
exercise in pregnancy
बीते दिनों हनुमानगढ़ जिले की रहने वाली एक आठ माह की गर्भवती महिला ने पुलिस भर्ती
परीक्षा के दौरान पांच किलोमीटर की दौड़ लगाई। आठवां महीना था इसलिए उसने पहले
डॉक्टर से इस बारे में सलाह ली और सहमति मिलने पर खुद को दौड़ के लिए तैयार कर
लिया। हैरान करने वाली यह घटना लोगों को फिटनेस के प्रति जागरूक बनने का संदेश भी
दे रही है क्योंकि आमतौर पर गर्भावस्था में आखिरी के तीन महीने काफी जोखिम भरे माने
जाते हैं और इस दौरान महिला को पूरी तरह से एहतियात बरतने के लिए कहा जाता
है।
स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. शालू कक्कड़ के अनुसार गर्भावस्था में ऎसी
गतिविधियों में हिस्सा लेना इस बात पर निर्भर करता है कि महिला की शारीरिक क्षमता
कितनी है और उसका फिजिकल बैकग्राउंड क्या रहा है। अगर महिला अपनी क्षमता के विरूद्ध
ऎसा करती है तो पैर फिसलने का डर, रक्तस्राव, गंभीर दर्द, वाटर बैग (गर्भाशय की
थैली) फटने, धड़कनें बढ़ने की वजह से हार्ट अटैक और गर्भपात होने का भी खतरा रहता
है।
प्रेग्नेंसी के तीन ट्रायमेस्टर (तिमाही)
प्रेग्नेंसी में शुरू के
तीन महीनों को पहला ट्रायमेस्टर, बीच के तीन माह को दूसरा व अंतिम तीन माह को तीसरा
ट्रायमेस्टर कहा जाता है। इस दौरान मां व बच्चे की सेहत के लिए डॉक्टर अलग-अलग
व्यायाम करने की सलाह देते हैं।
पहला ट्रायमेस्टर
शुरूआती तीन महीनों
में महिला के शरीर में हार्मोनल बदलाव के साथ-साथ बच्चे के अंग बनने शुरू हो जाते
हैं इसलिए जरूरी है कि महिला खानपान के अलावा व्यायाम से खुद को फिट
रखे।
व्यायाम : रोजमर्रा के कामों के साथ-साथ 20-30 मिनट की हल्की वॉक,
प्राणायाम और योगा करें। दिक्कत हो तो फौरन विशेषज्ञ की सलाह लें।
दूसरा
ट्रायमेस्टर
इस दौरान बच्चे के हाथ-पैर विकसित हो जाते हैं और नाखूनों का बनना
शुरू होता है। पांचवे महीने में मां को गर्भस्थ शिशु की हलचल महसूस होने लग जाती
है।
व्यायाम : जब महिला चेकअप के लिए डॉक्टर के पास जाती है तो वे एंटीनिटल
एक्सरसाइज जैसे बेंडिंग, योगा, आदि करवाते हैं। इस दौरान महिला की क्षमता का ध्यान
रखा जाता है। व्यायाम से कैलोरी बर्न कराई जाती है ताकि नॉर्मल डिलीवरी हो सके।
तीसरा ट्रायमेस्टर
इस दौरान बच्चा सही वजन और लंबाई प्राप्त कर लेता है
व नौवें माह में प्रसव की प्रक्रिया पूरी हो जाती है।
व्यायाम : गर्भवती को
इस समय 20 से 30 मिनट की वॉक जरूर करनी चाहिए। चक्कर या कोई अन्य परेशानी हो तो ऎसा
न करें। महिला को विशेषज्ञ की देखरेख में स्क्वैटिंग जैसे व्यायाम से लाभ होता है।
लेकिन ब्लड प्रेशर या जुड़वां बच्चों की स्थिति हो तो स्क्वैटिंग न करें।
एहतियात बरतें
ब्लड प्रेशर : ऎसे में सबसे पहले ब्लड प्रेशर नियंत्रित
किया जाता है वर्ना चक्कर आकर महिला बेहोश हो सकती है। इस दौरान डॉक्टर हल्के
व्यायाम और प्राणायाम आदि करने की सलाह देते हैं व भारी व्यायाम की सख्त मनाही होती
है।
जुड़वा बच्चे : इस दौरान महिला के ह्वदय पर अत्यधिक भार होता है जिससे
गर्भाशय की थैली फटने की आशंका बनी रहती है। ब्लड प्रेशर भी बढ़ सकता है और कई बार
समय से पूर्व ही प्रसव पीड़ा होने लगती है। ऎसे में महिला को बैंडिंग बैकवार्ड, बटर
फ्लाई, बॉल एक्सरसाइज व प्राणायाम डॉक्टर के निर्देशानुसार करने
चाहिए।
अस्थमा : इसमें गर्भस्थ शिशु को ऑक्सीजन नहीं मिल पाती। अटैक आने पर
महिला को सांस लेने में तकलीफ होती है जिससे गर्भपात भी हो सकता है। इसलिए रेगुलर
वॉक और डॉक्टर द्वारा बताए अनुसार ब्रीदिंग एक्सरसाइज करनी चाहिए।
डायबिटीज
: कई बार महिलाएं प्रेग्नेंसी की दवाएं तो लेती हैं लेकिन डायबिटीज की दवाओं में
लापरवाही बरतती हैं जिससे बच्चे का वजन बढ़ जाता है। अधिक मोटापे और सांस लेने में
अवरोध से कई बार बच्चे की मौत हो जाती है। इसलिए दवाओं के साथ-साथ रोजाना वॉक
करें।
Published on:
12 May 2015 10:27 am
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