मान्यताओं के अनुसार रामायण काल में ऋषि इंजी का आश्रम इस गांव में स्थित था। पूर्व में इंजराम गांव का नाम सिंगनगुड़ा था। श्रीराम के आने से गांव का नाम इंजराम पड़ा। ग्रामीण बताते हैं कि स्थानीय भाषा में ‘इंजे राम वतोड़ ‘ यानी यहां राम आए थे। मान्यता यह भी है कि जब भी यहां मंदिर की स्थापना का काम शुरू किया जाता है तो काम करने वाले मजदूर व अन्य कारीगर बीमार पड़ जाते हैं। इसे राम की इच्छा मानकर खुले में छोड़ दिया गया है।
अयोध्या से निकले श्रीराम ने वनगमन के दौरान सुकमा जिले के रामाराम गांव के बाद अगला पड़ाव इंजराम में बनाया था। यहां पहुंचकर उन्होंने भगवान शिव की प्रतिमा की स्थापना की थी। इसके प्रमाण राष्ट्रीय राजमार्ग से सौ मीटर की दूरी पर रामायण काल की बिखरी प्रतिमाओं के तौर पर नजर आते हैं।
इंजरम निवासी पी सुब्बा राव ने बताया कि वनगमन के दौरान प्रभु श्रीराम ने रामाराम के बाद इंजराम में समय बिताया था। यह उनका 119 वां पड़ाव था। यहां शबरी नदी में स्नान करने के बाद उन्होंने भगवान शिव की प्रतिमा की स्थापना की थी। इंजरम के ग्रामीण इन मूर्तियों की आज भी पूजा करते हैं।
सुब्बाराव ने बताया कि कई प्रयासों के बावजूद आज तक यहां के शिवालय का छत नहीं बन पाया है। लगभग आधा दर्जन बार निर्माण शुरू करने के पहले मिस्त्री मजदूर बीमार पड़ गए।