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उत्तर प्रदेश में 7 लाख बच्चों को नहीं मिला ड्रेस और स्टेशनरी का पैसा, DBT अभी भी पेंडिंग

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज मंडल में छात्रों को यूनिफॉर्म और स्टेशनरी के लिए दी जाने वाली डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) योजना की प्रक्रिया बेहद धीमी चल रही है। मंडल के चार प्रमुख जिलों फतेहपुर, कौशांबी, प्रतापगढ़ और प्रयागराज में अब भी 60 हजार से अधिक छात्रों का डाटा लंबित है

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यूपी के कई जिलों में DBT अभी भी पेंडिंग

यूपी के कई जिलों में DBT अभी भी पेंडिंग

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज मंडल में छात्रों को यूनिफॉर्म और स्टेशनरी के लिए दी जाने वाली डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर  योजना की प्रक्रिया बेहद धीमी चल रही है। मंडल के चार प्रमुख जिलों फतेहपुर, कौशांबी, प्रतापगढ़ और प्रयागराज में 60 हजार से अधिक मामलों में डाटा अब तक लंबित है, जिससे हजारों छात्र सहायता राशि से वंचित हैं।

प्रतापगढ़ में 9215 छात्रों के मामले पेंडिंग

फतेहपुर जिले में सबसे ज्यादा 17,524 प्रकरण अब भी पेंडिंग हैं। इनमें 8272 मामले शिक्षकों के स्तर पर, 2147 बीईओ और 2808 बीएसए स्तर पर लंबित हैं। वहीं कौशांबी में 8511 छात्र-छात्राओं का डाटा लंबित है, जिसमें 3306 मामले शिक्षकों, 1330 बीईओ, और 239 बीएसए स्तर पर फंसे हुए हैं। प्रतापगढ़ में 9215 छात्रों के मामले पेंडिंग हैं, जिनमें बीईओ स्तर पर 981 और बीएसए स्तर पर 88 मामले शामिल हैं।

प्रयागराज जिले में स्थिति चिंताजनक 

प्रयागराज जिले में भी स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। बीएसए देवव्रत सिंह के अनुसार, जिले में 19,788 छात्र-छात्राओं का डाटा अब तक अपडेट नहीं हो सका है। इनमें 2682 बीईओ, 1167 बीएसए, और 7468 शिक्षक स्तर के मामले शामिल हैं। इसके अलावा, 667 विद्यार्थी डुप्लीकेट की श्रेणी में, जबकि 6869 छात्र-छात्राएं उम्र की दृष्टि से संदेहास्पद श्रेणी में दर्ज हैं। जिले में ऐसे 935 अभिभावक भी चिह्नित किए गए हैं जिनके तीन या अधिक बच्चे परिषदीय स्कूलों में पढ़ रहे हैं।

प्रदेशभर में ऐसे 59,346 अभिभावक पाए गए हैं जिनके तीन या अधिक बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं। दिलचस्प बात यह है कि भदोही और रामपुर ऐसे जिले हैं जहां एक भी ऐसा अभिभावक नहीं मिला। वहीं बलरामपुर में सिर्फ 1, देवरिया में 19, गोरखपुर में 29, कानपुर नगर में 64, और लखनऊ में 54 अभिभावक इस श्रेणी में शामिल हैं।

प्रशासन की ओर से लंबित प्रकरणों के निस्तारण की प्रक्रिया को तेज करने की बात कही जा रही है, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि हज़ारों छात्र अभी भी योजना से जुड़ नहीं पाए हैं। इससे न सिर्फ छात्रों की जरूरतें अधूरी रह गई हैं, बल्कि योजना की क्रियान्वयन प्रक्रिया पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।