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सबका बाएं तो कैलाश के सीने में दाएं धडक़ता है दिल, डॉक्टर बोले- रेयर होती है ये कंडीशन

छत्तीसगढ़ के कैलाश उन अनोखे व्यक्तियों में से एक हैं, जिनके सीने में बाएं नहीं, बल्कि दाएं तरफ दिल है।

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kailash kashyap

सबका बाएं तो कैलाश के सीने में दाएं धडक़ता है दिल, डॉक्टर बोले- रेयर होती है ये कंडीशन

रायपुर. छत्तीसगढ़ के कैलाश उन अनोखे व्यक्तियों में से एक हैं, जिनके सीने में बाएं नहीं, बल्कि दाएं तरफ दिल है। डॉक्टरों के मुताबिक यह हार्ट का रेयरेस्ट केस है। 10 लाख लोगों में से एक ही व्यक्ति ऐसा होता है। मेडिकल साइंस की भाषा में इसे डेक्स्ट्रोकॉर्डिया कहा जाता है। छत्तीसगढ़ में संभवत: यह पहला मामला है, जिसमें किसी मरीज का हार्ट और स्प्लीन शरीर में दाईं तथा लिवर बाईं तरफ है।

रायपुर के मालवीय रोड निवासी 62 वर्षीय कैलाश कश्यप को काफी दिनों से सीने में दर्द और सांस फूलने की शिकायत थी। वह डीकेएस सुपर स्पेश्यलिटी हॉस्पिटल पहुंचे। यह दो माह पहले नवम्बर की बात है। डीकेएस की गहन चिकित्सा इकाई में उनके चेकअप के दौरान डॉक्टरों ने जब उनका ईसीजी लिया तो दिल का पता नहीं चल रहा था। धडक़न की आवाज भी डॉक्टरों को नहीं मिल पा रही थी। इसके बाद एक्स-रे लिया गया तो कैलाश का दिल बाईं ओर की बजाय दाईं ओर था। चेकअप जैसे-जैसे आगे बढ़ता गया डॉक्टर हैरान रह गए, क्योंकि न केवल दिल बल्कि स्प्लीन भी शरीर में दाएं तरफ था और लिवर दाईं की बजाय बाईं ओर था। इलाज के बाद कैलाश को 6 जनवरी को अस्पताल से डिस्चार्ज किया गया। डॉक्टरों के मुताबिक वह पूरी तरह से स्वस्थ हैं।

कैलाश ने बताया कि उन्हें भी नहीं मालूम था कि दिल बाएं की जगह दाएं तरफ है। उनका कहना है कि दिल बाएं हो या दाएं क्या फर्क पड़ता है, जीवन तो चल रहा है।

रायपुर के डीकेएस सुपर स्पेश्यलिटी हॉस्पिटल के डॉ. बजरंग बंसल ने बताया कि दिल का बाएं की जगह दाएं तरफ होना काफी दुर्लभ है। यह 10 लाख लोगों में से किसी एक में पाया जाता है। डीकेएस में इस तरह का यह पहला केस था। इलाज के बाद कैलाश पूरी तरह स्वस्थ है और वह सामान्य जीवन जी रहा है। उसे दो-तीन माह में फॉलोअप में आने के लिए कहा गया है।

रायपुर एम्स के न्यूक्लियर मेडिसीन विभाग के एचओडी डॉ. करन पिपरे ने बताया कि इसे मेडिकल लैंग्वेज में डेक्स्ट्रोकार्डिया कहा जाता है। यह हार्ट की रेयर कंडिशन होती है। शरीर के डेवलपमेंट के दौरान हार्ट की कोशिकाओं के घूमने की वजह से ऐसा होता है। सामान्य तौर पर इसका पता नहीं चल पाता। ईसीजी या एक्स-रे के बाद ही ऐसे केस का पता चलता है।


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