
Pratapgarh News: अमुमन सभी जीवों की अपनी अलग ही दुनिया होती है। ऐसे में चींटियों की दुनिया भी काफी विचित्र होती है। चींटी काफी छोटी होती है। लेकिन इनका पर्यावरण में योगदान कम नहीं है। चींटियों की एक प्रजाति इंडियन हार्वेस्टर आंट होती है जो पानी के स्रोतों के आसपास अपने बिल बनाती है। इसके बिल में नसों की तरह हवादार नालियां, सुराख एवं चैंबर बनाती है जिससे मिट्टी में हवा, पानी एवं बीज प्रकीर्णन वेस्ट रिसाइकिलिंग कर मिट्टी को पुन: जैविक खाद प्रदान करती है। इस कारण यह किसानों की मित्र होती है।
चींटियों की सामाजिक व्यवस्था काफी व्यवस्थित और अनुशासित होती है। इनमें इनकी रासायनिक संचार संप्रेषण बड़ा जटिल और सटीक होता है। अक्सर यह अपने एंटीना से टेपिंग कर रासायनिक संचार संप्रेषण करती हैं। मजदूर चीटियों आदि से संप्रेषण के लिए अलग-अलग कार्यों के लिए रसायन का रिसाव कर अलग-अलग कार्य के लिए संप्रेषण करती है। जैसे खतरे का संकेत, भोजन एकत्रित करने के लिए संकेत, बिलों में मृत चींटियों को हटाना, साफ करने के लिए रासायनिक संकेत से एकत्रित करना आदि होते है।
चीटियों की लगभग 12 हजार प्रजातियां अब तक दुनिया भर में ज्ञात है। वहीं इस प्रजाति की खासियत है कि अपने बिलों के मुहाने को बाढ़ या बरसात के पानी को रोकने के लिए खास एक केंद्रीय मिट्टी की दीवार की श्रंखलाओं की संरचना बनाती है। जो पानी को बिलों में जाने से रोकती। यह चींटी नदी-नालों वाले घने जंगलों, घाटी आदि स्थानों पर रहती है। लेकिन पूरी तरह की जानकारी के लिए रिसर्च जरूरी है।
मंगल मेहता, पर्यावरणविद् चिंटियां कई बीजों को एकत्रित करती हैं, ताकि उस बीज के सिरों पर लगे प्रोटीन को खा सकें और अपने साथियों को यह कॉलोनी को भोजन प्राप्त हो सके। क्योंकि यह चींटी बीजों के सिरों पर लगे प्लूमूल को हटा देती हैं। ताकि बिल में बीज अंकुरित ना हो सके। फिर भी कई बीज इनके स्टोर रूम में एकत्रित करने के दौरान रह जाते है।
कई बीजों के सिर पर इलायोसोम लगे होते हैं। जो प्रोटीन और लिपिड से भरे होते हैं। जिससे चींटियां आकर्षित होती हैं। अपने बिलों में स्थित को लार्वा खिलाने के काम आते हैं। जो इलायोसोम खाने के बाद बचता है, उसे यह चीटियां वेस्ट गोदाम चेंबर में रख देती है। जो बाद में अंकुरित हो जाते हैं। इस तरह यह बीज को एकत्रित करने के कारण यह हार्वेस्टर चींटी कहलाती है।
Published on:
12 Nov 2024 03:42 pm
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