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ऑपरेशन-विजय को अंजाम देने रियल हीरोज ने दिखाया दम-खम

रिटायर्ड सूबेदार शिवकुमार ने कहा कि दुश्मन को मार गिराने के उस दौर का जिक्र जब भी होता है तो सिर फक्र से ऊंचा हो जाता है

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Abhishek Srivastav

Aug 11, 2015

indian army

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रायपुर. आज से ठीक 68 साल पहले 15 अगस्त 1947 को भारत को अंग्रेजों के चंगुल से आजादी मिली। लेकिन इस आजादी में न जाने कितने ही सपूत भारत माता की गोद में शहीद हो गए। उस दौर का जिक्र जब भी होता है तो सिर फक्र से ऊंचा हो जाता है। अंग्रेजों को भारत से उखाड़ फेंकना प्रत्येक हिन्दुस्तानियों का मकसद था। यह कहना है करगिल युद्ध के हीरो और छत्तीसगढ़ के सपूत रिटायर्ड सूबेदार शिवकुमार मुजेवार का।
रिटायर्ड सूबेदार शिवकुमार जिन्होंने करगिल युद्ध में हिस्सा लेकर भारत मां की रक्षा की। करगिल युद्ध का जिक्र करना भी नहीं भूलते। उन्होंने भारत की आजादी में शहीद उन सैकड़ों सोल्जर्स को सलाम करते हुए करगिल की यादों को सिलसिलेवार पत्रिका के साथ शेयर किया।
चौरसिया कॉलोनी रायपुर, ग्राम टेकारी (जुलूम) निवासी रिटायर्ड सूबेदार शिवकुमार मुजेवार ने करगिल युद्ध के दौरान बिताएं हुए अपने एक्सपीरियंस शेयर करते हुए बताया कि 2 मई 1999को चरवाहों ने कुछ घुसपैठियों को देखा। जिसकी सूचना उन्होंने भारतीय सेना को दी। यहां से 65 किमी की दूरी पर करगिल था।
उन्होंने बताया कि द्रास से करगिल के बीच जीरो प्वाइंट नामक एरिया था, जहां हिन्दुस्तानी फौज को सकरी पुलिया से होकर गुजरना पड़ता था। इसी का फायदा उठाते हुए पाकिस्तानी घुसपैठ जवानों पर फायरिंग करते थे। इस एरिया से बचकर निकलना मुश्किल काम था। इसके बावजूद हिन्दुस्तानी सेना ने बुलंद हौसलों के साथ दुश्मनों का डटकर सामना किया और ऑपरेशन विजय को फतह किया।
24 घंटे में एक बार खाते थे खाना
सुबेदार शिवकुमार बताते हैं कि कारगिल के माहौल को देखते हुए हिन्दुस्तानी सेना को खाने की फिक्र नहीं थी। वे देशभक्ति का जज्बा लिए दुश्मनों के पोस्ट पर कब्जा करने आगे बढ़ते गए। वहां का माहौल था कुछ इस कदर था कि 24 घंटे में एक बार खाना खाते थे। एक तरफ बर्फ का एरिया, खराब मौसम होने की वजह से दुश्मन बेबाक गोलीबारी करते थे। फिर भी हिन्दुस्तानी सेना ने दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब दिया।
रिपोर्ट- मनोज साहू

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