सीसीटीवी कैमरे से निगरानी
अभी तक किसान मैनुअल खेत के हर एक हिस्से में जाकर फसल की देखरेख करते हैं। फसल में लगने वाली बीमारी का पता रंग के आधार पर लगाया जाता है। इमेज प्रोसेसिंग तकनीक के जरिए उनकी यह परेशानी दूर हो जाएगी। खेत में लगे सीसीटीवी कैमरे को सॉफ्टवेयर (farming Software) से जोड़कर फसलों की लगातार मॉनिटरिंग की जा सकेगी। फसल का हर बार रंग बदलने पर सॉफ्टवेयर किसान को आगाह करेगा। यही नहीं, जिस तरह अभी मौसम वैज्ञानिक मौसम को लेकर के पूर्वानुमान लगाते हैं, ठीक वैसे ही इमेज प्रोसेसिंग के जरिए फसल में लगने वाली बीमारी का भी पूर्वानुमान लगाने में बड़ी मदद मिलेगी।
अभी तक किसान मैनुअल खेत के हर एक हिस्से में जाकर फसल की देखरेख करते हैं। फसल में लगने वाली बीमारी का पता रंग के आधार पर लगाया जाता है। इमेज प्रोसेसिंग तकनीक के जरिए उनकी यह परेशानी दूर हो जाएगी। खेत में लगे सीसीटीवी कैमरे को सॉफ्टवेयर (farming Software) से जोड़कर फसलों की लगातार मॉनिटरिंग की जा सकेगी। फसल का हर बार रंग बदलने पर सॉफ्टवेयर किसान को आगाह करेगा। यही नहीं, जिस तरह अभी मौसम वैज्ञानिक मौसम को लेकर के पूर्वानुमान लगाते हैं, ठीक वैसे ही इमेज प्रोसेसिंग के जरिए फसल में लगने वाली बीमारी का भी पूर्वानुमान लगाने में बड़ी मदद मिलेगी।
एेसे काम करेगा सॉफ्टवेयर
फसल में बीमारी लगने के बाद उसमें कलर स्पॉट पैदा होते हैं। अभी किसान भी इसी को देखकर बीमारी का पता करते हैं, और दवाइयों का छिडक़ाव करते हैं। जैसे पत्ती पर छोटे स्पॉट बनने पर इसे ब्राउन स्पॉट बीमारी कहा जाता है, ऐसे ही पत्ती पर पीलापन दिखने पर लीफ ब्लॉस्ट बीमारी का पता चलता है। यदि धान की बाली सूखकर सफेद हो जाएगी तो सॉफ्टवेयर समझ जाएगी कि फसल इस्टमबोरर बीमारी का शिकार हुई है, जिसे वक्त रहते ठीक किया जा सकेगा।
फसल में बीमारी लगने के बाद उसमें कलर स्पॉट पैदा होते हैं। अभी किसान भी इसी को देखकर बीमारी का पता करते हैं, और दवाइयों का छिडक़ाव करते हैं। जैसे पत्ती पर छोटे स्पॉट बनने पर इसे ब्राउन स्पॉट बीमारी कहा जाता है, ऐसे ही पत्ती पर पीलापन दिखने पर लीफ ब्लॉस्ट बीमारी का पता चलता है। यदि धान की बाली सूखकर सफेद हो जाएगी तो सॉफ्टवेयर समझ जाएगी कि फसल इस्टमबोरर बीमारी का शिकार हुई है, जिसे वक्त रहते ठीक किया जा सकेगा।
ह्यूमन इंटेलिजेंट होगा खास : डॉ.तोरन
डॉ. तोरन ने बताया कि जिस तरह एक किसान अपनी समझ से फसल की बीमारी का पता लगाता है, ठीक ऐसे ही विशेष सॉफ्टवेयर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (artifical Intelligence) के जरिए किसान की ही तरह काम करेगा। पूरा प्रोसेस ऑटोमैटिक होगा। इसके लिए सॉफ्टवेयर को विशेष कोडिंग के जरिए विशेष ट्रेनिंग दी जा रही है। न्यूरल नेटवर्क ऑफ फजीइंफेरेंस सिस्टम तैयार कर रहे हैं। जिस किसानों के पास सैकड़ों एकड़ जमीन में उनके लिए ड्रोन तकनीक काम आएगी, जबकि छोटे किसान सिर्फ अपने मोबाइल का उपयोग कर फसल की निगरानी कर पाएंगे।
डॉ. तोरन ने बताया कि जिस तरह एक किसान अपनी समझ से फसल की बीमारी का पता लगाता है, ठीक ऐसे ही विशेष सॉफ्टवेयर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (artifical Intelligence) के जरिए किसान की ही तरह काम करेगा। पूरा प्रोसेस ऑटोमैटिक होगा। इसके लिए सॉफ्टवेयर को विशेष कोडिंग के जरिए विशेष ट्रेनिंग दी जा रही है। न्यूरल नेटवर्क ऑफ फजीइंफेरेंस सिस्टम तैयार कर रहे हैं। जिस किसानों के पास सैकड़ों एकड़ जमीन में उनके लिए ड्रोन तकनीक काम आएगी, जबकि छोटे किसान सिर्फ अपने मोबाइल का उपयोग कर फसल की निगरानी कर पाएंगे।