
जिम्मेदारों को शोर पसंद है ( Photo - Fiile photo )
गौरव शर्मा. गणेशोत्सव के शांतिपूर्ण आयोजन को लेकर जिला, पुलिस प्रशासन व डीजे संचालकों की बैठक मंगलवार को कलेक्ट्रेट के रेडक्रास सभाकक्ष में हुई। ( CG News ) बैठक में एडीएम उमाशंकर बन्दे व एएसपी लखन पटले ने डीजे संचालकों को एनजीटी व हाईकोर्ट के निर्देशों का पालन करने की बात कहते हुए कहा कि डीजे पर पूरी तरह प्रतिबंध है। डीजे संचालन के लिए एनओसी नहीं दी जाएगी। साथ ही रात 10 बजे के बाद ध्वनि विस्तारक यंत्रों पर पूरी तरह रोक लगाई जाएगी।
ऐसा नहीं करने पर कार्रवाई की जाएगी। हालांकि पिछले साल बिलासपुर में एक पूरे इलाके के लोग शोर-शराबे की वजह से अपना घर छोडकऱ जाने को मजबूर हो गए। तब हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेकर राज्य सरकार से इस पर नियंत्रण को लेकर जवाब मांगा था। सरकार ने बताया कि कोलाहल (नियंत्रण) अधिनियम के तहत कार्रवाई कर रहे हैं। हालांकि, 1985 का यह कानून मौजूदा समय में फिट नहीं बैठता। वजह ये कि तब इस पर महज हजार रुपए जुर्माने की सजा थी, जो आज की स्थिति पर काबू पाने में नाकाफी है।
सरकार ने इस साल जनवरी में कोर्ट में कहा कि 2 महीने में अधिनियम संशोधित कर इसे और प्रभावी बनाएंगे। वो बात और है कि 6 माह बीतने के बाद भी संशोधन नहीं हो पाया है। दरअसल, जिम्मेदार चाहते ही नहीं कि शोर-शराब कम हो। गौरतलब है कि कोलाहाल (नियंत्रण) अधिनियम में संशोधन किए बिना भी आज के वक्त में प्रभावी कार्रवाई संभव है। कानफोड़ू शोर पर काबू पाने इस अधिनियम के अलावा केंद्र सरकार का नॉइस मैनेजमेंट एंड रेगुलेशन रूल्स है, जो सन् 2000 में आ चुका है।
इसमें न केवल ध्वनि विस्तार की सीमा तय की गई है, बल्कि 1 लाख रुपए फाइन और सात साल कैद या दोनों सजा एकसाथ देने का प्रावधान है। राज्य सरकार ने इस कानून को दरकिनार करते हुए कोर्ट में कहा कि इस समस्या से निपटने राज्य का अपना कानून है। जबकि, संविधान में इस बात का प्रावधान है कि विसंगतियां आने पर केंद्र का कानून राज्य से ऊपर रहेगा। फिर भी सरकार को शोर-शराबा इतना पसंद है कि केंद्र का कानून मानने से गुरेज है। राज्य सरकार इस मुद्दे पर अपना ही आदेश मानने से ऐतराज है।
छत्तीसगढ़ के कोलाहल (नियंत्रण) अधिनियम और भारत सरकार के नॉइस मैनेजमेंट एंड रेगुलेशन रूल्स के अलावा भी 2021 में राज्य सरकार द्वारा जारी पर्यावरण क्षतिपूर्ति की अधिसूचना इस तरह के शोर-शराबे पर कार्रवाई की बात कहती है। ध्वनि प्रदूषण को लेकर तय मानकों का उल्लंघन करने वाले प्रत्येक जिम्मेदार से 10 हजार रुपए पेनाल्टी वसूलने का प्रावधान है। इसके साथ डीजे या अन्य ध्वनि विस्तारक यंत्र की जब्ती भी जानी है।
कोलाहल अधिनियम के तहत जब्त गाड़ी और डीजे को तो कोर्ट से छोडऩे का प्रावधान भी है, लेकिन 2021 की अधिसूचना के तहत जब्त डीजे तो किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ी जानी है। मतलब साफ है कि जिम्मेदार लोगों को परेशान कर देने वाले शोर-शराबे को बढ़ावा देना चाहती है।
जिम्मेदारों को राजभवन, सीएम हाउस, मंत्री और कलेक्टर के बंगलों के आसपास शोर-शराबा बिल्कुल पसंद नहीं है। यही वजह है कि इन इलाकों को साइलेंट जोन घोषित किया गया है। इसी के विरोध में 3 साल पहले सामाजिक कार्यकर्ता मंजीत कौर बल रायपुर के तत्कालीन कलेक्टर के पास पहुंची थीं। उन्होंने कलेक्टर से कहा कि वे डीजे वाले को 3 हजार रुपए एडवांस देकर आई हैं।
वे चाहती हैं कलेक्टर बंगले के सामने तेज आवाज में डीजे बजाएं, तब जाकर उन्हें आम लोगों की समस्या का अंदाजा होगा। कलेक्टर ने न इसकी मंजूरी दी, न लोगों की समस्या समझी। बता दें कि सरकारी-निजी शैक्षणिक संस्थानों, अस्पतालों और शासकीय दफ्तरों वाला इलाका भी साइलेंट जोन घोषित है, जिनके आसपास आए दिन तेज आवाज में डीजे बजते हैं।
ध्वनि विस्तारक यंत्रों का इस्तेमाल करने की मंजूरी देने का अधिकार कलेक्टर, एसपी, नायब तहसीलदार और डीएसपी स्तर के अधिकारी को है। ताज्जुब की बात है कि पूरे छत्तीसगढ़ में यह मंजूरी थानों से ली/दी जाती है। राजधानी की बात करें तो कलेक्टर ने पिछले 3 साल मेे किसी को भी डीजे बजाने की मंजूरी नहीं दी है।
इसी तरह पिछले साल पर्यावरण एवं आवास विभाग ने हाईकोर्ट के आदेश उका हवाला देते हुए सभी कलेक्टर एसपी को आदेश दिया था कि किसी भी गाड़ी डीजे बांधकर न बजाए जाएं। ऐसा मिलने पर डीजे और गाड़ी की जब्ती बनाएं। इन्हें कलेक्टर के आदेश पर ही छोड़ा जाए। कड़वी हकीकत ये है कि इस तरह की गाडिय़ां आज भी कोलाहल (नियंत्रण) अधिनियम के तहत कोर्ट में पेश कर महज एक हजार रुपए के चालान पर छोड़ी जा रहीं हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता और पर्यावरणविद्, नितिन सिंघवी ने कहा कि ध्वनि प्रदूषण मापने के लिए 2016 में हाईकोर्ट के आदेश पर राज्य सरकार ने 23 जिलों (तब इतने ही थे) में 6 करोड़ रुपए के 24-24 उपकरण खरीदे थे। ये उपकरण बिना इस्तेमाल किए ही बर्बाद हो गए। इसी से पता चलता है कि ध्वनि प्रदूषण रोकने की न सरकार की इच्छाशक्ति है, न प्रशासन की। हाईकोर्ट अब भी इस अहम मुद्दे पर गंभीर है, लेकिन सरकार का इससे कोई वास्ता नजर नहीं आता। इसका खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ रहा है।
Updated on:
27 Aug 2025 02:23 pm
Published on:
27 Aug 2025 02:22 pm
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