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सावधान: मासूम के हाथों में मोबाइल, जानिए क्या हैं खतरे

चाइल्ड एक्सपर्ट और साइकोलॉजिस्ट प्रोफसर ने किया अलर्ट

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 Child a Phone Addict

सावधान: मासूम के हाथों में मोबाइल, जानिए क्या है खतरे

ताबीर हुसैन @ रायपुर . जब आप किसी के घर जाते हैं तो बच्चों के हाथों में मोबाइल देखकर कोई हैरानी नहीं होती। क्योंकि आपके या किसी रिश्तेदार के यहां ये नजारा आम होता है। बच्चों में एंड्रायड और स्मार्ट फोन की लत लग चुकी है। सुबह उठते ही उन्हें फोन चाहिए होता है। महज दो साल की उम्र में बच्चे मोबाइल ऑपरेट करने में एक्सपर्ट हो गए हैं। सिंगल फैमिली हो या ज्वाइंट, दोनों स्थिति में बच्चे मोबाइल में रमे नजर आते हैं। पैरेंट्स इसलिए उन्हें फोन थमा देते हैं कि बच्चा व्यस्त रहे और वे खुद का कोई काम कर सकें ताकि डिस्टर्बेंस न हो। लेकिन अब आलम ये है कि बच्चों की सबसे बड़ी कमजोरी फोन बन गए हैं।

बच्चों के जिद के आगे मजबूर हैं
कटोरा तालाब की रहने वाली डिंपल वासवानी की उम्र चार साल है। इसका बस चले तो मोबाइल को छोड़े ही न। फोन पर बातें करने के अलावा गेम्स और किड्स वीडियो इसको पसंद है। इनकी मॉम जिया वासवानी ने बताया कि जितना भी मना करें इस पर कोई असर नहीं पड़ता। मना करने या डांटने पर वह रोने लगती है। उसकी जिद के आगे हम भी मजबूर हो जाते हैं। मोबाइल का ज्यादा उपयोग नुकसानदायक है ये जानते हुए भी हमारा बस बच्ची पर नहीं चलता।

खतरा है, लेकिन क्या करें

आराध्या की एज सिर्फ दो साल है। लिली चौक सरस्वती शिशु मंदिर के पास रहती है। इसके पापा भरत लुनावत कहते हैं ये कहानी आजकल घर-घर की हो गई है। बच्चे जब किसी खिलौने से नहीं मानते या खुश नहीं होते तो पैरेंट्स मोबाइल थमा देते हैं। इसके फीचर इतने अट्रेक्टिव होते हैं कि बच्चा एक बार देख ले फिर छोड़ता नहीं है। हमको मोबाइल के खतरे की पूरी जानकारी है। मैं कभी नहीं चाहता था कि बच्चे के हाथ में मोबाइल आए, लेकिन कभी-कभी परिस्थितियां एेसी बन जाती हैं कि जो न चाहो वही हो जाता है।

मैं सो जाती हूं, बेटा जागता रहता है
रंजना देवांगन बताती है कि उनका बेटा अंश दो साल का है। जब हमने उसका दिल बहलाने के लिए मोबाइल दिया था तब सोचा भी नहीं था कि एक दिन एेसा आएगा कि यह बिना मोबाइल के रह नहीं पाएगा। कई बार तो रात में मैं सो जाती हूं लेकिन ये किड्स वीडियो देखता रहता है। एेसा नहीं है कि घर में खिलौने नहीं हों, लेकिन इसको हर हाल में मोबाइल चाहिए।

कब हाथ में मोबाइल गया पता ही नहीं चला
धानी दुबे चार साल की है। उसने खुद वॉइस मैसेज भेजकर हमें बताया कि यूट्यूब में वीडियो देखना अच्छा लगता है। दादा से वीडियो कॉल से बात करती है। एंजिला, रॉकिंग रन देखती हूं। धानी की मॉम ने बताया कि इसके हाथ में कब और कैसे मोबाइल आया हमको खुद याद नहीं, लेकिन बिना मोबाइल के ये रहती नहीं है। नहीं देने पर चिड़चिड़ाने लगती है। रोने लगती है। मजबूरी में हमें देना ही पड़ता है।

काल्पनिक दुनिया में जीते हैं

डॉ. अशोक भट्टर, चाइल्ड स्पेशलिस्ट
कम उम्र में स्मार्ट फोन से बच्चे अकेले खेलने के आदि हो जाते हैं। उनमें सोशल इंटरएक्शन कम होता है। एक्सरसाइज नहीं होने से वजन बढ़ सकता है। मिक्स होकर खेलने में कंफर्ट फील नहीं करते। कम्यूनिकेशन कम होता है। वे काल्पनिक दुनिया में जीने लगते हैं। इसलिए बेहतर यही होगा कि पैरेंट्स बच्चों को भरपूर टाइम दें। उन्हें प्यार करें।

स्नेह और संरक्षण जरूरी

डॉ. उषा किरण अग्रवाल, प्राध्यापक, साइकोलॉजी डिपार्टमेंट, डीबी गल्र्स कॉलेज
बच्चों को स्नेह और संरक्षण दिया जाना चाहिए। जब बच्चा मां का स्तनपान करता है तो उसका संसार से पहला इंटरएक्शन होता है। पहली सोशल एक्टिविटी होती है। अगर वह स्तनपान न करे तो मां बीमार हो जाती है। प्यार और अपनापन मिलने से बच्चों में विश्वास पैदा होता है। इसके विपरीत अविश्वास की भावना आती है। यही अविश्वास आगे चलकर आइडेंटीटी क्राइसेस में बदल जाता है।