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Vat Savitri Vrat 2021: सुहागिनें दो दिन करेंगी वट सावित्री व्रत पूजन, जानें जानकारों ने किस तिथि को बताया श्रेष्ठ

locationरायपुरPublished: Jun 09, 2021 09:05:19 am

Submitted by:

Ashish Gupta

वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat) पूजन सुहागिनें दो दिन करेंगी। हालांकि पंडितों का कहना है कि जेष्ठ मास की चतुर्दशीयुक्त अमावस्या पर यह पूजन श्रेष्ठ माना गया है।

Vat Savitri Vrat 2021

Vat Savitri Vrat 2021: सुहागिनें दो दिन करेंगी वट सावित्री व्रत पूजन, जानें जानकारों ने किस तिथि को बताया श्रेष्ठ

रायपुर. वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat) पूजन सुहागिनें दो दिन करेंगी। हालांकि पंडितों का कहना है कि जेष्ठ मास की चतुर्दशीयुक्त अमावस्या पर यह पूजन श्रेष्ठ माना गया है। इसी मान्यता का पालन स्थानीय परिवारों की महिलाएं बुधवार को बरगद पेड़ के नीचे बैठकर पूजन करेंगे और रक्षा सूत्र बांधकर 108 फेरों के साथ पति के दीर्घायु की कामना करेंगी। लेकिन उत्तर प्रदेश और बिहार मूल के परिवारों की महिलाएं उदयातिथि अमावस्या गुरुवार को मान रही हैं, इसलिए गुरुवार को वट सावित्री का व्रत पूजन करने की तैयारी की है।
शहर के पुरानी बस्ती सहित आसपास के मोहल्लों से सुहागिनें बूढ़ेश्वरी चौक, पुरानी बस्ती, महामाया मंदिर परिसर में बरगद पेड़ के नीचे पहुंचेंगे और विधि-विधान से पूजन कर सावित्री और सत्यवान की पौराणिक कथा सुनेंगी। इस व्रत पूजन की तिथि पर वट वृक्ष के नीचे सुहागिनों का हर साल मेला लगता है। लेकिन इस बार कोरोना संक्रमण के चलते अपने आसपास की चार से पांच महिलाओं के ग्रुप में पूजन करने पहुंचेंगी।

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अखंड सौभाग्य की कामना के विशेष
महामाया मंदिर के पंडित मनोज शुक्ल के अनुसार वटसावित्री व्रत पूजन सुहागिनों के लिए विशेष है। अखंड सौभाग्य की कामना के लिए व्रत रखकर पूजन करती हैं। अपने-अपने सामथ्र्य के अनुसार 11,21, 51 और 108 बार परिक्रमा करेंगे सुहाग की सामग्री अर्पित कर पति के दीर्घायु की कामना करेंगी।

पंडितों के अनुसार उत्तर भारत में जहां सुहागिनें यह पूजा-व्रत ज्येष्ठ मास की चतुर्दशी युक्त अमावस्या तिथि पर संपन्न करती हैं। वहीं दक्षिण भारत में शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर व्रत रखकर पति की लंबी उम्र की कामना करती है। अर्थात 9 जून को राजधानी समेत प्रदेश में वट वृक्ष के नीचे बैठकर सुहागिनें पूजा और सावित्री माता की कथा का श्रवण करेंगे। शहर के पुरानी बस्ती में सौ साल पुराने वट वृक्ष की पूजा करने के लिए आसपास की कॉलोनियों और मोहल्लों से सुहागिनें आती हैं।

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पंडित चंद्रभूषण शुक्ला के अनुसार यह व्रत पूर्व पौराणिक कथा सावित्री ओर सत्यवान से जुड़ी हुई है। जब माता सावित्री ने अपने तपोबल से यमराज के यहां से अपने पति को जीवत लौटा लाईं। तभी से सुहागिनें ज्येष्ठ मास की चतुर्दशीयुत अमावस्या के दिन व्रत रखकर वट वृक्ष का पूजन कर 108 बार परिक्रमा करती हैं और सुहाग की सामग्री साड़ी, चूड़ियां, गहने, मेहंदी अर्पित करती हैं।

निर्णय सिंधु के अनुसार मान्य है
पंडित चंद्रभूषण के अनुसार वट सावित्री पूजन की तिथि को लेकर किसी तरह के भ्रम की स्थिति है। चतुर्दशी युक्ततिथि ही निर्णय सिंधु में मान्य है। यह तिथि 9 जून को है।

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पूजन विधान इस प्रकार है
इस व्रत को दोपहर में किए जाने का विधान है इसलिए दोपहर 1.30 बजे के बाद सुहागिन महिलाएं व्रत रखकर पूजन सामग्री के साथ यह व्रत बरगद वृक्ष के नीचे विधि विधान से करती हैं। दीपक जलाकर बरगद वृक्ष की परिक्रमा करते हुए अपने पति की लंबी आयु की कामना करना चाहिए। चूंकि इस बार कोरोना का साया है, इसलिए भीड़ से बचते हुए और सोसल सोशल डिस्टेसिंग का पालन करते हुए पूजन संपन्न करें।

यह है पौराणिक कथा
वट वृक्ष की पूजा करके सावित्री ने अपने पति सत्यावान के प्राण को यमराज से वापस लौटा लाने में सफल हुई। तभी से इस व्रत को वट सावित्री व्रत पूजा के नाम से जाना जाता है। पुराणों के अनुसार यह वृक्ष त्रिमूर्ति का प्रतीक है। इसकी छाल में भगवान विष्णु, जड़ में ब्रम्हा और शाखाओं में शिवजी का वास माना जाता है।

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