
हलषष्ठी व्रत कल: संतान की लंबी उम्र के लिए माताएं रखेंगी निर्जला व्रत, पढ़ें इसकी पूजा विधि
रायपुर. बच्चों की सुख-समृद्धि और लंबी उम्र के लिए माताओं के द्वारा रखा जाने वाला व्रत हलषष्ठी कल 9 अगस्त को मनाया जाएगा। पहले माताएं दिनभर निर्जला व्रत रखकर शाम को मंदिर परिसर में सगरी बनाकर उसके चारों तरफ बैठकर भगवान शिव और माता पार्वती की कथा सुनकर पूजा करती थी। मंदिरों के पुरोहित कथा सुनाते थे। लेकिन, इस बार पूजा पर भी संशय बना हुआ है। प्राचीन महामाया मंदिर के पुजारी पंडित मनोज शुक्ला और प्राचीन बूढ़ेश्वर महादेव मंदिर के मुख्य पुजारी पंडित महेश पांडेय ने जिला प्रशासन से स्पष्ट गाइडलाइन मंदिरों के लिए जारी करने की मांग की है।
उनका कहना है कि भक्तों के लिए शनिवार को तीन से पांच पुजारी जिला प्रशासन को ज्ञापन सौंपेंगे।कृष्ण जन्माष्टमी के दो दिन पहले यह त्यौहार भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। इस दिन माताएं अपने संतान की लंबी उम्र के लिए निर्जला व्रत रखकर घरों में कुंआ बनाकर पूजा करती हैं।
पंडितों के अनुसार भादो महीने के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम जी का जन्म हुआ था और उनका प्रमुख शस्त्र हल था। इसलिए इस दिन को हलषष्ठी कहा जाता है। यह दिन माताओं के लिए बहुत ही खास होता है क्योंकि इस दिन संतान की लंबी उम्र के लिए मां निर्जला व्रत रखती हैं।
हलषष्ठी के दिन सुबह से नहा धोकर साफ कपड़े पहनकर गोबर से जमींन को अच्छे से पोत लें। इसके बाद वहां पर छोटे से तालाब का निर्माण करें। इसके बाद इस तालाब के आसपास झरबेरी और पलाश को लगा दें। इसके बाद पूजा में चना, जौ, गेंहू, धान, मक्का और मक्का से पूजा करें। इसके बाद हलछठ की कथा सुनाई जाती है। जिससे संतान की उम्र लंबी होती है।
हलषष्ठी के दिन गाय के दूध या दही का सेवन बिल्कुल भी नहीं किया जाता है। इस दिन भैंस का दूध और भैंस के दूध से बनी घी का प्रयोग किया जाता है।
इस दिन बिना हल लगे फल, सब्जी और अनाज का इस्तेमाल किया जाता है। इस दिन पसहर चावल जिसे छत्तीसगढ़ में लाल भात कहा जाता है। विशेष तौर पर इस्तेमाल किया जाता है।
Published on:
08 Aug 2020 12:10 pm
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