
बेटी की इस जिद को पैरेंट्स ने समझा मजाक, आज हैं मर्चेंट नेवी में कैप्टन
ताबीर हुसैन@रायपुर. कहते हैं जहां चाह वहां राह। यह बात सुनेहा गडपांडे पर बिल्कुल फिट बैठती है। दूरदर्शन पर आरोहण सीरियल आता था। इसमें पल्लवी जोशी के किरदार ने सातवीं पढ़ रही सुनेहा की जिंदगी को नई दिशा दी।
नन्हीं सुनेहा ने जब पैरेंट्स से कहा कि मैं भी पल्लवी जोशी की तरह इंडियन नेवी में जाना चाहती हूं तो वे इसे हंसकर टाल गए। दिन बीतते गए, सीरयल भी खत्म हो चुका था, अगर कुछ खत्म नहीं हुआ तो सुनेहा का जुनून। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस और ज्योति सावित्री बाई फूले की स्मृति दिवस पर डीडीयू में सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। इसमें विभिन्न क्षेत्रों में कामयाबी का परचम लहरा रही महिलाओं का सम्मान किया गया। भोपाल की सुनेहा भी इसमें शामिल थीं। इस दौरान उन्होंने पत्रिका प्लस से अपनी जर्नी व अनुभव साझा किए।
ग्रेजुएशन के वक्त मर्चेंट नेवी से आया कॉल
मैं इंडियन नेवी जाना चाहती थी। इसमें गल्र्स का सलेक्शन ग्रेजुएशन के बाद होता है। इसलिए इंजीनियरिंग में ग्रेजुशन चल रहा था। इस बीच मर्चेंट नेवी का कॉल आया शिपिंग कार्पोरेशन ऑफ इंडिया से। मैंने इसे अपॉर्चुनिटी माना और वर्ष 2003 में एज ए कैडेट ट्रेनिंग ली। उस वक्त पता चला कि हमारी कंपनी की पहली लड़कियां थीं। इससे पहले कोई उस फार्म पर आया नहीं। तब से यह चीज चल रही है कि मैं जिस भी कंपनी में जाऊं पहली लड़की होती हूं वहां के लिए। जापानी कंपनी में भी पहली इंडियन गर्ल रही। अभी डेनमार्क की कंपनी में भी फस्र्ट इंडियन गर्ल हूं।
रायपुर से जुड़े हैं तार
सुनेहा के डैडी रायपुर के रहने वाले हैं। वे रिटायर्ड बैंक अफसर हैं। वर्ष 1982 में वे भोपाल शिफ्ट हुए। शंकर नगर में सुनेहा की बुआ और टिकारा पारा में चाचा रहते हैं।
राष्ट्रपति अवॉर्ड मिला
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की एनिवर्सिरी में मिनिस्ट्री ऑफ वीमन एंड चाइल्ड डवलपमेंट ने 100 महिलाओं का सम्मान किया। इसमें 20 अलग-अलग कैगीगरी रही। सुनेहा को वीमन इंपॉवरमेंट के लिए पुरस्कार दिया गया, क्योंकि वे पहली भारतीय महिला रही हैं जो फॉरेन कंपनी में केप्टन हैं।
खुद पर यकीन करो, दुनिया आपको फॉलो करेगी
सुनेहा ने सक्सेस मंत्र के सवाल पर कहा कि खुद पर यकीन करो, दुनिया आपको फॉलो करेगी। उन्होंने कहा कि अगर गल्र्स इस फील्ड पर आने चाहती हैं तो सबसे पहले वे खुद को लड़कियां मत समझे, और समझकर आते हो तो मत आओ। क्योंकि आपको वह सारे काम करने होंगे जो यहां की रिक्वायरमेंट है। यहां कोई 8 घंटे की नौकरी नहीं होती। यहां कोई दिवाली-दशहरा नहीं होता। अपनी फैमिली और खुद पर भरोसा रखो। धोखा देने वालो बहुत मिलेंगे लेकिन सपोर्ट सिर्फ फैमिली से मिलता है।
शादी का प्रेशर था, कड़ी मेहनत से बन गईं डीएसपी, अब हैं एएसपी
प्रज्ञा मेश्राम उन महिलाओं में शामिल हैं जिन्हें पढ़ाई के वक्त एक टाइम लिमिट दी जाती है और शादी का प्रेशर भी रहता है। ऐसे में प्रज्ञा ने खुद को पूरी तरह पढ़ाई पर झोंक दिया और डीएसपी बनकर अपने आप को साबित किया। प्रज्ञा ने बीजापुर जिले के सरकारी स्कूल से प्राइमरी और बालोद के ग्रामीण परिवेश में पढ़ाई पूरी की।
इसके बाद राजनांदगांव से पीजी किया। वहीं से तैयारी शुरू की। वर्ष 2005 की पीएससी क्रेक कर डीएसपी बनीं। प्रमोट होकर एएसपी बनीं प्रज्ञा ने बताया कि दादा डीईओ और डैडी डॉक्टर रहे हैं। घर का बैकग्राउंड आपको पढ़ाई करने के लिए प्रेरित करता है। मुझे कभी लड़का और लड़की में फर्क दिखाई नहीं दिया। पापा मुझे लड़कों से भी ज्यादा पढऩे के लिए प्रेरित करते थे।
Published on:
11 Mar 2019 05:34 pm
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