23 दिसंबर 2025,

मंगलवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

प्रतापगढ़

पौथी एवं कलश यात्रा के साथ गौरी सोमनाथ मंदिर में भागवत कथा शुरू

151 कलश महिलाओं ने धारण कर रखे थे

Google source verification

प्रतापगढ़. कृषि उपज शहर में निकाली शोभायात्रा मंडी के पीछे श्री गौरी सोमनाथ महादेव मंदिर परिसर में भागवत कथा का आयोजन मंगलवार से शुरू हुआ। इस मौके पर पौथी यात्रा और कलशयात्रा निकाली गई। कथा आयोजन ११ बजे से 4 बजे तक रहेगा। कथा का वाचन रामपाल शास्त्री रिटायर्ड आईएएस अधिकारी के मुखारङ्क्षवद से कथा का वाचन किया जा रहा है। कथा से पहले गोपालगंज स्थित गणपति मंदिर से कलश यात्रा एवं पौथी यात्रा निकाली गई। जिसमें 151 कलश महिलाओं ने धारण कर रखे थे। कलश यात्रा मय बैंड बाजों, ढोल-नगाड़ों के साथ निकाली गई। कलश यात्रा का पुष्प वर्षा कर जगह-जगह स्वागत किया गया। कलश यात्रा गणपति मंदिर से चलकर देवगढ़ दरवाजा, शनि महाराज मंदिर, कृषि उपज मंडी के पीछे होते हुए कथा स्थल श्री गौरी सोमनाथ महादेव मंदिर पहुंची। जहां पहुंचने पर रामपाल शास्त्री द्वारा भागवत कथा का वाचन किया गया।
रामद्वारा में चातुर्मास का आयोजन
प्रतापगढ़. अंतरराष्ट्रीय रामस्नेही संप्रदाय के रामद्वारा में आयोजित चातुर्मास में कई प्रसंग सुनाए गए। यहां मचलाना घाटी गोशाला के संस्थापक संत रामजी राम ने धर्म सभा में कहा कि भगवत शरणागति और सांसारिक ङ्क्षचताओं में अभय मार्ग पर नहीं चला जा सकता। सांसारिक आसक्ति ममता के कारण बनती हैं। मोह उसकी भूमिका है। जबकि ईश्वर, अर्पण, शरणागति, पूर्ण विश्वास श्रद्धा आधारित, ईश्वर प्रेम जब मनुष्य में आंतरिक आस्था में परिवर्तित होता है, तब वह सांसारिक तमाम बाधाओं से ऊपर उठकर सिर्फ भक्ति को प्रधान तत्व समझता है। भक्ति के उपक्रम के आगे तमाम महत्वपूर्ण पद, पैसा और अन्य सांसारिक वस्तुओं को कुछ नहीं समझता है। संसार सिर्फ सपनों की भांति लौकिक जीवन का निद्रा कालीन व्यवहार माना जाता है। इसीलिए संतों का दर्जा सांसारिक मनुष्य के तुलना में बहुत ही श्रेष्ठ और उत्तम सोच वाला माना जाता है। संसार का मनुष्य जिस प्रकार क्रोध के वश में लोभ के वश में सांसारिक कार्य, उच्च अधिकारों के वश में अपने प्राण गंवाने की जल्दी में रहता है। अपने तुच्छ सोच को सर्वोच्च अहंकार का आधार मानता है। वृद्धावस्था में सारा जीवन का पुरुषार्थ व्यर्थ और पछतावे वाला साबित होता है। वही भक्त इसके विपरीत निङ्क्षश्चत बुद्धि रहते हुए भक्ति का आनंद लाभ इस जीवन में लेकर के अगले जीवन के लिए तमाम बंधनों से मुक्त आनंद का जीवन आविष्कार कर लेता है। आंतरिक सद्गुणों का मार्ग आत्मा के उच्चता का मार्ग है। बाहरी लोभ प्रतिष्ठा और लाभ के अवसर मनुष्य बड़ी प्रतियोगिता के साथ हासिल करने में लगा रहता है। जैसे ही शरीर की शक्ति घटती है, खटिया पकड़ता है और पछतावे के साथ जीवन को कष्ट से गुजरता है। संपूर्ण जीवन के कष्ट सारे के सारे यही जब खटिया पर भोगता है तो कर्म के फल उसे नादानी कृतित्व में दिखाई देते हैं। ज्ञान, लाभ का अवसर छोडऩे का पछतावा मन में रहता है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को बुद्धिजीवियों को और इतिहास पुरुषों को भक्ति का दायित्व अनंत काल तक लाभ वाला दिखाई दिया है। और सांसारिक लाभ एक उचित कालका माना गया है। निरंतर मनुष्य को विचार करके सत्संग और शरणागति प्रभु की अंगीकार करके आत्मशांति और सम्मान का जीवन अपनाना चाहिए।