प्रयागराज, लखनऊ सहित कई जिलों में दर्ज थे अच्युतानंद के खिलाफ डेढ़ दर्जन से ज्यादा मामले, कई सफेदपोश नेताओं का था हाथ
प्रयागराज।इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के हॉस्टल में हुई इनामी छात्रनेता अच्युतानंद शुक्ला उर्फ सुमित शुक्ला की हत्या की पहेली नहीं सुलझ रही है। अपने चाहने वालों में गणेश, गजानंद, अच्युतानंद जैसे नारे से चर्चित सुमित को जानने वाले बताते हैं कि वह इतना दबंग था कि कोई दुश्मन उस पर सीधे वार करने की हिम्मत नहीं कर सकता था। सुमित को कई सफेदपोश नेताओं का भी वरदहस्त था। इसके चलते पुलिस उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं कर पाती थी। इस बीच, सुमित ने ब्राहमण नेता के रूप में पहचान बना रहा था। उसके करीबी और विरोधी दोनों उसे भविष्य का श्रीप्रकाश शुक्ला कहने लगे थे। ऐसे में उसके साथ साये की तरह रहने वाले आशुतोष हाथों उसकी हत्या की बात पुलिस को भी समझ नहीं आ रही है।
जानकारी के मुताबिक सुमित पर डेढ़ दर्जन के करीब मामले दर्ज थे। उस पर प्रयागराज के कर्नलगंज थाने और राजधानी लखनऊ सहित कुछ अन्य जिलों में भी केस दर्ज थे। उस पर पहला मुकदमा 2011 में प्रयागराज के कर्नलगंज थाने में दर्ज हुआ था। इसके बाद उसके कदम छात्र राजनीति से जरायम की दुनिया की ओर बढ़ते गए। इसके बाद सुमित ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
लखनऊ में दोहरे हत्याकांड में आया था नाम
जैसे—जैसे सुमित के पैर जरायम पेशे में जम रहे थे उसके फॉलोअर्स की संख्या बढ़ती जा रही थी। बालू खनन से लेकर आसपास के ठेके लेने में सुमित का नाम चलने लगा। दबंगई और पहुंच ऐसी कि सुमित को कभी पुलिस पकड़ नहीं पाई। दो महीने पहले ही उसके खिलाफ 25 हजार का इनाम घोषित किया गया लेकिन पुलिस को चकमा देकर वह छात्रावास में रहता रहा। पहली बार जब सुमित का नाम पुलिस के रजिस्टर में दर्ज हुआ तो उसके अपराधों की लिस्ट बढ़ती ही गई। इलाहाबाद में एक दरोगा और सिपाही पर फायरिंग करने के मामले में उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई थी। इसके बाद लखनऊ में आशीष मिश्रा दोहरे हत्याकांड में सुमित शुक्ला का नाम सामने आया।
2007 से लगातार पीसीबी हॉस्टल के कमरे पर कब्जा
शिक्षक पिता का बड़ा बेटा सुमित प्रयागराज आया था पढ़ाई करने। उसने 2007 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में बीए में दाखिला लिया और 2013 में ग्रेजुएशन कम्प्लीट किया। इस दौरान वह पीसीबी हॉस्टल में रहता रहा। 2013 तक उसने हॉस्टल की फीस जमा की लेकिन उसके बाद कमरा दूसरे के नाम से एलॉट होता और रहता सुमित ही था। कई बार हॉस्टल खाली कराए गए लेकिन किसी न किसी तरह सुमित का का कब्जा उन कमरों पर बना रहा। उसके साथी भी इन्हीं कमरों में रहते थे।
जेल से लड़ा छात्रसंघ चुनाव पर हार गया
2012 में छात्रसंघ की बहाली हुई तो सुमित भी चुनाव मैदान में उतरा। तब वह एक मामले में जेल में बंद था। सुमित ने जेल से ही उपाध्यक्ष पद के लिए नामंकन किया। तब आइसा की ओर से इस पद पर शालू यादव ने चुनाव जीता था। वहीं, सुमित चौथे पायदन पर रहा था। इसके बाद से सुमित की हनक बढ़ती गई। हर छात्रसंघ चुनाव में वह अपना उम्मीदवार उतारने लगा और चुनाव भी जीताने लगा। इसके चलते यूनिवर्सिटी के अंदर और बाहर भी उसका रुतबा बढ़ता गया।