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CG News: नगर निगम की सफाई व्यवस्था की परीक्षा अब नजदीक है। क्योंकि, राष्ट्रीय स्वच्छता सर्वेक्षण, जिससे रैंकिंग तय होनी है, वह काम कभी भी होने वाला है, परंतु जमीनी स्तर पर सफाई का हाल बुरा है। हैरानी ये कि लगातार बैठकों और समीक्षा निगम मुख्यालय में खूब हुई, लेकिन रैंकिंग रिपोर्ट टॉप टेन शहरों में आने की चुनौती बनी हुई है। मुक्कड़ों से कचरा उठाने से लेकर डोर-टू-डोर सूख-गीला कचरा अलग-अलग लेने में भी निगम फिसड्डी बना हुआ है।
बता दें कि लचर सफाई व्यवस्था की वजह से ही पिछले साल शहर की सफाई रैंकिंग 11वें नंबर पर थी। इसमें सुधार लाने की बड़ी चुनौती बनी हुई है। क्योंकि, शहर के जिन तीन तालाबों में नाले की गंदगी रोकने के लिए सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट तैयार हो जाना था, वो भी अधूरा पड़ा है। ऐसे में शहर का ऐतिहासिक महाराजा बंद तालाब गंदगी से बजबजा रहा है। ऐसा ही हाल नरैया तालाब का भी है। इस तालाब में पिछले दो सालों से एसटीपी तैयार नहीं होने के कारण नाले की गंदगी सीधे तालाब में भर रही है। इन्हीं कारणों से शहर के लोगों का फीडबैक राष्ट्रीय स्वच्छता सर्वेक्षण में ठीक से नहीं मिल पाता है। ऐसे में 400 नंबर की जगह मुश्किल से सौ-डेढ़ सौ नंबर मिलता है।
नगर निगम का सफाई में सबसे अधिक फोकस मंत्रियों और अफसरों के बंगलों और कॉलोनियों में ज्यादा रहता है। करीब 2300 से अधिक सफाई कर्मचारी निगम में नियमित हैं, जिन्हें ऐसी जगहों पर ही लगाया जाता है। हर वार्ड का सफाई ठेका अलग-अलग दिया गया है, जिस पर दो करोड़ से ज्यादा बिल भुगतान निगम करता है, लेकिन मॉनीटरिंग के अभाव में मनमानी ही चल रही है। औचक निरीक्षण का डिब्बा पिछले 4 से 5 महीने से बंद है, किसी भी वार्ड से सफाई कामगारों की कम संख्या सामने नहीं आई। जबकि आमतौर पर जब भी अधिकारी किसी वार्ड में गिनती करते थे तो तय संख्या से आधे ही हाजिर मिलते थे।
Updated on:
23 Dec 2024 08:52 am
Published on:
23 Dec 2024 08:51 am
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