
अफीम की खेती में नवीन तकनीक का उपयोग, पत्रिका फोटो
Opium cultivation in Pratapgarh: प्रतापगढ़। काले सोने के नाम से ख्यात अफीम की फसल में भी किसान अब नवाचार अपनाने लगे है। जिसमें नवीन तकनीक से खेती की जा रही है। कई किसान इस वर्ष अफीम की फसल में मल्चिंग, ड्रिप और मिनी स्प्रिंकलर का प्रयोग कर रहे हैं। जिससे अन्य फसलों के साथ ही अफीम की फसल में भी तकनीकी का नजारे साफ तौर पर देखे जा सकते हैं।
नारकोटिक्स विभाग की ओर से अफीम पैदावार के लिए प्रतिवर्ष पात्र किसानों को लाइसेंस दिए जाते हैं। इस वर्ष भी जिले में 9641 किसानों को लाइसेंस दिए गए हैं। इन किसानों को कुल 851.600 हैक्टेयर में बुवाई की गई है। जो 273 गांवों में अफीम की फसल लहलहा रही है। वहीं जिले में वर्षों से अफीम किसान परम्परागत रूप से खेतों में फसल उत्पादन कर रहे हैं। जिससे कई प्रकार की बीमारियों से नुकसान उठाना पड़ता है। कई बार खेतों की क्यारियों में अधिक नमी या कम नमी के कारण अनेक प्रकार के रोगों का प्रकोप होता है। जिस कारण कुछ वर्षों से अफीम उत्पादन में कमी आने लगी है। ऐसे में अब अतिसंवेदनशील अफीम की फसल में भी नवीन तकनीक का उपयोग होने लगा है।
जिले में नारकोटिक्स विभाग की ओर से वर्ष 2025-26 में प्रतापगढ़ खंड में 182 गांवों के 5419 किसानों को कुल 465.9 हैक्टेयर में अफीम बुवाई के लाइसेंस दिए गए हैं। जिसमें सीपीएस के 1664 किसानों को 83.2 हैक्टेयर में बुवाई की है। जबकि चीरा लगाने के लिए 3827 किसानों को 382.7 हैक्टर में बुवाई की है।
छोटीसादड़ी खंड में कुल 4150 किसानों को 386.7 हैक्टेयर में लाइसेंस दिए है। जबकि सीपीएस के 626 किसानों को 31.3 हैक्टेयर में लाइसेंस दिए गए है। इस प्रकार जिले में कुल 8641 किसानों को 851.6 हैक्टेयर में लाइसेंस दिए है। जो 273 गांवों में अफीम की फसल बुवाई की गई है।
करजू, असावता, अरनिया क्षेत्र में कई गांवों के किसान तकनीक से खेती करने लगे हैं। अफीम किसान किशोरकुमार धाकड़ ने बताया कि मल्चिंग लगाने से सभी पौधे समान दूरी पर रहते हैं। जिससे उन्हें बराबर प्रकाश और बढ़वार के लिए पर्याप्त जगह मिलती है। शुरुआत से ही विकास अच्छा होता है। किसान घनश्याम सुथार ने बताया कि मल्चिंग खरपतवारों को उगने से रोककर फसल को साफ-सुथरा बनाए रखती है और मिट्टी के तापमान को नियंत्रित करते हुए पौधों की जड़ों को स्वस्थ बनाए रखने में मदद करती है। इससे रोग व कीटों का प्रकोप भी कम होता है। इसके साथ ही बदलते मौसम के प्रभाव को भी काफी हद तक सहन करने में सहायता मिलती है। असावता क्षेत्र के गांवों में अफीम की फसल लहलहाने लगी है।
उद्यान विभाग के उप निदेशक आरके वर्मा ने बताया कि फसलों में ड्रिप और मल्चिंग से काफी लाभ होता है। इस वर्ष अफीम की उन्नत तकनिकी से फामल उत्पादन की तरफ रूख बढ़ा है। किसानों द्वारा नई-नई तकनिकी से काफी सुधार की संभावना बनी हुई है। रोगों का प्रकोप कम होता है, खरपतवार नहीं होता है। कम सिंचाई से पानी की बचत होती है। बैड पर फसल लगाने से उत्पादन भी बढ़ता है।
Updated on:
23 Dec 2025 11:24 am
Published on:
23 Dec 2025 11:21 am
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