
छत्तीसगढ़ी भासा के भगीरथ ‘डॉ. नरेंद्रदेव वरमा’
छत्तीसगढी़ धरा-धाम के मान महिमा जगाय बर अपन आखर उजोग के जोत जगैया महान साहित्य सिरजनहार के नाव आय डॉ. नरेंद्र देव वरमा। 8 सितंबर उंकर पुन्न तिथि आय। उंकर पावन सुमिरन हमर मन-परान ल फिलोवत हे। उन देवात्मा ल अंतस ले मोर मनभरहा परनाम। उन मोर गुरु रहिन अउ मंय हंव उंकर चेला। ये जिनगी म मोर भाग आय। उंकर ले जौन गियान मंय अपन आत्मा म उतारेंव, बइठारेंव, उही मोर पूंजी आय।
डॉ. नरेंद्रदेव वरमा छत्तीसगढ़ी के सुकवि रहिन, मधुर गीतकार रहिन। उंकर छत्तीसगढ़ी कवितामन ‘अपूर्वा’ कविता किताब म संघराय हवंय। उन एक सौ पचास छत्तीसगढ़ी कविता के रचना करिन हावंय। उनकर कवितामन गांव-गंवई, कमिया-किसान, कोठी-कोठार, घाट-घठौंधा के जीयत-जागत रूप-रेख आय। उन खुदेच संगीत के जानकार रहिन, ते पाय के उंकर गीतमन अड़बड़ गुरतुर लगिन। ‘ढोला मारू’ उंकर समुधर गीत रूपक आय।
डॉ. नरेंद्र देव वरमा के मानुख देह म देवता के बास रहिस। उन छत्तीसगढ़ के गियानी-गुनी परिवार म जनम लेइन अउ जनम भुइंया के जस ल उजागर करे म जिनगी के यग्य ***** बेवहार करिन। उन महात्मा गांधी के संगवारी धनीराम वरमा अउ मयारूक दाई भाग्यवतीदेवी के मंझला बेटा के रूप म 4 नवंबर 1939 के दिन वरधा आसरम म अवतरिन। उंकर पिताजी सुराजी सिक्छक रहिन अउ महात्मा गांधी के बुनियादी सिक्छा अभियान बर समरपति रहिन। स्वामी आत्मानंद उंकर सबले बडक़ा भइया अउ डॉ. ओम परकास वरमा सबले छोटका भाई।
डॉ. नरेंद्रदेव वरमा ह हिंदी के सुकवि अउ परखर वक्ता घलो रिहिन। उंकर व्याख्यान के बड़ाई पंडित जवाहरलाल नेहरू तको ह करे हवय। उन हिंदी म एक सौ ले जादा कविता लिखिन हावंय, जेन म मां भारती के रूप, रासि अउ वोकर महत्तम के सुग्घर गान अउ बखान होइस हावय। उन अज्ञेय, अंचल, बच्चन, मुक्तिबोध के कवितमन के सुग्घर सार ल समझाइन हे। वोकर सतमन ल मंथन करके उनकर जगा ठहराइन हवंय।
असल म डॉ. नरेंद्रदेव वरमा के छत्तीसगढ़ी भासा के सेवा-साधना के अब्बड़ मान होथे। जउन समे, जब छत्तीसगढ़ी ल हीनमान करे जात रहिस, तौने बखत उन छत्तीसगढ़ी भाखा के मरम ल समझाइन। अपन पछरे गोठ ल मनवइन घलो। उन सोध के सीध कर देइन के छत्तीसगढ़ी बोली नोहय, बरकस भासा आय। मनखे के सब्बो तरा के भाव अउ बिचारन ल उजागर करे के वोमा सकत हावय। सही म भासा ह छत्तीसगढ़ के सांस-सांस म समाय हावय। छत्तीसगढ़ ह छत्तीसगढ़ी म सोचथे, समझथे अउ सिरजथे घलो। उन भासा बिग्यान के जरिया अपन गुनान ल सीध घलो कर देखाइन।
उन खुदेच संगीत के जानकार रहिन, ते पाय के उंकर गीतमन अड़बड़ गुरतुर लगिन। ‘ढोला मारू’ उंकर समुधर गीत रूपक आय। उपन्यास ‘सुबह की तलाश’ यानी बिहनिया के खोजार ह छत्तीसगढ़ी राज के बढ़वारी के लेखा-जोखा जान परथे। संगवारी हो! आज वो दिव्यात्मा के सुरता करे के समे हे। उंकर बताय रद्दा म चलके हमन ल छत्तीसगढ़ के पुरखौती मान-मरजाद लहुंटाना हे। डॉ. नरेन्द्रदेव वरमा छत्तीसगढ़ के राजकवि के दरजा पाइन हवंय, मान पाइन हवंय। उंकर छत्तीसगढ़ महतारी के मातरि बंदना ‘अरपा पइरी के धार’ गीत ह आज हमर छत्तीसगढ़ के राजगीत आय। ए भुइंया के आन-बान, महिमा के बखान आय।
अरपा पइरी के धार
महानदी हे अपार।
इंदिरावती हर पखारय तोरे पइंया।
महूं पांव परंव तोर भुइंया।
जय हो, जय हो,छत्तीसगढ़ मइया।
सोहय बिंदिया सही
घाट डोंगरी पहार।
चंदा सुरूज बने तोरे नैना।
सोनहा धान अइसे अंग
लुगरा हरियर हे रंग।
तोर बोली हवे जइसे मैना।
अंचरा तोर डोलावय पुरवइया।
सरगुजा हे सुग्घर, तोरे मउर मुकुट
रायगढ़ बिलासपुर बने तोरे बञहा।
रयपुर कनिहा सही,
घाते सुग्गर फबय।
दुरूग बस्तर बने पैजनियां।
नांदगांव नवा करधनियां।
Published on:
05 Sept 2022 04:40 pm
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