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राम वनगमन पथ तुरतुरिया स्थल का अफसरों की टीम ने किया निरीक्षण

जिला प्रशासन के प्रतिनिधि एवं डिप्टी कलक्टर मिथिलेश डोंडे स्थानीय एसडीएम टेकचन्द अग्रवाल के नेतृत्व में टीम के अफसरों ने विचार विमर्श कर तुरतुरिया में विकास के लिए प्रस्तावित स्थलों का अवलोकन किया।

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राम वनगमन पथ तुरतुरिया स्थल का अफसरों की टीम ने किया निरीक्षण

राम वनगमन पथ तुरतुरिया स्थल का अफसरों की टीम ने किया निरीक्षण

बलौदाबाजार/कसडोल. राम वन गमन पथ में शामिल स्थलों के विकास के लिए जिला प्रशासन द्वारा उच्च अधिकारियों की एक टीम गठित की गई है। राज्य सरकार द्वारा प्रथम चरण में विकास के लिए कसडोल तहसील के तुरतुरिया को शामिल किया गया है। जनश्रुति है कि तुरतुरिया स्थित वाल्मीकि आश्रम में भगवान श्रीराम के पुत्र लव एवं कुश का जन्म हुआ था। अफसरों की टीम ने तुरतुरिया एवं आसपास के स्थलों का निरीक्षण किया और पर्यटकों की सुविधाओं के विकास के लिए प्रस्तावित विभिन्न स्थलों का चिन्हांकन किया। निरीक्षण के आधार पर 13 बिन्दुओं में जानकारी राज्य सरकार को भेजी जाएगी।
जिला प्रशासन के प्रतिनिधि एवं डिप्टी कलक्टर मिथिलेश डोंडे स्थानीय एसडीएम टेकचन्द अग्रवाल के नेतृत्व में टीम के अफसरों ने विचार विमर्श कर तुरतुरिया में विकास के लिए प्रस्तावित स्थलों का अवलोकन किया। वन विभाग ने इस अवसर पर जिला प्रशासन की मंशा के अनुरूप अब तक किए गए कार्यों का ब्यौरा प्रस्तुत किया। इसमें मुख्य रूप से मंदिर और मातागढ़ के बीच स्थित बालमदेही नदी पर एनीकट निर्माण प्रस्तावित किया गया है। एनीकट निर्माण से साल भर मातागढ़ तक आना-जाना संभव हो सकेगा।
मातागढ़ को बाहर से सड़क मार्ग से जोड़ा जाएगा। नवरात्रि के दिनों में मुख्य मार्ग पर अत्यधिक भीड़ को देखते हुए तुरतुरिया पहुंचने के लिए बोरसी-खुड़मुड़ी का वैकल्पिक मार्ग विकसित करने का सुझाव आया है। मेले के समय आने वाले श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए वाशरूम, पेयजल सुविधा, सोलर सिस्टम से प्रकाश सुविधा, सभी दिशाओं में वाहन पार्किंग और दुकानदारों के लिए पक्का चबूतरा के लिए स्थल चिन्हांकन किया गया। गोमुख से सतत प्रवाहित जल का उपयोग कर सुंदर गार्डन विकसित करने का निर्णय लिया गया। पर्यटकों एवं श्रद्धालुओं के रुकने के स्थान को और सुंदर बनाने तथा इसकी सुरक्षा दीवार बनाने का प्रस्ताव भी आया।
तीन दिवसीय मेला लगता है यहां
यहां से प्राप्त शिलालेखों की लिपि से ऐसा अनुमान लगाया गया है कि यहां से प्राप्त प्रतिमाओं का समय 8.9 वी शताब्दी है। प्रतिवर्ष पूष माह में यहां तीन दिवसीय मेला लगता है तथा बड़ी संख्या में श्रध्दालु यहां आते हैं। धार्मिक एवं पुरातात्विक स्थल होने के साथ साथ अपनी प्राकृतिक सुंदरता के कारण भी यह स्थल पर्यटको को अपनी ओर आकर्षित करता है।