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खत्म हो रही हरियाली, देसी बबूल के पेड़ों पर चल रही कुल्हाड़ी

कांठल क्षेत्र में मुख्य रूप से पाया जाने वाला वृक्ष देसी बबूल धड़ल्ले से काटे जा रहे है। क्योंकि इस बबूल की लकड़ी मजबूत होती हैं और सड़ती नहीं है। जिसके चलते लकड़ी तस्कर सक्रिय हो गए हैं। खेतों के आस-पास और सडक़ के दोनों ओर मुख्य रूप से पाया जाने वाला बबूल धड़ल्ले से काटा जा रहा है।

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अरनोद. कांठल क्षेत्र में मुख्य रूप से पाया जाने वाला वृक्ष देसी बबूल धड़ल्ले से काटे जा रहे है। क्योंकि इस बबूल की लकड़ी मजबूत होती हैं और सड़ती नहीं है। जिसके चलते लकड़ी तस्कर सक्रिय हो गए हैं। खेतों के आस-पास और सडक़ के दोनों ओर मुख्य रूप से पाया जाने वाला बबूल धड़ल्ले से काटा जा रहा है। जिससे पर्यावरणविदें में चिंता है। वहीं पेड़ काटे जाने से हरियाली भी कम होती जा रही है।

ग्रामीणों ने बताया कि लकड़ी माफिया ओने-पोने दाम में विशाल पेड़ किसानों से खरीद लेते हैं। कुछ पैसे के लालच में किसान भी गुमराह हो कर देसी बबूल बेच देते हैं। जिसे लकड़ी तस्कर लाखों रुपए कमाते है। इस क्षेत्र से रोजाना लकड़ी की गाडिय़ां भरी जा रही है। पुलिस-प्रशासन का ध्यान नहीं है। लेकिन इन लकड़ी तस्करों के कारण पर्यावरण को जो नुकसान हो रहा है उसकी भरपाई कभी नहीं हो सकती है।

एक समय इस क्षेत्र को चेरापूंजी कहा जाता था। लेकिन लगातार वृक्षों के कटने के कारण से वर्षा का आंकड़ा कम होता जा रहा है। स्टेट हाइवे और दूसरी सडक़ों के आस-पास हरे वृक्षों की सुरक्षा और नए वृक्ष लगाने की जिम्मेदारी सार्वजनिक निर्माण विभाग की रहती है। लेकिन इनके सीमा क्षेत्र में भी हरे वृक्ष लकड़ी तस्करों द्वारा काटे जा रहे हैं। यह कार्रवाई करना तो दूर, मूकदर्शक बने हुए हैं। पर्यावरण प्रेमियों ने सरकार और विधायक रामलाल मीणा से देसी बबूल की कटाई पर रोक लगाने की मांग की है। इसके साथ ही सडक़ के किनारे वृक्ष काटने और कटवाने वालों के खिलाफ सार्वजनिक निर्माण विभाग के अधिकारियों से पुलिस में प्रकरण दर्ज करवाने की मांग की है।

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कटर और क्रेन से कुछ ही घंटों में भर देते ट्रक
लकड़ी माफिया काफी सक्रिय है। ग्रामीणों ने बताया कि इसके लिए हर गांव में इनके आदमी लगा रखे है। जो पेड़ों की खरीदारी करते है। सौदा तय होने के बाद लकड़ी कटाई के कटर से पूरा पेड़ काट दिया जाता है। इसके बाद टहनियों को कटाई की जाती है। इसे साइज के आधार पर क्रेन मशीन से ट्रक में लदान कर दिया जाता है। जो बाहर भेज देते है।

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किसी भी पेड़ कटाई की स्वीकृति आवश्यक
सभी प्रकार के पेड़ पर्यावरण के लिए आवश्यक है। वहीं बबूल के ेपड़ कटाई की भी संबंधित किसान को तहसील से स्वीकृति आवश्यक है। वहीं जिले में इन दिनों माफिया सक्रिय है। जो हरे बबूल के पेड़ काट रहे है। इसकी आड़ में कई बार अन्य पेड़ों की भी कटाई कर दी जाती है। गत वर्ष भी यहां शहर में कई इलाकों से पेड़ों की कटाई की गई है। जबकि चरनेाट और बिलानाम की जमीन से भी काफी पेड़ काटे जा रहे है। ऐसे में सरकार को चाहिए कि इन पर कार्रवाई करें।
लक्ष्मणसिंह चिकलाड़, पर्यावरणविद्, प्रतापगढ़