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Opinion: मुकदमों का अम्बार थामने की सकारात्मक पहल

यह सवाल इसलिए भी है क्योंकि देशभर में आपराधिक मामलों की पेंडेंसी तेजी से बढ़ रही है। उत्तर प्रदेश को देखें तो अकेले उच्च न्यायालय में 2 लाख से अधिक आपराधिक अपीलें लंबित हैं, जबकि महाराष्ट्र और बिहार जैसे राज्यों में भी यह संख्या हजारों में है।

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देखा जाए तो यह कदम आपराधिक मामलों की बढ़ती पेंडेंसी को कम करने की दिशा में एक संभावित समाधान हो सकता है लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या यह प्रयास भारतीय न्याय प्रणाली के इस गहन संकट के समाधान का रास्ता निकालने में सक्षम होगा?

देखा जाए तो यह कदम आपराधिक मामलों की बढ़ती पेंडेंसी को कम करने की दिशा में एक संभावित समाधान हो सकता है लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या यह प्रयास भारतीय न्याय प्रणाली के इस गहन संकट के समाधान का रास्ता निकालने में सक्षम होगा?


भारत की न्याय प्रणाली विशेष तौर से आपराधिक मामलों को लेकर बरसों से लम्बित प्रकरणों के बोझ तले दबी हुई है। इसीलिए अन्याय से देर भली…जैसा आदर्श वाक्य सुनने में भले ही सुकून देने वाला हो, लेकिन फरियादियों के लिए उतना ही दर्दनाक है। शायद इसी बोझ को कम करने की मंशा से सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालयों में एडहॉक जजों की नियुक्ति के लिए तय शर्तों में ढील देने पर विचार करने का संकेत दिया है। देखा जाए तो यह कदम आपराधिक मामलों की बढ़ती पेंडेंसी को कम करने की दिशा में एक संभावित समाधान हो सकता है लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या यह प्रयास भारतीय न्याय प्रणाली के इस गहन संकट के समाधान का रास्ता निकालने में सक्षम होगा?


यह सवाल इसलिए भी है क्योंकि देशभर में आपराधिक मामलों की पेंडेंसी तेजी से बढ़ रही है। उत्तर प्रदेश को देखें तो अकेले उच्च न्यायालय में 2 लाख से अधिक आपराधिक अपीलें लंबित हैं, जबकि महाराष्ट्र और बिहार जैसे राज्यों में भी यह संख्या हजारों में है। देश के दूसरे प्रदेशों में भी कमोबेश हालात अच्छे नहीं हैं। यह स्थिति हमारी न्यायप्रणाली पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगाती है। उच्च न्यायालयों में रिक्तियां न्याय के इस पहिए के धीमे होने का एक प्रमुख कारण हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में फैसला दिया था कि एडहॉक जजों की नियुक्ति तभी की जा सकती है, जब रिक्तियां स्वीकृत संख्या का 20 प्रतिशत या अधिक हों।

अब शीर्ष अदालत इस शर्त में ढील देने पर विचार कर रही है ताकि आपराधिक अपीलों का निपटारा तेजी से किया जा सके। अदालतों में जजों की कमी न्याय प्रणाली के लिए वैसे ही है जैसे बारिश के बिना नदी। जब जजों की संख्या ही अपर्याप्त होगी तो न्याय की धारा भी बाधित होगी। सुप्रीम कोर्ट की विशेष पीठ ने सुझाव दिया है कि एडहॉक जजों की नियुक्ति के बाद नियमित एकल जज और एडहॉक जज वाली पीठ सुनवाई कर सकती है। इससे न्याय प्रक्रिया को गति मिलने की उम्मीद है। उम्मीद की जानी चाहिए कि आपराधिक मामलों की पेंडेंसी में कमी लाने के लिए अतिरिक्त जज मददगार होंगे। एडहॉक जजों के तौर पर यदि उच्च न्यायालय या सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीशों को चुना जाए तो न्याय की गुणवत्ता बनी रहेगी।


यदि सुप्रीम कोर्ट 2021 की शर्तों में बदलाव करता है तो यह आपराधिक न्याय प्रणाली के लिए नई सुबह का संकेत है। यह ध्यान रखना होगा कि एडहॉक नियुक्तियां तात्कालिक उपाय माात्र हैं। जजों की स्थाई नियुक्ति और मामलों की डिजिटल ट्रैकिंग जैसी दीर्घकालिक पहल भी आवश्यक हैं। इसके प्रभावी क्रियान्वयन के लिए केंद्र और राज्यों को समन्वय भी रखना होगा।