि सारा दारोमदार अब केंद्र सरकार पर आकर टिक गया है। केंद्र सरकार चाहे तो मुख्यमंत्री को कार्यों को कुशलतापूर्वक करने में सहायता देने के लिए उन्हें पोस्टिंग और ट्रांसफ़र में परामर्श का अधिकार दे दे या न दे। पिछले 42 महीनों के दौरान दिल्ली सरकार का मनमाना रवैया और व्यक्तिगत छींटाकशी का व्यवहार अधिकारियों को सुरक्षा देने की आवश्यकता की ओर इशारा करता है। स्पष्ट रूप से टीबीआर का पालन करने की जिम्मेदारी मुख्य सचिव, वित्त सचिव, कानून सचिव और विभागीय सचिवों के कंधों पर रखी गई है। फिर अच्छे प्रशासन की असली परीक्षा है कि वो नियमों और प्रक्रिया का पालन करे।
Published on:
09 Jul 2018 01:48 pm
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