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कोरोना ने फेफड़ों को किया कमजोर, बढ़ गए टीबी के मरीज.. इलाज के लिए दवा ही नहीं

CG Health News: कोरोना की तीनों लहरों ने फेफड़े को कमजोर किया है। इसलिए पहले की तुलना में कोरोना के मरीज ज्यादा मिल रहे हैं। 24 मार्च को भारत समेत पूरे विश्व में टीबी दिवस मनाया जाएगा।

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Raipur News: कोरोना की तीनों लहरों ने फेफड़े को कमजोर किया है। इसलिए पहले की तुलना में कोरोना के मरीज ज्यादा मिल रहे हैं। 24 मार्च को भारत समेत पूरे विश्व में टीबी दिवस मनाया जाएगा। स्थिति ये है कि टीबी के मरीजों के लिए प्रदेश में दवा ही नहीं है। यही नहीं टीबी की पहचान के लिए की जाने वाली सीबी-नॉट जांच भी लंबे समय से ठप है।

विशेषज्ञों के अनुसार अगर मरीज एक दिन भी टीबी की दवा नहीं खाएगा तो शरीर में रजिस्टेंस पैदा होगा। इससे दवा का असर बीमारी पर नहीं पड़ेगा। इससे हाई पावर दवा देने की जरूरत पड़ेगी। इसके भी कई साइड इफेक्ट है। यही नहीं ये मरीज दूसरों को भी संक्रमित करने के लिए पर्याप्त है। टीबी के मरीजों के लिए केंद्र सरकार की ओर से छह माह के कोर्स के लिए दवा नि:शुल्क दी जाती है। पिछले एक माह से मरीजों को दवा ही नहीं मिल रही है। इसके कारण मरीजों की स्थिति बिगड़ती जा रही है।

मरीजों को नियमित दवा नहीं मिलने पर ये केस गंभीर होकर एमडीआर टीबी बन जाएगा। यह सामान्य टीबी से बहुत घातक होता है। अब केंद्र सरकार ने राज्यों को दवा खरीदने के लिए कह दिया है। हालत ये है कि इसके लिए फंड भी नहीं मिला है। इधर सीजीएमएससी ने भी दवा सप्लाई के लिए हाथ खड़े कर दिया है। उन्होंने दो टूक कह दिया है कि चार माह दवा की सप्लाई नहीं कर पाएंगे। इससे मरीजों की समस्या कम होने के बजाय बढ़ती जा रहा है। सीबी-नॉट जांच बंद होने का कारण ये है कि इसकी किट की सप्लाई अनियमित है। इस कारण ये जांच भी लंबे समय से बंद है। प्रदेश में जिलों के अनुसार मरीजों को दवा बांटी जाती है। मरीज भी दवा के इंतजार में परेशान हो रहे हैं। ये ऐसे मरीज हैं, जो जरूरतमंद हैं और मेडिकल स्टोर से महंगी दवा खरीदकर नहीं खा सकते।

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जांच भी ज्यादा होने लगी कोरोना काल में ठप थी

विशेषज्ञों के अनुसार कोरोना ने न केवल फेफड़े को कमजोर नहीं किया है, बल्कि इसके कई साइड इफेक्ट भी सामने आ रहे हैं। कोरोनाकाल निकलने के बाद अचानक टीबी के मरीजों की संख्या काफी बढ़ गई है। विशेषज्ञों के अनुसार इसके तीन से चार कारण है। दरअसल अब जांचें भी ज्यादा हो रही हैं इसलिए मरीज भी सामने आ रहे हैं। आंबेडकर के चेस्ट व मेडिसिन विभाग की ओपीडी में लगातार खांसी के बाद पहुंच रहे ज्यादातर मरीजों के बलगम जांच में ट्यूबर क्लोसिस की पुष्टि हो रही है।


मेडिकल कॉलेज के एचओडी चेस्ट डॉ. आरके पंडा ने कहा की टीबी के मरीजों को नियमित दवा नहीं देने पर शरीर में बीमारी के खिलाफ रजिस्टेंस पैदा होता है। फिर रेगुलर चलने वाली दवाओं का असर नहीं होता। इससे हाई डोज दवा देने की जरूरत पड़ती है। दवा नहीं खाने से टीबी के मरीजों का संक्रमण दूसरों पर फैलने की पूरी संभावना रहती है। ये खांसने व छींकने से भी फैलता है।

रायपुर के जिला टीबी अधिकारी डॉ. अविनाश चतुर्वेदी ने कहा की मरीजों को नियमित दवाएं नहीं दी जा रही है। दरअसल केंद्र से इसकी सप्लाई नहीं हो पा रही है। केंद्र ने दवा खरीदने को कह दिया है, लेकिन फंड नहीं है। सीजीएमएससी से भी अभी दवा की सप्लाई की संभावना बिल्कुल नहीं है।

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