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प्रतापगढ़

बिगड़ता पर्यावरण: पशु-पक्षियों पर मंडराता खतरा

विलुप्ति के कगार पर कई पक्षी

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स्थिति: कांठल में गत वर्षों से कई पक्षियों की संख्या में आने लगी कमी
प्रतापगढ़. गत कुछ वर्षों से पर्यावरण के साथ हो रही छेड़छाड़ के कारण बिगडऩे लगा है। इसका असर भी काफी देखने को मिल रहा है। इसके साथ ही प्रमुख रूप से कई पशु-पक्षियों के अस्तित्व पर भी खतरा मंडराने लगा है। इसमें कई पक्षी तो अब गायब होने लगे है। पर्यावरण असंतुलित होने का असर कांठल में भी दिखाई देने लगा है। जिसमें यहां से भी कई पक्षी विलुप्ति के कगार पर है। ऐेसे में पर्यावरण संरक्षण और इसका संतुलन बनाए रखना आज चुनौती बना हुआ है।
गौरतलब है कि गत वर्षों से भौतिकवाद के कारण पर्यावरण के साथ खिलवाड़ होने लगा है। जिससे कई परिवर्तन देखे जा सकते है। इनमें मूक पशु-पक्षियों की तरफ हमारा ध्यान नहीं जाता है। लेकिन पशु-पक्षियों का पर्यावरण संतुलन में अपना अलग ही महत्व होता है। गत वर्षों से कांठल में कई प्रजातियों के पक्षियों की संख्या में काफी कमी होती जा रही है। इनमें से प्रमुख पक्षी आम लोगों के जेहन में है। पक्षियों की कमी होने में प्रमुख कारण खेतों में काफी अधिक मात्रा में रसायनों, कीटनाशकों का प्रयोग करना भी है। जिससे पक्षियों के जीवन चक्र पर विपरित प्रभाव देखा जा सकता है। इसके साथ ही घास के मैदान कम होना, पक्षियों के पर्यावास में मानवीय दखल-अंदाजी भी प्रमुख है।
कई प्रकार के गिद्धों में कमी
गिद्धों की 17 प्रजातियों पाई जाती है। इनकी संख्या में कमी होती जा रही है। जिसें लाल सिर का गिद्ध, सफेद पूंछ का गिद्ध, भारतीय गिद्ध आदि भी क्षेत्र में अब नहीं दिखते। पहले जाखम बांध सरिपिपली तरफ की पहाडिय़ों पर इनका पर्यावास था। इनके क्षेत्र से लुप्त होने का मुख्य कारण जंगलों में स्तनधारी जानवरों की संख्या में अत्यधिक कमी है। गिद्ध मृत जानवरों का भक्षण करता है, वहीं दुधारू पशुओं के मरने पर उन्हे जंगलों या आबादी से दूर डाल दिया जाता है। शोध में सामने आया कि मवेशियों में डाइक्लोफेनिक नामक दवाई का इंजेशक्शन से गिद्धों की संख्या में कमी हो रही है। स्टॉर्क
काली गर्दन वाला स्टॉक भी संकट ग्रस्त प्रजाति है। यह ऐसा पक्षी है जिसके अन्य गुण व्यवहार अन्य स्टॉर्क प्रजातियों जैसे ही है। लेकिन एक बात काली गर्दन वाले स्टॉर्क को अलग बनाती है की यह उन स्वस्थ वेटलैंड पर ही पाया जाता है। जहां अन्य जलीय पक्षियों की विविधता और संख्या अधिक हो। उनी गर्दन वाले स्टॉर्क की तुलना में इनका संख्या अत्यधिक कम हो गई है। इस वर्ष कुछ जोड़े ही नजऱ आए हैं। ऊनी गर्दन वाला स्टॉर्क प्रजाति भी खतरे में है। ऊनी गर्दन वाला यह सारस जंगलों के जलाशयों दलदलों, ताजे पानी के जलाशयों खेतों के किनारे रहता है। जाखम नदी के किनारों और वेटलैंडस पर वापिस दिखाई देने लगा है। सारस
गिद्धों की तरह लुप्त और दुर्लभ होते भारतीय सारस उडऩे वाले दुनिया के सबसे बड़े और ऊंचे पक्षी है। स्थानीय भाषा में इन्हें हरेडा कहा जाता है। जिले में पहले लगभग आद्रभूमि वाले हर गांव या तालाबों के पास 4-5 जोड़े व 25 से 30 सारसों का झुंड पाया जाता था। लेकिन अब कही इक्का-दुक्का जोड़े ही देखने को मिलते है। यह पड़ोसी राज्य उत्तरप्रदेश का राज्य पक्षी है। भारत में राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, पश्चिम बंगाल आदि राज्यो में पाया जाता है। विदेशों में ऑस्ट्रेलिया, पाकिस्तान, नेपाल, म्यामांर, कम्बोडिया, वियतनामए आदि पड़ोसी देशों में भी पाया जाता है। इन्टरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर जैसी संस्थाओं ने व्यवस्थित निरीक्षण कर सारस को 11 संकटग्रस्त पक्षी प्रजातियों की सूची में शामिल किया है। इस सुंदर पक्षी के निकट भविष्य में दुर्लभ या विलुप्ति की सम्भावनाएं नजर आती है।
आवास स्थलों में कमी से बने हालात
गत वर्षों से पर्यावरण के साथ काफी छेड़छाड़ होने से पक्षियों की संख्या में गिरावट हो गई है। पक्षियों के आवास स्थलों के साथ काफी अधिक नुकसान हुआ है। कम होते वेटलैंड्स, बढ़ते खेत और उल्टा खेतों में बढ़ते आधुनिकीकरण, अधिक पैदावार की चाह, कीटनाशकों का उपयोग, शिकार बिजली के तार से करंट लगना आदि है। की अनियंत्रित खेती से इकोसिस्टम बर्बाद हो रहा है। मंगल मेहता, पर्यावरणविद्, प्रतापगढ़.
संरक्षण के लिए करना होगा सामूहिक प्रयास
पिछले वर्षों में मनुष्य ने अपने लालच के कारण काफी विपरित परिस्थितियां उत्पन्न हो गई है। खेतों में कीटनाशकों का अधिक इस्तेमाल होने से भी कई पक्षियों के लिए नुकसान हुआ है। सोयाबीन की अनियंत्रित खेती से इकोसिस्टम बर्बाद हो रहा है। इकोसिस्टम और पक्षियों को बचाया जाना चाहिए। सुनील कुमार, उपवन संरक्षक, प्रतापगढ़.