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सरकार बदलथे त बहुत कुछ बदल जथे

अचरज तो तब होथे जब कोनो पारटी के सरकार हारथे त एके दिन म सब उल्टा-पुल्टा हो जथे। लोगनमन के जुबान-बेवहार घलो पलट जथे। जीतइया पारटी के नेता अउ समरथकमन के झन पूछव। वोमन ल हारे सरकार अउ वोकर पारटी के एकोच्च काम ह बने नइ लागय। सब काम म मिल-मेक निकालथें। जेन काम से जनता के भलई होवय उहूं काम ल बेकार बताय म दू घड़ी नइ लगावंय।

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सरकार बदलथे त बहुत कुछ बदल जथे

सरकार बदलथे त बहुत कुछ बदल जथे

छत्तीसगढ़ी साहित्य

हार गे, हार गे... चिल्लाय बर लोगनमन नानपन ले सीख जथें। जब लइकामन कुछु खेल खेलथें, त जेन संगवारी हार जथे, वोला हार गे, हार गे कहिके कुडक़ुड़ाथें। तास के खेल म चिपो गदही खेलथें त लइकामन हार गे, हार गे कहिके हारे संगवारी ल ‘चिपो-चिपो’ कहे बर मजबूर कर देथें। जब कोनो जुआ-सट्टा म हार जथे, चुनई म हार जथे, खिलाड़ीमन मैच म हार जथें त वोमन ल ‘हार के पीरा’ सहे बर परथे।

हार सब्द ले हारे, हरइया, हरवइया जइसे सब्द घलो बनथे। जादा करके समाज म देखे गे हे गे हारे मनखे के पूछपरख कम हो जथे। कतकोन बडक़ा मनखे हो, धनवान हो, नेता हो, साहेब हो, खिलाड़ी हो, हारे के बाद लोगनमन के नजर म गिर जथे। वोमन हारे के कतकोन कारन बतांय, सफई दंय, फेर लोगनमन मानबेच नइ करंय। बस वोकर कमी-गलती गिनाय के सुरू कर देथें। अइसे हो-हल्ला मचाथें के हारे मनखे एकदम मजबूर, असहाय, बेबस नजर आथें।

अचरज तो तब होथे जब कोनो पारटी के सरकार हारथे त एके दिन म सब उल्टा-पुल्टा हो जथे। लोगनमन के जुबान-बेवहार घलो पलट जथे। जीतइया पारटी के नेता अउ समरथकमन के झन पूछव। वोमन ल हारे सरकार अउ वोकर पारटी के एकोच्च काम ह बने नइ लागय। सब काम म मिल-मेक निकालथें। जेन काम से जनता के भलई होवय उहूं काम ल बेकार बताय म दू घड़ी नइ लगावंय।

सच बात एहू हे के, जेन अधिकारी-करमचारीमन अपन काम ल ईमानदारी से करथें, कोनो मंतरी, नेतामन के दबाव म नइ आवंय, वोकरमन के सरकार बदलतेच तबादला कर दे जाथे। काबर के कोनो सरकार के मंतरी, नेतामन नइ चाहंय के वोकरमन के पाला कोनो ईमानदार साहेब से पडय़। जेमन वोकरमन के बात ल नइ मान के नियम-कानून झाड़ंय। इतिहास गवाह हे ईमानदार साहेबमन ल सदा सरकार चलइयामन आंखी के किरकिरी समझथें।

दूसर कोती जादाझन सरकारी अधिकारी-करमचारीमन तुरते अपन पाला बदल लेथें। मजबूरी म ही सहीं वोमन ‘टेटका ले जल्दी रंग बदल देथें।’ हारे सरकार के समे म जउन-जउन काम गलत-सलत होय रहिथे, जेन-जेनमन मनमानी करे रहिथें वोकरमन के ‘बारा बजाय’ म बेरा नइ करंय। नवा सरकार के हुकुम माने बर एक पांव म खड़े रहिथें। जइसे कहिथें- वोइसने करथें। पुलिसमन के बेवहार घलो एकदमेच बदल जथे। कालीजुअर तक जेमन ल हडक़ात रहंय, तेकरमन के जी-हुजुर करे बर धर लेथें। अउ, जेकरमन के जी-हुजुर करंय, वोकरमन डहर ले मुंह फेर लेथें। जइसे के वोमन ल नइ चिन्हंय तइसे।


‘कहत कबीर सुनो भाई, साधो बात कहूं मैं खरी। यह दुनिया एक नंबरी तो मैं दस नंबरी।’ ‘लाख छुपाओ छुप न सकेगा राज हो कितना गहरा, दिल की बात बता देता है, असली नकली चेहरा।’ आज जेती बम, वोती हम के जमाना हे, त अउ का-कहिबे।